सीवान का आतंक खामोश! रंगदारी न देने पर व्यापारी को तेजाब से नहलाया, अब कोरोना ने हराया

शहाबुद्दीन अपराध और राजनीति के गठजोड़ का पर्याय रहा है। वह खुद बेहद सौम्य स्वभाव, अच्छी हिंदी, उर्दू बोलता था। महंगे चश्मे, कपड़े पहने हुए किसी को भी प्रभावित कर देता था। बिहार में वह एक अपराधी से नेता बना और धीरे-धीरे पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों की भी उसके दरबार में पेशी लगने लगी थी।

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हत्या के प्रकरण में सजा काट रहे बिहार के बाहुबली शहाबुद्दीन का निधन हो गया। तिहाड़ में बंद शहाबुद्दीन को कोरोना संक्रमण हो गया था। जिसके बाद उसे दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई।

सीवान से लोकसभा सांसद रहा शहाबुद्दीन उस प्रकरण में सजा काट रहा था जिसने बिहार में आतंक के इस पर्याय के प्रति लोगों भय उत्पन्न कर दिया था। यह घटना 16 अगस्त 2004 की है जब शहाबुद्दीन के गुर्गे सीवान में रंगदारी वसूली कर रहे थे। वे चंदा बाबू नामक एक दुकानदार के यहां पहुंचे। चंदा बाबू के चार बेटे थे जिनमें से दो बेदे सतीश और गिरीश परचून और किराने की दुकान संभालते थे। उन दोनों से गुर्गों ने दो लाख के रंगदारी की मांग की तो दोनों ने पैसे देने से मना कर दिया। इस पर गुर्गों ने दोनों दुकानदार भाइयों से मारपीट की। यह घटना शहाबुद्दीन और उसकी टोली के लोगों को इतना आपमान जनक लगी कि उन्होंने दोनों युवकों के लिए भयावह षड्यंत्र रच डाला।

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और असहाय होकर तड़पते रहे दोनों
वसूली के पैसे न देने की खुन्नस शहाबु्द्दीन की टोली ने मन में रखा था। उसके गुर्गों ने इसकी सजा देने का निर्णय किया। जब चंदा बाबू के दोनों पुत्र सतीश और गिरीश प्रतापपुर गांव पहुंचे तो उन्हें वहां पकड़ लिया। दोनों भाइयों को पेड़ से बांध दिया गया और तेजाब से नहला दिया। इससे भी मन न भारो तो उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इस घटना ने पूरे बिहार को हिलाकर रख दिया था।

डॉक्टरों की फीस तय करने लगा डॉन
सीवान के इस डॉन के अपराध के किस्से इतने हैं कि बतानेवाला थक जाता है। सीवान में डॉक्टरों की फीस शहाबुद्दीन ने 50 रुपए करा दी थी। कोई डॉक्टर इसे टाल नहीं सकता था। इसके अलावा पैसे वाले भी सीवान में पुरानी मोटर साइकिल से चलते थे नहीं तो शहाबुद्दीन के गुर्गों को रंगदारी देना पड़ता था। लोग अपने घर के बच्चों की नौकरी नहीं बताते थे। अधिक कमाई होने लगी तो रंगदारी देनी पड़ती थी।

और राजनीति में लालू के साथ हो लिया
अस्सी के ही दशक में लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बनने के लिए जोड़गांठ कर रहे थे। इसमें शहाबुद्दीन भी लालू के साथ हो लिया। कहते हैं 1990 में जब पहली बार विधायक बना तो उसकी उम्र मात्र 23 वर्ष थी। लेकिन किसी का क्या मजाल की कोई बोल दे। वो लगातार दो बार विधायक और चार बार सांसद बना था। 1996 में केंद्रीय मंत्री की कुर्सी पर बैठते-बैठते रह गया। कहते हैं लालू और शहाबुद्दीन की नजदीकी में बिहार में अपहरण, उद्योग बन गया था।

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शहाबुद्दीन के अलावा सीवान की पहचान
बिहार का सीवान जिला अस्सी के दशक तक तीन चेहरों के लिए पहचाना जाता था। जिसमें से पहला नाम है डॉ.राजेंद्र प्रसाद, भारत के पहले राष्ट्रपति इसमें दूसरा नाम सिविल सर्विसेज टॉपर आमिर सुभानी और तीसरा नाम था नटवरलाल था।

ऐसे दर्ज हुआ पहला एफआईआर
यह ऐसा दशक था जब जिले में कम्युनिस्ट और भारतीय जनता पार्टी के मध्य रक्तरंजित राजनीति चल रही थी। इसमें शहाबुद्दीन अपना स्थान बनाने लगा था। उस पर 1986 में पहली एफआईआर दर्ज हुई थी। उसके बाद इसी थाने में उसे ए-लिस्ट का हिस्ट्रीशीयर घोषित किया गया।

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