कोरोना की 11 डोज लेने वाले ‘दादाजी’ को ढूंढ़ रही है पुलिस! क्या होंगे गिरफ्तार?

बिहार में यह पाया गया कि एक दादाजी ने एक-दो बार नहीं, बल्कि 11 बार कोरोना की वैक्सीन ली थी। इसकी चर्चा पूरे देश में है।

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कोरोना रोधी वैक्सीन को इस समय कोरोना संक्रमण से बचने का सबसे कारगर इलाज माना जा रहा है। इसलिए देशभर में कोरोना टीकाकरण अभियान चल रहा है, हालांकि अभी भी कई लोग कोरोना की वैक्सीन लेने से कतरा रहे हैं। यह टीकों के बारे में अफवाहों और भ्रांतियों के कारण है। लेकिन, बिहार में यह पाया गया कि एक दादाजी ने एक-दो बार नहीं, बल्कि 11 बार कोरोना की वैक्सीन ली थी। इसकी चर्चा पूरे देश में है। अब 84 वर्षीय दादाजी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है।

बिहार के मधेपुरा जिले के उदकिशुनगंज अनुमंडल के पुरैनी थाना अंतर्गत उरई गांव निवासी ब्रह्मदेव मंडल को कोरोना वैक्सीन की 12वीं डोज लेने के प्रयास में पकड़ा गया। पूछताछ में उन्होंने बताया कि वे अब तक 11 टीके ले चुके हैं। अब इस मामले की जांच की जा रही है कि ब्रह्मदेव मंडल ने वैक्सीन की इतनी खुराक कैसे ले ली। मधेपुरा जिला के स्वास्थ्य अधिकारी की शिकायत पर इस संबंध में मामला भी दर्ज किया गया है। उसके आधार पर दादाजी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है।

कोरोना वैक्सीन की इतनी खुराक क्यों ली?
इंडिया टुडे के मुताबिक वैक्सीन पाने वाले दादा ब्रह्मदेव मंडल ने कहा कि कोरोना की वैक्सीन लेने के बाद उन्हें एक गंभीर बीमारी से निजात मिल गई। उसके बाद उन्होंने इस बीमारी को ठीक करने के लिए और कोरोना वैक्सीन लेने का फैसला किया। उन्होंने 11 खुराक लीं और 12वीं खुराक के लिए टीकाकरण केंद्र से लौट आए। इसके लिए उन्होंने अपने आधार कार्ड, वोटिंग कार्ड का इस्तेमाल किया। हालांकि 12वीं के समय वे पकड़े गए।

डाक विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारी
ये दादाजी डाक विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। उन्होंने पिछले साल 13 फरवरी को वैक्सीन की पहली खुराक ली थी। इसके बाद उन्होंने 13 फरवरी से 30 दिसंबर के बीच जन स्वास्थ्य केंद्र में 11 खुराक लीं। उन्होंने वैक्सीन का स्थान, तारीख और समय भी लिख दिया है, जिससे स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और व्यवस्था की खामियां उजागर हो गई है।

कैसे हुई गड़बड़ी?
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का दावा है कि ऑफलाइन कैंपों में लोग इस तरह से गड़बड़ी कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “आधार कार्ड और फोन नंबर शिविरों में एकत्र किए जाते हैं और फिर डेटाबेस में डाले जाते हैं। अक्सर कंप्यूटर पर डेटा ऑफलाइन रजिस्टर के डेटा से अलग होता है। यदि ऐसे समय में सूचना की डुप्लीकेटिंग पाई जाती है, तो उसे अस्वीकार कर दिया जाता है। लेकिन इसे अपलोड होने से पहले ही टीकाकरण करा लिया जाता।”

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