इनके भी दर्द को सुनो सरकार!

पेट, परिवार और आंदोलन के बीच किसानों की मौत का सिलसिला जारी है। दिल्ली में जहां केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को वापस लेने की जिद को लेकर आंदोलन करते हुए दम तोड़ रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र में पेट और परिवार से परेशान होकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं।

114

महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार को सत्ता में आए एक साल से अधिक समय हो गया है। इस दौरान सरकार के तमाम दावों के बावजूद 2270 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। यह आंकड़ा 2020 के जनवरी से लेकर नवंबर तक का है। हालांकि यह 2019 से कम है। उस साल कुल 3,900 किसानो ने जीवन ने हार मानकर आत्महत्या कर ली थी।

पेट, परिवार और आंदोलन के बीच किसानों की मौत का सिलसिला जारी है। दिल्ली में जहां केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को वापस लेने की जिद को लेकर आंदोलन करते हुए दम तोड़ रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र में पेट और परिवार से परेशान होकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं। इनका दर्द है कि सरकार इनकी बातें नहीं सुन रही और इस हाल में इनके सामने सभी रास्ते बंद हो गए हैं।

मात्र 920 किसानो के परिजनों को ही मिला मुआवजा
आरटीआई एक्टिविस्ट जीतेंद्र घाडगे के मुतबाकि मृतक किसानों में से मात्र 920 किसानो के परिजनों को ही मुआवजा मिल पाएगा। बाकी सरकार का मुआवजा पाने की शर्तों को पूरा नहीं करते हैं। यह जानकारी महाराष्ट्र के राजस्व मंत्रालय द्वारा आरटीआई के तहत दी गई। सरकार की शर्तों के अनुसार कर्ज में डूबे किसानों को मुआवजा दिया जाता है। यह कर्ज करीब एक लाख रुपए तक होता है।

ये भी पढ़ेंः अब चिकन को बर्ड फ्लू की बीमारी मार गई!

पहले पायदान पर विदर्भ
प्राप्त जानकारी के अनुसार आधे से ज्यादा किसान विदर्भ के हैं। इसे महाराष्ट्र का कॉटन बेल्ट कहा जाता है। इस क्षेत्र में करीब 1230 किसानों ने मौत को गले लगा लिया है। मराठवाड़ा में यह संख्या 693 है। सूखे की वजह से इन किसानों द्वारा आत्महत्या करने की बात कही जा रही है। पश्चिम महाराष्ट्र को शुगर बेल्ट के नाम से जाना जाता है। जबकि कोकण में एक भी सुसाइड सामने नहीं आया है।

सरकार की उपेक्षा मुख्य कारण
किसानों की हताशा में उठाए गए इस कारण के पीछे सरकार की उपेक्षा बताया जा रहा है। हालांकि उद्धव सरकार ने दावा किया है कि बीते वर्ष किसानो की ज्यादा फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी है, लेकिन ज्यादातर किसानों ने अपने व्यक्तिगत कारणों से आत्महत्या की है।

चार साल में किसानों की आत्महत्या में आई कमी
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो ने सितंबर 2020 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले चार साल में किसानों की आत्महत्या में कमी आई है। वर्ष 2016 में जहां 11,379 किसानों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2019 में यह घटकर 10,281 हो गई। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि भूमि मालिक और पट्टे पर खेती करने वाले किसानों की आत्महत्या में पांच फीसदी, जबकि कृषि कामों में हाथ बंटाने वाले मजदूरों की आत्महत्या में 15 फीसदी की गिरावट आई है।

2019 में महाराष्ट्र था नंबर वन
2019 में राज्य वार आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र 3,900 के साथ की संख्या के पहले पायदान पर था। इनमें से 2860 किसान और बाकी खेतिहर मजदूर थे। दूसरे नंबर पर कर्नाटक( 19920) था। तीसरे नंबरआंध्र प्रदेश( 1,029) चौथे नंबर पर मध्य प्रदेश( 541), पांचवें नंबर पर तेलंगाना 499),छठे नंबर पंजाब( 302) था। ध्यान देनेवाली बात यह है कि पंजाब में किसानों द्वार आत्महत्या किए जाने की घटनाएं पहली बार देखी गई थी।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.