…तो भारत का हिस्सा होता पूर्वी पाकिस्तान!

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे में धर्म के आधार पर पाकिस्तान दो भागों में बना। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के मध्य हिंदुस्थान। दो भागों में बंटे पाकिस्तान को जोड़ने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना ने एक हजार किलोमीटर का कॉरिडोर बनाने की मांग की। जिसे हिंदुस्थान और अंग्रेजों ने भी अस्वीकार कर दिया। पाकिस्तान तो बन गया लेकिन दोनों हिस्सों की भाषा और संस्कृति भिन्न थी।

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर का जीवन हिंदुस्थान के लिए समर्पित था। उनका कहना था कि जो इसे अपनी पूण्य भूमि और मातृ भूमि मानते हैं, वे सभी हिंदू हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले ही उन्हें इस बात का भान हो गया था कि देश का बँटवारा धार्मिक आधार पर होगा और यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा? इसी के अनुरूप उन्होंने देश भर के हिंदुओं से अपील की थी कि वे 1941 की जनगणना में सम्मिलित हों। इसके लिए हिंदू महासभा द्वारा देश भर में पत्रिकाएं बांटी गईं। स्वातंत्र्यवीर की इस अपील का पालन हिंदुओं ने नहीं किया, जबकि मुसलमानों ने जनगणना में सक्रियता से हिस्सा लिया। जब 1941 की धार्मिक आधार पर हुई जनगणना की रिपोर्ट सामने आई तो बंगाल और पंजाब में इसका परिणाम दिखा।

1946 में लिखित ‘अखिल हिंदुस्थान लढा’ पर्व के पृष्ठ संख्या 405 के अनुसार देश में 1921, 1931, 1941 में जनगणना हुई। इसका हिंदुओं ने विरोध किया। इस काल में हिंदुत्वनिष्ठ लोगों ने आगाह भी किया था। लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जो कार्य करने थे, उसके लिए जनगणना महत्वपूर्ण होगी और उसी का बहिष्कार हिंदुओं ने किया है। बंगाल, पंजाब के मामले इसी की परिणति हैं। इतिहास में ये बड़ी भूल सिद्ध हुईं। इससे पाकिस्तान के नाम से दो देश खड़ा हो गया। उसके बाद बंगाल का भाग पूर्वी पाकिस्तान और पंजाब का हिस्सा पश्चिम पाकिस्तान बना।

एक राष्ट्र पर भिन्न भाषा और संस्कृति

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे में धर्म के आधार पर पाकिस्तान दो भागों में बंट गया। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के मध्य हिंदुस्थान। दो भागों में बंटे पाकिस्तान को जोड़ने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना ने एक हजार किलोमीटर का कॉरिडोर बनाने की मांग की। जिसे हिंदुस्थान और अंग्रेजों ने भी अस्वीकार कर दिया। पाकिस्तान तो बन गया लेकिन दोनों हिस्सों की भाषा और संस्कृति भिन्न थी। पूर्वी पाकिस्तान में उस काल तक बड़ी संख्या में हिंदुओं का भी निवास था। पूर्वी पाकिस्तान के लोग बंगाली बोलते थे, जबकि पश्चिमी पाकिस्तान उर्दू में सभी कार्य करता था।

जिन्ना ने चखा विरोध का स्वर

पाकिस्तान का गठन धार्मिक आधार पर हुआ। पूर्व पश्चिम का धर्म एक था लेकिन भाषा, संस्कृति भिन्न थी। इसके कारण पूर्वी पाकिस्तान में इसका विरोध शुरुआत से ही होने लगा। इसका अनुभव 1948 में ही मोहम्मद अली जिन्ना को हो गया था। जब वे पूर्वी पाकिस्तान गए थे, वहां एक कार्यक्रम में जिन्ना ने उर्दू को राष्ट्र भाषा बनाने की घोषणा की। इसका बंगाली बोलनेवाली पूर्वी पाकिस्तान की आबादी ने जबरदस्त विरोध किया। इसमें ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों के विरोध ने आग का कार्य किया। इस विरोध के समय यूनिवर्सिटी में शेख मुजीबुर्ररहमान भी थे, जिन्होंने इस आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई।

कॉलोनी बन गया पूर्वी पाकिस्तान

पूर्व पाकिस्तान संसाधन संपन्न था। उसके पास कृषि, खनिज और उद्योग का ढांचा ठीक था। पूर्वी पाकिस्तान जूट के क्षेत्र में काफी उन्नत था। जो देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जन का सबसे बड़ा साधन था। इसका लाभ पश्चिम पाकिस्तान उठाने लगा। पश्चिमी पाकिस्तान ने राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासनिक अधिकार अपने पास ही सीमित करके रखे थे, जबकि, पूर्वी पाकिस्तान के संसाधनों का पूरा उपयोग करके उसे कॉलोनी बनने के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया। इससे पूर्वी पाकिस्तान की बंगाली जनता को ये लगने लगा कि अंग्रेजों के हाथ से निकलकर भी वे पश्चिमी पाकिस्तान के द्वितीय श्रेणी के नागरिक बनकर रह गए हैं।

जनमत के बावजूद धोखाधड़ी

पूर्वी पाकिस्तान में 1970 में चुनाव हुए, जिसमें शेख मुजीबुर्ररहमान की पार्टी अवामी लीग को बड़ी जीत मिली। इसमें मुस्लिम लीग की भी बड़ी हार हुई थी। इसे दरकिनार कर तत्कालीन शासक याह्या खान और जुल्फीकार अली भुट्टो ने सत्ता मुजीबुर्ररहमान को सौंपने से न सिर्फ इन्कार किया बल्कि शेख  मुजीबुर्ररहमान के विरुद्ध ‘अगरतला षड्यंत्र’ में सम्मिलित होने का आरोप लगाकर उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करवा दिया और जेल भेज दिया। पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबी नेता पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों को नहीं चाहते थे। याह्या खान ने श्रीलंका होते हुए एक लाख सैनिकों को पूर्वी पाकिस्तान में भेज दिया। वहां मार्शल लॉ लागू कर दिया।  शेख मुजीबुर्ररहमान को फांसी की सजा सुनाई गई थी।

मुक्ति वाहिनी का गठन

पूर्वी पाकिस्तान के नेता शेख मुजीबुर्ररहमान ने इसे स्वाधीनता की लड़ाई घोषित कर दी थी। वहां के लोगों ने हड़ताल कर दी। इससे अर्थव्यवस्था चौपट होने लगी। सेना ने वहां ‘ऑपरेशन सर्च लाइट’ शुरू किया था। इसमें सैनिकों ने लाखो लोगों को मौत के घाट उतार दिया। महिलाओं से खुलेआम ज्यादतियां की गईं और उनकी हत्या कर दी गई। पूर्वी पाकिस्तान में मची इस त्राहि से त्रस्त स्थानीय नेताओं ने अपनी सेना खड़ी की ‘मुक्ति वाहिनी’ के नाम से। इस बीच बड़ी संख्या में पीड़ित जनसंख्या भारत की ओर पलायन करने लगी। इससे आक्रोषित पश्चिमी पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया।

1971 की लड़ाई का लाभ पूर्वी पाकिस्तान को

1971 की लड़ाई भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ी गई, लेकिन इसका लाभ पूर्वी पाकिस्तान को ही मिला। उसे पश्चिमी पाकिस्तान के शोषण, दोयम दर्जे के व्यवहार, संसाधनों की लूट से मुक्ति मिली। इतिहास के अभ्यासक नितिन शास्त्री बताते हैं कि 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध भारत के लिए उतना ज्यादा लाभदायक नहीं रहा, जितना पूर्वी पाकिस्तान के लिए साबित हुआ। उसे पश्चिमी पाकिस्तान के दमन, दोयम स्तर के व्यवहार, सत्ता में नीचे रखने की चालबाजी से मुक्ति मिली और बांग्लादेश नामक एक स्वतंत्र राष्ट्र का जन्म हुआ। 1971 के पहले भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हो चुके थे। 1947 में पहला, जिसे थल सेना ने लड़ा, दूसरा 1961 का, जिसे थल सेना और वायु सेना ने लड़ा और तीसरा युद्ध था, 1971 का, जिसे भारत की तीनों सेनाओं ने पूरी शक्ति के साथ लड़ा। 3 दिसंबर 1971 से शुरू हुआ युद्ध 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्म समर्पण के साथ खत्म हुआ।

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