सरकारी अस्पताल से मां का शव कंधे पर लेकर घर चला बेटा, घटना पर मंत्री के अमानवीय बोल

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बेहतर चिकित्सकीय सेवा होने का दावा करती हैं। लेकिन राज्य के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्थाओं की बदहाली की कलई अमूमन खुलती ही रहती है।

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पश्चिम बंगाल के एक राजकीय अस्पताल से मानवीय संवेदना को झकझोर देने वाली खबर आई है। यहां रुपये की कमी के कारण एक युवक को अपनी मां का शव कंधे पर लेकर 30 किलोमीटर दूर घर की तरफ चलने के लिये मजबूर होना पड़ा। घटना 5 जनवरी की शाम की है। पूछे जाने पर अस्पताल के अधीक्षक ने कहा कि उन्हें घटना की जानकारी मिली है और जवाबदेही तय की जाएगी।

घटना पर अमानवीय रुख अख्तियार करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार के परिवहन मंत्री स्नेहाशीष चक्रवर्ती ने परिवार पर ही दोष मढ़ दिया है, जबकि अस्पताल के अधीक्षक कल्याण खां ने घटना को लेकर अजीबो-गरीब सफाई दी है।

न्यू जलपाईगुड़ी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की घटना
दरअसल 72 वर्षीय लक्ष्मी रानी दीवान को उसके बेटे राम प्रसाद दीवान ने न्यू जलपाईगुड़ी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती कराया था, जहां उनका निधन हो गया। इसके बाद युवक ने अस्पताल प्रबंधन से मां का शव घर ले जाने के लिए एम्बुलेंस उपलब्ध कराने की गुहार लगाई। लेकिन, अस्पताल प्रबंधन ने इस सहयोग से साफ इनकार कर दिया, जिसके बाद मजबूरन युवक मां के शव को कंधे पर रखकर ही घर के लिए रवाना हो गया।

खास बातेंः
-घटना के बाबत राम प्रसाद दीवान ने बताया कि 4 जनवरी की रात मां को अस्पताल में भर्ती किया गया था, लेकिन 5 जनवरी को उनका निधन हो गया। शव को घर ले जाने के लिए हमने अस्पताल में मौजूद एम्बुलेंस से कई बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी तीन हजार रुपये से कम में जाने को तैयार नहीं हुआ। उसके पास देने के लिए रुपये नहीं थे।

-युवक ने बताया कि हमने अस्पताल प्रबंधन से भी संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। घंटों तक हम यहां-वहां भटकते रहे। हारकर मैं पिता के साथ मिलकर मां के शव को कंधे पर लेकर घर जाने के लिये मजबूर हो गया।

-घटना की जानकारी जलपाईगुड़ी की एक निजी संस्था ग्रीन जलपाईगुड़ी को मिली, जिसके बाद उन्होंने मुफ्त में एम्बुलेंस उपलब्ध करवाया। उसी एम्बुलेंस से शव को घर ले जाया जा सका। पूरी घटना के मद्देनजर अस्पताल अधीक्षक ने महज गुमराह करने वाला बयान दिया है। अस्पताल अधीक्षक कल्याण खां ने अजीबोगरीब सफाई देते हुए कहा कि परिवार को चाहिए था कि वह अस्पताल में मौजूद रोगी सहायता केंद्र से संपर्क करता। समस्या का तुरंत समाधान हो जाता।

-हालांकि उनसे जब यह पूछा गया कि किसी भी रोगी की मौत के तुरंत बाद यह नियम है कि उसे शव ले जाने के लिए एंबुलेंस उपलब्ध कराया जाए। इस बारे में अस्पताल ने खुद पहल क्यों नहीं की? इसका उन्होंने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। आगे उन्होंने कहा कि घटना अमानवीय है और मैं मृतक के परिवार से संपर्क करने की कोशिश कर रहा हूं।

-इस घटना को लेकर राज्य के परिवहन मंत्री स्नेहाशीष चक्रवर्ती ने भी अमानवीय टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि परिवार को अस्पताल प्रबंधन से संपर्क करना चाहिए था। मैंने खबर ली है। अस्पताल के किसी अधिकारी से परिवार के सदस्य नहीं मिले। खुद ही शव को कंधे पर लेकर पैदल चलना शुरू कर दिया। आगे उन्होंने कहा कि गरीबों के लिए एम्बुलेंस की सुविधा अस्पताल में है। इसकी देखरेख कौन करता है, इसकी खोज खबर हम लोग कर रहे हैं।

-वहीं जलपाईगुड़ी जिला एंबुलेंस संगठन के सचिव दिलीप दास ने कहा कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं है। पूरी घटना उस स्वयंसेवी संगठन की बनाई हुई है, जिसने मुफ्त में एंबुलेंस उपलब्ध कराया। हालांकि, ग्रीन जलपाईगुड़ी नामक स्वयंसेवी संस्था के सचिव अंकुर दास ने कहा कि अस्पतालों में एम्बुलेंस चालकों का एक बहुत बड़ा गिरोह है, जो यूनियन के रूप में लोगों को प्रताड़ित करता है।

-अंकुर दास ने आगे कहा कि केंद्र और राज्य सरकार का नियम है कि सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में एम्बुलेंस उपलब्ध करवाया जाएगा, लेकिन किसी को मुफ्त एम्बुलेंस वे लोग देने ही नहीं देते हैं। यहां तक कि स्वयंसेवी संस्था के एम्बुलेंस को भी अस्पताल में घुसने नहीं दिया जाता है। यह घटना जलपाईगुड़ी के लिए शर्म की बात है।

-इस घटना को लेकर भारतीय जनता पार्टी की आईटी सेल के प्रमुख और उत्तर बंगाल के प्रभारी अमित मालवीय ने इससे जुड़े वीडियो को ट्विटर पर डाला है, जिसमें पिता और पुत्र शव को कंधे पर लेकर पैदल चल रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि यह ममता बनर्जी के शासन का मॉडल है। जलपाईगुड़ी में एक पिता-पुत्र की जोड़ी को महिला के शव अपने कंधे पर लेकर जाने को मजबूर होना पड़ा, क्योंकि एम्बुलेंस ने तीन हजार रुपये से कम लेने से इनकार कर दिया।

– कई मंचों से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बेहतर चिकित्सकीय सेवा होने का दावा किया है। वे मुख्यमंत्री होने के साथ ही राज्य की स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, लेकिन राज्य के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्थाओं की बदहाली की कलई अमूमन खुलती ही रहती है।

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