‘वीर सावरकर ही एकमात्र थे जिन्होंने बंटवारे का विरोध किया’

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर विख्यात लेखक विक्रम संपत की दूसरी पुस्तक प्रकाशित हो रही है। इन पुस्तकों में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन और राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए किये गए उनके कार्यों का विवरण है, स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्षों का उल्लेख करते हुए विक्रम संपत ने बताया कि, भारत के विभाजन का जब प्रस्ताव आया तो स्वातंत्र्यवीर सावरकर एकमात्र थे जिन्होंने इसका विरोध किया था।

अपनी पुस्तक ‘सावरकर द कंटेस्टेड लिगसी’ से संबंधित कार्यक्रम में लेखक विक्रम संपत ने कहा कि इतिहास को बार-बार दोहराना चाहिए, उस पर लेखन होना चाहिए, इसी से उसके प्रति जानकारी बढ़ती है। अंग्रेजों की बेड़ियों से राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए उन्हें कड़ी कालापानी की सजा भुगतनी पड़ी, अंदमान जेल में उन्हें असहनीय यातनाएं दी गईं, इंसान को लगनेवाली मूलभूत सुविधाएं भी उन्हें नहीं दी गई। स्वतंत्रता के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया इस पर एंयर कंडीशन कमरे में बैठकर बोलना बहुत आसान है।

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दूसरे खण्ड में क्या है?
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन के कई पहलू हैं। वे क्रांतिकारियों के अग्रणी थे, समाज के लिए पथ प्रदर्शक थे, समाज सुधारक थे, उत्तम वक्ता, लेखर, पत्रकार, कट्टर राष्ट्र प्रेमी थे। पुस्तकों की रुचि और अध्ययन से शुरू हुआ उनका भविष्य देश की स्वतंत्रता के लिए समाज में ज्योति प्रज्वलित करने की ओर ऐसा मुड़ा कि उसने वीर सावरकर के संपूर्ण जीवन को ही राष्ट्रहित और राष्ट्र धर्म के लिए समर्पित कर दिया। इसके लिए उन्होंने अपने निजी जीवन को त्याग दिया, कालापानी की यातना सही। स्वातंत्र्यवीर के जीवन के इन पहलुओं का वर्णन करती है पुस्तक ‘सावरकर इकोज़ फ्रॉम ए फॉरगॉटेन पास्ट’ जो प्रथम खण्ड है। अब दूसरा खण्ड आ रहा है। इसमें स्वातंत्र्यवीर सावरकर के कालापानी मुक्ति के बाद के जीवन का दर्शन होगा।

पहला खण्ड
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन पर इसके पहले विक्रम संपत ने ‘सावरकर: इकोस फ्रॉम ए फॉरगॉटन पास्ट’ लिखा था। जिसमें वीर सावरकर के बाल्यकाल से रत्नागिरी तक पहुंचने की यात्रा का चित्रण उन्होंने किया है।

इस कार्यक्रम में पुस्तक के लेखक विक्रम संपत, स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर मौजूद थे। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी थीं।

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