यौन शोषण के मामले में विवादास्पद निर्णय देनेवाली न्यायाधीश को उनका ही निर्णय भारी पड़ गया है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मुंबई उच्च न्यायालय के विवादास्पद निर्णय को रद्द कर दिया है। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय की न्यायाधीश के स्थाई न्यायाधीश बनाने के अपने प्रस्ताव को भी वापस ले लिया है।
मुंबई उच्च न्यायालय की न्यायाधीश पुष्पा विरेंद्र गनेदीवाला के स्थाई न्यायाधीश बनने के निर्णय को तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने वापस ले लिया है। इसका कारण है कि न्यायाधीश पुष्पा गनेदीवाला ने एक सप्ताह के भीतर ही तीन पोक्सो से संबंधित आरोपियों को बरी करने के विवादास्पद निर्णय सुनाए हैं। जिसका संज्ञान सर्वोच्च न्यायालय ने लिया। 12 वर्षीय एक नाबालिग के साथ अश्लील कृत्य के मामले में मुंबई उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगा दी।
ये भी पढ़ें – वो छेड़छाड़ का मामला नहीं!
कॉलेजियम के न्यायाधीशों का क्या है मत?
मिली जानकारी के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता में न्यायाधीश एनवी रमण और न्यायाधीश रोहिंग्टन फाली नरीमन ने अपने 20 जनवरी को केंद्र सरकार को भेजे गए प्रस्ताव को वापस ले लिया है। सूत्रों के अनुसार ये निर्णय मुंबई उच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों की टिप्पणी के बाद सामने आया है।
ये भी पढ़ें – महाराष्ट्र : खोपोली का वो हटेली खोपड़ी कौन?
ये है मामला
मुंबई उच्च न्यायालय के नागपुर खंडपीठ की न्यायाधीश पुष्पा वी गनेदीवाला ने पोक्सो कानून के अंतर्गत तीन मामलों में आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया था। ये तीनों आदेश एक सप्ताह के भीतर ही सुनाए गए थे।
- 14 जनवरी, 2021 जगेश्वर वासुदेव कवले बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले में न्यायाधीश पुष्पा गनेदीवाला ने निर्णय को पलट दिया था। इसमें पीड़ित पक्ष के पास ऐसे कोई साक्ष्य नहीं है जिनसे बलात्कार की पुष्टि हो, इसे आधार बताते हुए निर्णय सुना दिया। जिससे आरोपी बरी हो गया।
- 15 जनवरी, 2021 को उन्होंने फिर पोक्सो के अधीन एक निर्णय सुनाया जिसमें कहा गया है कि नाबालिग का हाथ पकड़ना और उस समय आरोपी के पैंट की चेन खुला रहना पोक्सो एक्ट के अंतर्गत सेक्शन 7 के अंतर्गत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आता। यह मामला लिबनस विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार के बीच था।
- 19 जनवरी 2021 को सतीश रगडे बनाम महाराष्ट्र सरकार के मामले में न्यायाधीश पुष्पा वी गनेदीवाला ने निर्णय सुनाया कि त्वचा से त्वचा का संपर्क हुए बगैर 12 वर्षीय किशोरी को छूना पोक्सो एक्ट के सेक्शन 7 के अंतर्गत यौन शोषण नहीं है।
इस निर्णय को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय की न्यायाधीश की आलोचना शुरू हो गई। इस मामले को सॉलीसिटर जनरल केके वेणुगोपाल ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाया जिसके बाद इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय ने पलट दिया।