कोरोना काल में पिछले डेढ़ साल से ऑनलाइन एजुकेशन जारी है। गर्व के साथ कहा जाता है कि स्कूल बंद होने के बावजूद विद्यार्थियों की पढ़ाई नहीं रुकी है। लेकिन अब स्कूल बंद होने से खतरे की घंटी बज चुकी है और छात्रों की ड्रॉपआउट दर में वृद्धि हुई है। साथ ही शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच एक गैप पैदा हो गया है। एक सर्वे के मुताबिक इससे बच्चों की पढ़ाई काफी प्रभावित हो रही है।
सर्वेक्षण की रिपोर्ट से बढ़ी चिंता
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने प्राथमिक विद्यालयों में 16,000 से अधिक विद्यार्थियों का सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण में भाषा और गणित में चिंताजनक गिरावट का पता चला। रिपोर्ट के अनुसार 92% बच्चों ने कम से कम एक भाषा की क्षमता खो दी है, जबकि 82% छात्रों ने गणितीय कौशल खो दिया है। सर्वे में अपने स्वयं के अनुभव साझा करना, परिचित शब्दों को पढ़ना, समझ के साथ पढ़ना और चित्रों के आधार पर सरल वाक्य लिखना शामिल था। अध्ययन 1,137 पब्लिक स्कूलों में 16,067 बच्चों पर किया गया था। सर्वे में पांच राज्य – छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड के 44 जिलों के स्कूल शामिल थे।
स्कूल खोलने की जरूरत
रिपोर्ट के अनुसार बच्चों की शिक्षा की उपेक्षा की जा रही है। इसलिए स्कूल खोलने पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ ब्रिज कोर्स, ट्यूटोरियल, उपयुक्त मानकीकृत पाठ्यक्रम, अध्ययन के विस्तारित घंटे में मदद करने पर जोर दिया जाना चाहिए। इस पर हर स्तर पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। इस बारे में दीपा बालकृष्णन ने फाउंडेशन के सीईओ अनुराग बेहेर का इंटरव्यू लिया। उनके अनुसार, इसके लिए एक योजना तैयार करने की जरूरत है और सभी स्कूलों को तुरंत फिर से खोलने की जरूरत है। चूंकि बच्चों को नजदीकी स्कूल में भेजना सुविधाजनक है, इसलिए इसे भारत के साथ-साथ पश्चिमी देशों में भी लागू करने की आवश्यकता है।
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जल्द शुरू होगा स्कूल
भारत में लगभग 18 महीनों में पहली बार बच्चे स्कूल जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि माता-पिता ने अपनी चिंताओं को एक तरफ रख दिया है और प्रशासन को स्कूलों को फिर से खोलने के लिए हरी झंडी दे दी है, भले ही संक्रमण बढ़ रहा हो। सितंबर में कम से कम देश के छह और राज्यों में स्कूल- कॉलेज स्वास्थ्य उपायों के साथ धीरे-धीरे फिर से खुल जाएंगे।