नहीं रही अनाथों की नाथ… ऐसा विशाल जीवन कि हर किसी के लिए ममता मूर्ति थीं सिंधुताई

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अनाथ बचपन के लिए ममता की मूर्ति थीं सिंधुताई सपकाल। उनके ममतामयी रूप पर फिल्म भी बन चुकी हैं। हजारों बचपन की ममतामयी छांव ने मंगलवार को अंतिम विराम ले लिया। वे पिछले डेढ़ महीने से बीमार चल रही थीं।

सिंधुताई सपकाल द्वारा अनाथ बालकों के लिए कई आश्रम संचालित किये जाते हैं। सिंधुताई का जन्म 14 नवंबर, 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा में हुआ था। उनका परिवार पशुपालक था। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत गंभीर थी। उनके पिता का नाम अभिमानजी साठे था, सिंधुताई के पिता चाहते थे कि उनकी बेटी शिक्षा ग्रहण करे, इसके कारण वे स्कूल भेजते थे। परंतु, मां के विरोध, आर्थिक बदहाली और बालविवाह के कारण सिंधुताई चौथी तक ही शिक्षा ग्रहण कर पाईं।

नौ साल की आयु में विवाह
सिंधुताई का विवाह 9 साल की आयु में 26 वर्ष के श्रीहरि सपकाल से हुआ। वे शुरू से ही संकटों से लड़ने और महिलाओं के अधिकारों के लिए कार्य करती रही। सिंधुताई ने उन महिलाओं के लिए लड़ाई शुरू की जिनका उपयोग वन विभाग और जमींदार गोबर इकट्ठा करने के लिए करते थे। इससे सिंधुताई का जीवन कठिन हो गया।

जमींदार के उस आरोप ने कर दिया बेघर
सिंधुताई की आयु 20 वर्ष की थी, वे गर्भवती थीं, जब एक जमींदार ने उनके विषय में झूठी खबर उड़ा दी। इसके बाद सिंधुताई के पति के मन में उनके विरुद्ध आक्रोष उत्पन्न हो गया। पति ने सिंधुताई को घर से निकाल दिया। मायके में मां के विरोध के कारण शरण नहीं मिली। सिंधुताई ने अपनी बेटी का जन्म पशुओं के बाड़े मे दिया।

चिकलदारा से जीवन को मिला नया आयाम
बेघर सिंधुताई अपनी बेटी के साथ अमरावती जिले में पहुंची थीं। जहां चिकलदरा में व्याघ्र प्रकल्प के लिए 84 आदिवासी गांव खाली कराए गए थे। सिंधुताई ने उन आदिवासियों के पुनर्वसन के लिए संघर्ष शुरू किया। इसका परिणाम ये हुआ कि, वनमंत्री को सिंधुताई का मांग माननी पड़ी। आदिवासियों का पुनर्वसन किया गया।

बेटी को दे दिया दत्तक और बन गईं हजारों अनाथ की मां
सिंधुताई ने अपनी पुत्री को श्री दगडू सेठ हलवाई, पुणे ट्रस्ट को दत्तक दे दिया। इसका कारण था कि, वे उन अनाथों की मां बनना चाहती थीं, जिनका दुनिया में कोई नहीं था। कई वर्षों तक सेवा और अथक परिश्रम के बाद सिंधुताई ने चिकलदरा में अपना पहला आश्रम बनाया। इसमें उन्होंने डेढ़ हजार बच्चों को आश्रय दिया और वो अनाथों की माई बन गईं।

सिंधुताई संचालित संस्थाएं

  • बाल निकेतन हडपसर ,पुणे
  • सावित्रीबाई फुले बालिका वसतिगृह , चिकलदरा
  • अभिमान बाल भवन , वर्धा
  • गोपिका गौ रक्षण केंद्र , वर्धा ( गोपालन)
  • ममता बाल सदन, सासवड
  • सप्तसिंधु महिला आधार बालसंगोपन व शिक्षणसंस्था, पुणे

सिंधुताई के जीवन पर फिल्म
सिंधुताई के जीवन पर वर्ष 2010 में मराठी फिल्म “मी सिंधुताई सपकाल” नामक फिल्म बनी थी। इसे 54वें लंदन फिल्म महोत्सव में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए चयनित किया गया था। इस फिल्म का निर्माण अनंत महादेवन ने किया था।

पुरस्कार व गौरव
सिंधुताई को 750 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। इसमें पद्मश्री सबसे महत्वपूर्ण है।

  • महाराष्ट्र सरकार का डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समाज भूषण पुरस्कार (2012)
  • पुणे अभियांत्रिकी कॉलेज का ‘कॉलेज ऑफ इंजीनिअरिंग पुरस्कार’ (2012)
  • महाराष्ट्र सरकार का ‘अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार’ (2010)
  • मूर्तिमंत आईसाठीचा राष्ट्रीय पुरस्कार (2013)
  • आईटी प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन का दत्तक माता पुरस्कार (1996)
  • सोलापुर का डॉ. निर्मलकुमार फडकुले स्मृति पुरस्कार
  • राजाई पुरस्कार
  • शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार.
  • डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी पुरस्कार (2017)
  • पुणे विश्वविद्यालय का ‘जीवन गौरव पुरस्कार’

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