Nasik Kumbh: महाकुंभ के आयोजन के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब मुसलमान भी चर्चा के केंद्र में हैं। महाकुंभ में मुसलमानों की इस मेला परिसर में एंट्री पर प्रतिबंध रहा । सबसे पहले मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की मांग अखाड़ा परिषद ने उठाई ।अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कुंभ मेले में लव जिहाद, संतों की सुरक्षा, गौ हत्या पर प्रतिबंध, कुंभ मेला क्षेत्र को हरा भरा और स्वच्छ बनाने सहित कुंभ मेले के दौरान सभी सुरक्षा पर सरकार की ओर से विशेष ध्यान देने की अपील की थी ।
अखाड़ा परिषद ने कहा था कि कुंभ में शाही और पेशवाई जैसे नाम शब्द प्रयोग नहीं किए जाएंगे और शाही स्नान की जगह अमृत स्नान कहा जाएगा । महाकुंभ में सुरक्षा के मद्देनजर पहचान पत्र दिए गए ताकि संतों की पहचान हो सके । ताकि कोई भी मुसलमान संत बनकर न आ जाए ।
महाकुंभ क्षेत्र में पहली बार मुसलमान दुकानदारों की एंट्री बैन
महाकुंभ 2025 क्षेत्र में मुसलमान अपनी दुकान नहीं लगा पाया । कोई भी मुसलमान कारीगर कोई भी चीज खाने-पीने की चीज नहीं बना पाया और कुंभ का मेला मुसलमानों के लिए पूरी तरह से प्रतिबंध हो गया । इसकी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई लेकिन महाकुंभ में तमाम संतो ने बयान दिया कि यहां मुसलमानों की दुकानें नहीं लगेंगी और इसका व्यापक असर हुआ. 99 प्रतिशत मुसलमानों ने वहां दुकान नहीं लगाई ।
उत्तर पीठ (ज्योतिष) के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने मेला शुरू होने से पहले बयान दिया कि ‘मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का शरीफ में हिंदुओं को 40 किमी पहले ही रोक देते हैं। क्यों रोकते हैं? वो इसलिए न कि हमारा मुसलमानों का तीर्थ है तुम्हारा क्या काम है? तो ठीक है, हम भी कह रहे हैं कि ये हमारा कुंभ है, तुम्हारा क्या काम है? इसमें गलत क्या है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेले में मुसलमानों की एंट्री पर कही ये बात
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा जिनके मन में भारत और भारतीयता के प्रति सनातन परंपरा के प्रति सम्मान और श्रद्धा का भाव है वह यहां पर आ सकते हैं ।अगर कोई कुत्सित मानसिकता के साथ यहां आता है तो मुझे लगता है उसकी भावनाओं को भी अच्छा नहीं लगेगा ।उसके साथ यहां पर अन्य तरीके से व्यवहार हो सकता है । इसलिए वैसे लोग ना ही आए तो अच्छा है । श्रद्धा के साथ आने वाला हर व्यक्ति प्रयागराज आ सकता है
बहुत से लोग हैं जिनके पूर्वजों में किसी कालखंड में किसी दबाव में आकर उपासना विधि के रूप में इस्लाम स्वीकार किया था ।
कुंभ मेले की उत्पत्ति
कुंभ मेले की उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथाओं में निहित है। प्राचीन हिंदू शास्त्रों में समुद्र मंथन की कहानी के अनुसार, देवताओं और राक्षसों (असुरों) ने अमृत (अमरता का अमृत) के लिए लड़ाई लड़ी थी। इस खगोलीय युद्ध के दौरान, अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरी थीं – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक – जहां अब कुंभ मेला आयोजित किया जाता है, महाकुंभ प्रयागराज में हर 144 साल में एक बार होता है । ऐतिहासिक रूप से, महा कुंभ मेले का उल्लेख प्राचीन काल से किया जाता रहा है, जिसके अभिलेख मौर्य और गुप्त काल के हैं। इसे मुगलों सहित विभिन्न राजवंशों से शाही संरक्षण प्राप्त हुआ और जेम्स प्रिंसेप जैसे औपनिवेशिक प्रशासकों द्वारा इसका दस्तावेजीकरण किया गया । सदियों से , यह एक वैश्विक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक घटना के रूप में विकसित हुआ।
प्रत्येक कुंभ मेले का समय सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की ज्योतिषीय स्थिति से निर्धारित होता है , जिसे आध्यात्मिक शुद्धि और आत्मज्ञान के लिए एक शुभ अवधि का संकेत माना जाता है। यह त्यौहार आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम है, जो तपस्वियों, साधकों और भक्तों को समान रूप से आकर्षित करता है। इस आयोजन की भव्यता शाही स्नान (स्नान अनुष्ठान), आध्यात्मिक प्रवचन और जीवंत सांस्कृतिक जुलूसों द्वारा चिह्नित की जाती है जो भारत की गहरी आध्यात्मिक विरासत को दर्शाते हैं।
नासिक महाराष्ट्र 2027 में लगेगा अगला कुंभ मेला
अगला कुंभ नासिक में गोदावरी नदी के तट पर लगेगा जोति 2027 में आयोजित होगा । यहां पिछली बार 2015 में जुलाई से सितंबर तक कुंभ मेला लगा था । मान्यता है कि जब सिंह राशि में गुरू और सूर्य हो तब नासिक में गोदावरी नदी के तट पर कुंभ लगता है। सवाल यह है कि प्रयागराज जैसा यहां भी मेले में मुस्लिम व्यावसाईयों ओर आम मुसलमानों पर प्रतिबंध लगेगा।