उन अस्थियों को है अपनों का इंतजार

कोरोना महामारी ने मानवता को वैश्विक क्षति पहुंचाई है। इससे अब तक 49.8 लाख लोगों को अपने प्राण गंवाने पड़े हैं, जबकि 24.6 करोड़ लोगों को इसका त्रासदी से जूझना पड़ा है।

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कोरोना ने कैसे-कैसे दिन दिखाए… अपनों को छीना, असंख्य लोगों को बेसहारा बना दिया… इस परिस्थिति की मार जीवित झेल रहे हैं तो मृतकों को भी झेलना पड़ा है। इस महामारी से प्राण गंवानेवाले लोगों को अपनों के हाथों मुखाग्नि भी नहीं मिल पाई। इन लोगों की स्वास्थ्य कर्मियों, सामाजिक संगठन और स्मशान कर्मियों ने अंत्येष्टियां की, और वर्तमान में इनमें से कई की अस्थियां इंतजार में हैं।

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कोविड के कारण देश में 4.57 लाख लोगों को असमय मौत की नींद सोनी पड़ी। इससे ग्रसित लोगों के प्राण तो अनंत में विलीन हो गए परंतु, काया की बची राखें अब भी स्मशानों के लॉकर में राह देख रही हैं। यह परिस्थिति पूरे देश में बनी हुई है और इसका एक उदाहरण मीरा भाइंदर शहर भी है, जहां भोला नगर स्मशान में 55 से अधिक अस्थि कलश महीनों से रखे हुए हैं। शहर के अन्य स्मशानों में भी परिस्थिति कम या अधिक यही है।

भूल गए अपने
वैसे बता दें कि, मीरा भाइंदर शहर की जनसंख्या लगभग 12 लाख है। शहर सभी सुविधाओं से संपन्न है, जन्म से लेकर जीवन के अंतिम विराम तक लगनेवाले संसाधन उपलब्ध हैं। लेकिन कोविड-19 ने कुछ परिवारों से आत्मीयता ही छीन ली हैं। ये भूले तो अस्थियों को गंगा की धारा भी नहीं मिल पाई है… यदि यह बोल पातीं तो शायद यही कहती कि, मेरे अपनों मुखाग्नि न दे पाए तो कम से कम अस्थि विसर्जन की आस तो न जगाते।

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