Bhagwat Geeta: स्वयं के उदाहरण द्वारा नेतृत्व, पढ़ें भगवद गीता की ये पंक्तियां

वैसे तो गीता समग्र रूप से प्रेरणादायक और जीवन में उत्साह जगाने वाली रचना है, लेकिन संख्या 3.20 से 3.26 तक के श्लोक विशेष रूप से नेतृत्व के विषय से संबंधित है। ‌कहा गया है कि सामान्य जन महापुरुषों के पदचिन्हों पर चलते हैं।

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– विजय सिंगल

जीवन (Life) के किसी भी क्षेत्र में-चाहे वह राजनीति हो, चाहे धर्म, व्यवसाय या जीवन का कोई अन्य क्षेत्र हो-नायक अपने प्रभाव से संबंधित क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका (Important Role) निभाते हैं। समाज के पथ-प्रदर्शक पथ प्रकाशित करते हैं और दूसरों के लिए अनुसरण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। एक नायक अपने अनुयायियों को उनकी पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए प्रेरित करता है; और उनकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने में उनका मार्गदर्शन करता है। ‌भगवत गीता (Bhagwat Geeta) में श्री कृष्ण (Shri Krishna) ने एक सच्चे नायक की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की है।

वैसे तो गीता समग्र रूप से प्रेरणादायक और जीवन में उत्साह जगाने वाली रचना है, लेकिन संख्या 3.20 से 3.26 तक के श्लोक विशेष रूप से नेतृत्व के विषय से संबंधित है। ‌कहा गया है कि सामान्य जन महापुरुषों के पदचिन्हों पर चलते हैं। ऐसे सम्माननीय मनुष्य द्वारा अपने आचरण से स्थापित मानकों का सारा विश्व अनुसरण करता है। क्योंकि आम लोग उनके चरित्र का अनुसरण करते हैं, इसलिए प्रतिष्ठित महापुरुषों से अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने का आग्रह किया गया है। ‌दूसरों के द्वारा अनुसरण के लिए, एक नायक को अपने स्वयं के कार्यों के माध्यम से एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।

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भलाई के लिए काम करना चाहिए
जब सदाचारी लोग आगे होते हैं, तो समाज का स्वाभाविक रूप से नैतिक और भौतिक उत्थान होता है। ‌दूसरी ओर, सिद्धांत पर आधारित नेतृत्व के अभाव में सामाजिक पतन होता है। ‌नेक लोगों का कर्तव्य है कि वे सामान्य लोगों के लिए एक उचित मूल्य प्रणाली स्थापित करें। इसलिए श्री कृष्ण ने ज्ञानी पुरुषों का आह्वान किया है कि वह दुनिया के लिए एक आदर्श स्थापित करने के लिए काम करें। ‌केवल अपने स्वार्थ के लिए काम करने के बजाय उन्हें जनसाधारण के कल्याण के लिए काम करना चाहिए। ‌अज्ञानी लोग संसार में जैसे आसक्ति से प्रेरित होकर परिश्रम करते हैं, वैसे ही विद्वान को अनासक्त भाव से सब की भलाई के लिए काम करना चाहिए।

सच्चा जननायक अपने कार्यों से प्रदर्शित
यह भी सलाह दी गई है कि बुद्धिमान व्यक्ति को किसी भी ऐसे अज्ञानी मनुष्य का अपमान नहीं करना चाहिए जो अभी तक अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं जान पाने के कारण अपने सांसारिक कर्मों में आसक्त है। ऐसे अज्ञानी व्यक्ति की कार्यप्रणाली की नैतिकता का एकाएक खंडन उसके मन में भ्रम पैदा करके उसे अकर्मण्यता अथवा नितांत गलत दिशा में जाने के लिए प्रेरित कर सकता है। निस्वार्थ कर्म के उच्च सिद्धांत में दृढ़ विश्वास पैदा किए बिना, स्वार्थ युक्त कर्म में भी ऐसे लोगों का विश्वास डगमगा दिया जाए तो अधर में लटके इन लोगों के पास सहारे के लिए कोई भी सही या गलत सिद्धांत नहीं रह जाएगा इसलिए आम आदमी का मन किसी भी तरह से विचलित नहीं कर देना चाहिए जनसाधारण की सामान्य गतिविधियों में अड़चन डालने की बजाय, एक प्रबुद्ध व्यक्ति को स्वयं इस तरह के परिश्रम के साथ निस्वार्थ रूप से काम करना चाहिए कि अन्य व्यक्ति भी उसके व्यवहार का अनुसरण करने के लिए इच्छुक हो जाए और इस प्रकार अपने जीवन को धीरे-धीरे ऊपर उठाने का प्रयास करें इस प्रकार एक सच्चा जननायक अपने कार्यों से प्रदर्शित करता है कि कैसे हर कोई एक व्यापक एवं साझे उद्देश्य की दिशा में काम कर सकता है।

जिन लोगों ने भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में सफलता के शिखर को प्राप्त कर लिया है, उन्हें भी दूसरों को सही रास्ता दिखाने के लिए अपने स्वाभाविक कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए। इस संबंध में श्री कृष्ण ने जनक (मिथिला के राजा) का उदाहरण दिया है, जिन्होंने पूर्णता प्राप्त करने के बाद भी ,दुनिया की भलाई के लिए अपनी सांसारिक जिम्मेदारियां का ईमानदारी से निर्वहन करना जारी रखा ऐसे जननायक अपने लोगों का सम्मान और विश्वास अर्जित करते हैं।

कोई कार्य करने की आवश्यकता नहीं
श्री कृष्ण ने अपने स्वयं के उदाहरण से नेतृत्व की अवधारणा को और अधिक स्पष्ट किया है। स्वयं परमेश्वर होने के कारण उन्हें ना तो किसी वस्तु की कमी है और ना ही उन्हें कुछ प्राप्त करने की आवश्यकता है। इसलिए उनके लिए कोई कर्तव्य निर्धारित नहीं है। ‌उन्हें कोई कार्य करने की आवश्यकता नहीं है। फिर भी, वे निरंतर गतिविधि में संलग्न है; क्योंकि यदि वह अपने को सही कर्म में नहीं लगाएंगे, तो लोग भी, जो हर तरह से उनके मार्ग का अनुसरण करते हैं, वे भी सही काम करना बंद कर देंगे और इस तरह तो पूरी दुनिया बर्बाद हो जाएगी। ऐसी अराजक स्थिति पैदा करने के लिए वे दोषी होंगे इस प्रकार वे सभी प्राणियों की शांति को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार होंगे।

कर्तव्यों का पालन करना
भगवत गीता में यह भी बहुत स्पष्ट कर दिया गया है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी उच्च पदस्थ और शक्तिशाली क्यों ना हो, कारण और परिणाम के सिद्धांत या प्रकृति के अन्य नियमों से मुक्त नहीं है। यहां तक की स्वयं परमेश्वर को भी श्री कृष्ण के मनुष्य रूप में पृथ्वी पर प्रकट होने पर, समाज में अपनी (श्री कृष्ण की) स्थिति के अनुसार, कर्तव्यों का पालन करना पड़ा। ‌यहां तक कि वह अपनी किसी आक्रमान्यता या अपने किसी भी गलत कार्य के लिए जवाबदेही से नहीं बच सकते थे।

पूर्ण जिम्मेदारी लेनी चाहिए
उच्च पदस्थ व्यक्तियों को अपने लोगों के प्रति ईमानदार होना चाहिए। उसे अपने ही द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना होता है। इसलिए किसी भी जननायक को बिना थके काम करना चाहिए, किसी स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि व्यापक भलाई के लिए उसे अपने व्यवहार द्वारा उदाहरण प्रस्तुत करते हुए नेतृत्व करना चाहिए, न की कोरे उपदेश द्वारा। इसके अलावा, उसे हमेशा अपने कार्यों के परिणामों की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार रहना चाहिए। उसे किसी भी विफलता को , न केवल स्वीकार करने में सक्षम होना चाहिए, बल्कि उसकी पूर्ण जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए।

हर संभव प्रयास करना चाहिए
इसे कॉर्पोरेट जगत की भाषा में कहें तो टीम लीडर को हमेशा अपनी टीम को प्रेरित करते रहना चाहिए। खराब प्रदर्शन करने वालों को फटकारने के बजाय अपने व्यवहार से उनका मार्गदर्शन करना चाहिए और उन्हें धीरे-धीरे सुधार करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। ‌अपने और अपनी टीम के लिए निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। साथ ही, सफलता का श्रेय अपनी टीम के साथ उदारतापूर्वक बांटने के लिए भी उसे तैयार रहना चाहिए; और जिस टीम का वह नेतृत्व करता है उसकी विफलता को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए।

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