तो बच जाता जोशी मठ, सरकार के पास दो दशक से पड़ी है वो रिपोर्ट

जोशी मठ को खाली कराया जा रहा है। सुरक्षा को देखते हुए लोगों को अस्थाई ठिकानों पर स्थानांरित किया गया है।

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जोशी मठ धँस रहा है। सरकार खतरनाक घरों को ढहा रही है। बस्तियां उजड़ने के पहले वीरान हो गई हैं, इस बीच दशकों पहले पहाड़ों और पर्यावरण संतुलन को बचाने के लिए चिपको आंदोलन को जन्म देनेवाले चंडी प्रसाद भट ने बताया है कि, दो दशक पहले ही सरकार को जोशी मठ में होनेवाले संभावित खतरे को लेकर रिपोर्ट सौंपी गई थी। यदि उस रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने कदम उठाए होते तो जोशी मठ बच जाता।

जोशी मठ में केंद्र सरकार और इंग्लैंड के सहयोग से माइक्रो सिस्मिक ऑब्जर्वेशन सिस्टम स्थापना का निर्णय किया है। जबकि, दो दशक पहले सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से जोनेशन मैपिंग की गई थी। जिसमें जोशी मठ में संभावित खतरे को लेकर आगाह किया गया था। रिमोट सेन्सिंग की सहायता से ज्योग्राफिक इन्फोर्मेसन सिस्टम के द्वारा किये गए अध्ययन में 12 वैज्ञानिक संस्थाएं शामिल थीं। इसमें नेशनल रिमोट सेन्सिंग एजेन्सी भी शामिल थी। समाचार एजेंन्सी पीटीआई से किये गए वार्तालाप के अनुसार चंडी प्रसाद भट ने बताया कि वर्ष 2001 में उत्तराखण्ड की तत्काल सरकार को रिपोर्ट सौंपी गई थी।

इन क्षेत्रों की हुई थी मैपिंग
वैज्ञानिकों ने वर्ष 2000 में जिन क्षेत्रों का जोनेशन मैपिंग की थी, उसमें चार धाम यात्रा और मानसरोवर यात्रा मार्ग का समावेश है। जिसमें देहरादून, टेहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, पिथोरागढ़, नैनिताल और चमोली जिलों का समावेश है। इसके अंतर्गत 124.54 स्व्केयर किलोमीटर का समावेश था।

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खतरेवाला है क्षेत्र
जोनेशन मैपिंग में समाविष्ट किये जिलों को छह भागों में बांटा गया था। जिसमें, 99 प्रतिशत क्षेत्र को भूस्खलन वाला क्षेत्र बताया गया था। इसमें से 39 प्रतिशत क्षेत्र अत्यधित खतरेवाला जोन, 28 प्रतिशत क्षेत्र मध्यम खतरेवाला जोन, और 29 प्रतिशत कम खतरेवाला जोन है। इस पूरी रिपोर्ट को तत्कालीन सरकार और प्रशासन से साझा किया गया है।

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