प्रवासी बिहारी मजदूरों की ये कैसी बेबसी?

हैदराबाद से बिहार के लिए एक बुरी खबर सामने आई कि वहां पर हुई एक भीषण आगजनी की घटना में बिहार के 11 मजदूर जिंदा जल गए।

176

बिहार दिवस के ठीक बाद हैदराबाद से बिहार के लिए एक बुरी खबर सामने आई कि वहां पर हुई एक भीषण आगजनी की घटना में बिहार के 11 मजदूर जिंदा जल गए। ये सभी सारण और कटिहार जिलों के थे। ये सब अभागे मजदूर कबाड़ गोदाम में लगी भीषण आग में फंस गए थे। आग इतनी तेज थी कि फायर ब्रिगेड की नौ गाड़ियों को आग पर काबू करने में तीन घंटों से भी अधिक का समय लगा। इन मजदूरों के परिवारों के लिए तेलंगाना और बिहार की सरकारों ने कुछ मुआवजे की घोषणा की रस्म पूरी कर दी है। मुआवजे की घोषणा का मतलब यह हुआ कि अब केस खत्म हो गया।

मजदूरी के कामों में बिहारी ही क्यों?
अब कोई इस विषय पर विचार नहीं करेगा कि देश के चप्पे-चप्पे पर होने वाले निर्माण कार्यों से लेकर छोटे-मोटे मजदूरी के कामों में बिहारी ही क्यों लगे हुए हैं? आप लद्दाख की राजधानी लेह से लेकर गोवा के सुदूर क्षेत्रों और देश के दूरदराज वाले इलाकों में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बिहारी मजदूरों को दिन-रात सड़कों से लेकर फैक्ट्रियों और खेतों से लेकर घर-दफ्तरों के बाहर देखेंगे। ये कितनी कठोर परिस्थितियों में काम करते हैं, इसको जानने की किसी को चिंता नहीं है। किसी को इस बात की जल्दी भी नहीं है कि बिहारी मजदूरों के हक में कोई ठोस योजना बना ली जाए।

ये भी पढ़ें – दिग्विजय सिंह को एक साल की सजा! जानिये, क्या है मामला

खुद गरीब रहकर पंजाब को बनाया समृद्ध
पंजाब आज अगर कृषि क्षेत्र में देश में अहम राज्य का दर्जा पा चुका है तो इसका सबसे बड़ा श्रेय बिहारी मजदूरों को ही जाता है। ये दिन-रात अपनी मेहनत से पंजाब के खेतों को हरा-भरा करते हैं। पर वहां हाल तक कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे चरणजीत सिंह चन्नी बिहारियों के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। उन्हें “भैये” कहकर गालियां दे रहे थे। मतलब यह कि सिर्फ खून-पसीना बहाने के लिए ही हैं बिहारी मजदूर। पंजाब के खेतों में धान की रोपाई के लिए या गेहूं की कटाई के लिए राज्य को बिहार के खेतिहर मजदूरों का ही इंतजार रहता है। बिहार के छपरा, पूर्णिया, मोतिहारी आदि जिलों और पूरे मिथिलांचल के खेती करनेवाले किसान पंजाब पहुंचकर खेतों की रोपाई करते हैं। पर उन्हें मिलता क्या है? सिर्फ इतनी मजदूरी ताकि वे जी भर सकें।

कश्मीर में मारे गए कई बिहारी मजदूर
आजकल ‘दि कश्मीर फाइल्स’ फिल्म की सारे देश में चर्चा हो रही है। उसमें कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के ऊपर हुए जुल्मों सितम को दिखाया गया है। यह जरूरी भी था। पर कोई यह नहीं बताता कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद के बढ़ने के बाद से न जाने कितने प्रवासी बिहारी मजदूर भी मारे जा चुके हैं। इनकी संख्या भी हजारों में है। वहां पर कुछ समय पहले ही बिहार के भागलपुर से काम की खोज में आए गरीब वीरेन्द्र पासवान को भी गोलियों से भूना गया था। पासवान की मौत पर उसके घरवालों या कुछ अपनों के अलावा रोने वाला भी कोई नहीं था। पासवान का अंतिम संस्कार झेलम किनारे दूधगंगा श्मशान घाट पर कर दिया गया था। वीरेंद्र पासवान गर्मियों के दौरान पिछले कई वर्षों से कश्मीर में रोजी-रोटी कमाने आता था। वह श्रीनगर में ठेले पर गोलगप्पे बेचता था। हैदराबाद में मारे गए बिहारी मजदूरों की तरह पासवान के परिवार को भी कुछ राशि दे दी गई थी, ताकि वे अपने आंसू पोंछ लें।

बिहारियों की आंसू भरी कहानी
जरा याद करें कि किस तरह लॉकडाउन के दौर में लाखों बिहारी मजदूर सड़कों पर पैदल चले जा रहे थे, अपने घरों की तरफ। बिहारियों की आंसुओं भरी कहानी का इतिहास बहुत पुराना है। इन्हें ब्रिटिश सरकार “गिरमिटिया” श्रमिकों के रूप में मॉरिशस, गयाना, त्रिनिडाड-टोबैगो, सूरीनाम, फीजी आदि देशों में लेकर गई थी, गन्ने के खेतों में काम करवाने के लिए। इन श्रमिकों ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कमाल की जीवटता दिखाई और घोर परेशानियों से दो-चार होते हुए अपने लिए जगह बनाई। इन्होंने लंबी समुद्री यात्राओं के दौरान अनेक कठिनाइयों को झेला।

बिहारियों का विकास में महत्वपूर्ण योगदान
दरअसल ब्रिटेन को 1840 के दशक में गुलामी का अंत होने के बाद भारी संख्या में खेतों में काम करने वाले श्रमिकों की जरूरत पड़ी जिसके बाद भारत से गिरमिटिया मजदूर बाहर के देशों में जाने लगे। लेकिन दुख इस बात का है कि अंग्रेजी राज खत्म होने के इतने दशक गुजर जाने के बाद भी गरीब बिहारी की जिंदगी में सुधार नहीं हो रहा है। उसे तो अपने घर, धरती और संबंधियों से दूर जाकर ही पेट की आग को बुझाना पड़ रहा है। देश-दुनिया के किसी भी भाग में बिहार के नागरिक के मारे जाने या अपमानित किए जाने पर कोई खास प्रतिक्रिया तक नहीं होती। यह नहीं देखा जाता कि बिहारी जहां भी जाता है वहां पूरी मेहनत से जी-जान लगाकर काम करता है और क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करता है।

बिहार में ही रोजगार के भरपूर अवसर
बिहार से बाहर बहुत से लोगों को लगता है कि बिहार के लोग तो सिर्फ सिविल सेवा में आते हैं। वे आईएएस, आईपीएस, आईएफएस बनना चाहते हैं। यह भी बिहार का एक छोटा-सा सच है। जिस राज्य में रोजगार के मौके नगण्य होंगे, वहां का पढ़ा-लिखा नौजवान सरकारी नौकरी की तरफ आकर्षित होगा ही। बिहार से हर साल हजारों नौजवान विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठते हैं। उसमें से कुछ पास हो जाते हैं और शेष धक्के खाते रहते हैं। इनमें से कई ट्यूशन पढ़ाते-पढ़ाते वरिष्ठ नागरिक का दर्जा प्राप्त कर लेते हैं। यह याद रखा जाए कि जब तक बिहार में ही रोजगार के भरपूर अवसर पैदा नहीं होंगे तबतक बिहारियों की दुर्दशा होती ही रहेगी।

बिहार में इस तरह का वातावरण
बिहार में रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने होंगे। बिहार में इस तरह का वातावरण बनाना होगा ताकि टाटा, रिलायंस, एचसीएल, जिंदल, महिन्द्रा गोयनका, मारूति, इंफोसिस जैसी श्रेष्ठ कंपनियां राज्य में भी भारी निवेश करें। जब बिहार में हर साल हजारों करोड़ का निवेश होगा तो फिर कहीं जाकर बिहार के लोगों को राज्य से बाहर जाना नहीं पड़ेगा। उन्हें राज्य में ही नौकरी मिल जाएगी।

सबसे बड़ा सवाल
बिहार के सभी सियासी दलों को इस सवाल को अपने से पूछना होगा कि उन्होंने राज्य में निजी क्षेत्र का निवेश लाने में क्या किया? महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु जैसे राज्यों का तगड़ा विकास इसलिए हो रहा है क्योंकि इनमें हर निजी क्षेत्र का तगड़ा निवेश आ रहा है। हमने देखा कि गुजरे कुछ दशकों के दौरान देश के अनेक शहर मैन्यूफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र के हब बनते गए। पर इस मोर्चे पर भी बिहार पिछड़ गया। अब बताइये कि इन हालात में गरीब बिहारी के पास रोजी-रोटी के लिये राज्य से बाहर जाने के अलावा क्या विकल्प है।

आर.के. सिन्हा

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.