अंबाजी मंदिर प्रसाद प्रकरण: सड़क से सदन तक लड़ाई, आस्था की जीत में मान्य हुआ मोहनथाल

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गुजरात के बनासकांठा में अंबाजी मंदिर में शुरू हुए प्रसाद प्रकरण का पटाक्षेप हो गया है। अनंतकाल से अंबाजी को चढ़ाया जा रहा मोहनथाल का प्रसाद फिर से भक्त अर्पित कर सकेंगे। सरकार द्वारा नियुक्त मंदिर ट्रस्ट ने मोहनथाल के स्थान पर चिक्की का प्रसाद शुरू करवाया था। जिसका अंबाजी मंदिर की सड़कों से लेकर गुजरात विधानसभा तक तीव्र विरोध हुआ और भाजपा सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा।

अंबाजी मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहां मंदिर में अंबाजी की मूर्ति नहीं है बल्कि, देवी का श्रीयंत्र है, जिसे पूजा जाता है। यहां पर अंबाजी को चढ़ाने के लिए नैवेद्य के रूप में श्रद्धालु मोहनथाल लेकर जाते थे, जिसे राज्य सरकार के अधीन ट्रस्टियों ने बंद करने का आदेश दे दिया। सरकारी ट्रस्ट ने यहां प्रसाद के रूप में चिक्की का प्रसाद चढ़ाने का प्रस्ताव पास कर दिया। जिससे हिंदुओं में असंतोष बढ़ गया। इसका बड़े स्तर पर विरोध हुआ। भक्तों ने सड़कों पर उतरकर विरोध किया तो विपक्ष ने सदन में इस मुद्दे पर सरकार को घेर लिया। अंत में सरकार की ओर से कहा गया है कि, अंबाजी मंदिर में पारंपरिक मोहनथाल बंद नहीं होगा, बल्कि उसके साथ चिक्की का प्रसाद भी चढ़ाया जा सकेगा।

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सरकार के अधीन है ट्रस्ट
अंबाजी मंदिर भी देश के उन असंख्य मंदिरों में से एक है जहां ट्रस्ट में सरकार द्वारा अनुमोदित जन ट्रस्टी बनते हैं। जिससे यहां के कोष पर सरकारी राज है। देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक होने के कारण यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। करोड़ो रुपए का चढ़ावा आता है। इन सभी पर सरकारी नियंत्रण रहता है। इसी ट्रस्ट ने अंबाजी मंदिर में मोहनथाल चढ़ाने पर रोक लगाकर चिक्की का प्रसाद चढ़ाने का प्रस्ताव पास किया था।

हिंदू वोट और नीयत में खोट
भारतीय जनता पार्टी की गुजरात में लंबे काल से सरकार है। भाजपा हिंदुओं की बात करती है लेकिन अंबाजी मंदिर के नैवेद्य को लेकर भक्तों को जो विरोध प्रदर्शन करना पड़ा इसके कारण स्थानीय लोगों में निराशा है। भक्तों ने प्रश्न किया कि, हिंदू वोट मांगनेवालों की नीयत में खोट क्यों आ गई। भक्तों की भावना देख गुजरात के विपक्षी दलों ने भी सरकार को घेरने में कोई कमी नहीं छोड़ी।

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