प्रख्यात खगोलशास्त्री (Eminent Astronomer) और विज्ञान लेखक प्रोफेसर जयंत विष्णु नार्लीकर (Jayant Vishnu Narlikar) का 20 मई (मंगलवार) पुणे (Pune) स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे। उनके निधन से वैज्ञानिक समुदाय (Scientific Community) और साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। प्रोफेसर नार्लीकर न केवल एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक (Scientist) थे, बल्कि एक लोकप्रिय विज्ञान लेखक (Science Writer) और शिक्षाविद (Academician) भी थे।
पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, डॉ. नार्लीकर का मंगलवार सुबह नींद में ही निधन हो गया। हाल ही में शहर के एक अस्पताल में उनके कूल्हे की सर्जरी हुई थी। उनके परिवार में तीन बेटियाँ हैं। 19 जुलाई 1938 को जन्मे डॉ. नार्लीकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के परिसर में पूरी की। उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर गणित विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख थे। उच्च शिक्षा के लिए वे कैम्ब्रिज चले गए, जहाँ वे गणितीय ट्रिपोस में रैंगलर और टायसन पदक विजेता बने।
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सम्मान और पुरस्कार
उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए थे। उनके द्वारा स्थापित अंतर-विश्वविद्यालय खगोल विज्ञान एवं खगोल भौतिकी केंद्र (आईयूसीएए, पुणे) ने कई नई शोध परियोजनाओं को जन्म दिया है। डॉ. नार्लीकर को 1965 में मात्र 26 वर्ष की आयु में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 2004 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 2011 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें राज्य के सर्वोच्च नागरिक सम्मान महाराष्ट्र भूषण से सम्मानित किया।
उनके निधन से भारत ने एक दूरदर्शी वैज्ञानिक, एक विद्वान विचारक और जनता के लिए विज्ञान का एक सच्चा राजदूत खो दिया है। देश के विज्ञान प्रेमियों, विद्यार्थियों और वैज्ञानिक समुदाय ने एक अनुकरणीय व्यक्तित्व खो दिया है।
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