एलओसी- एलएसी पर तैनात किए जाएंगे टाटा के एएलएस-50 घूमने वाले ड्रोन सिस्टम, ऐसे की जाएगी सरहदों की रखवाली

एएलएस-50 क्वाडकॉप्टर की तरह उड़ान भर सकता है और लंबी दूरी तक यात्रा उड़ान के दौरान फिक्स्ड विंग मोड में संक्रमण कर सकता है।

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पाकिस्तान और चीन सीमा पर स्वदेशी घुमंतू टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड के एएलएस-50 ड्रोन सिस्टम तैनात किये जाने की तैयारी है। हाल ही में इनका पोखरण फायरिंग रेंज में परीक्षण किया गया है। परीक्षण के दौरान इन सिस्टम ने अपनी अटैक क्षमता का कामयाब प्रदर्शन किया है। इसके अलावा भारतीय सेना 2040 तक सभी 105 मिमी. की तोपों को 155 मिमी. तोपों से बदलने की तैयारी में भी है। रक्षा मंत्रालय से पहले ही मंजूर किये गए के-9 वज्र हॉवित्जर खरीदने की प्रक्रिया भी शुरू की गई है।

भारत के दुर्गम और ऊंचाई वाले क्षेत्रों से संचालन में सक्षम स्वदेशी घुमंतू एएलएस-50 ड्रोन सिस्टम को टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (टीएएसएल) ने स्वदेशी रूप से वर्टिकल टेक ऑफ एंड लैंडिंग (वीटीओएल) के लिए डिजाइन किया है। इनका पिछले माह राजस्थान के पोखरण फायरिंग रेंज में कई दिनों तक परीक्षण किया गया। एएलएस 50 नाम के इस सिस्टम ने ट्रायल के दौरान विस्फोटक वारहेड से जमीन पर सटीक निशाना लगाया। यह परीक्षण निजी उद्योग के लिए एक मील का पत्थर है, जिसने देश में ही ड्रोन सिस्टम को विकसित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाया है। तोपखाने की रेजिमेंट भी इन घूमने वाले सामरिक मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) को पाकिस्तान और चीन सीमा पर तैनात करने पर विचार कर रही है।

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एएलएस-50 क्वाडकॉप्टर की तरह उड़ान भर सकता है और लंबी दूरी तक यात्रा उड़ान के दौरान फिक्स्ड विंग मोड में संक्रमण कर सकता है। इसने इस साल की शुरुआत में लद्दाख में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी अपनी उड़ान क्षमता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है। एएलएस-50 में स्वायत्त लक्ष्यीकरण प्रणाली है जो सटीक रूप से पहचान करके पूर्व-निर्धारित लक्ष्य पर अटैक कर सकती है। सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं के अनुसार इसकी रेंज और पेलोड क्षमता बढ़ाई जा सकती है। वीटीओएल प्रणाली को संकरी घाटियों, पहाड़ी इलाकों, छोटे जंगलों और युद्धपोतों के डेक से भी संचालित करके कमांड सेंटर, मिसाइल लांचर और दुश्मन के कवच जैसे लक्ष्यों पर सटीक निशाना लगाने के लिए किया जा सकता है।

सेना ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लंबी दूरी की मारक क्षमता बढ़ाने के लिए मध्यम दूरी की तोपों और लंबी दूरी के रॉकेटों की अपनी पूरी श्रृंखला तैनात की है। उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा संरचना और ज्यादा मजबूत करने के इरादे से भारतीय सेना अब 28-38 किमी. दूरी तक मारक क्षमता वाले 100 के 9-वज्र हॉवित्जर खरीदने की प्रक्रिया में है, जिसे रक्षा मंत्रालय ने पहले ही मंजूरी दे दी है। इसके अलावा धनुष, के-9 वज्र और एम-777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर (यूएलएच) के शामिल होने से उत्तरी सीमाओं पर तोपखाने की मारक क्षमता में वृद्धि हुई है। पिनाका मल्टी-रॉकेट लॉन्च सिस्टम (एमआरएलएस) ने तोपखाने की मारक क्षमता लंबी दूरी तक बढाई है। इसके अलावा भारतीय सेना अपने आर्टिलरी डिवीजन में 2040 तक सभी 105 मिमी. की तोपों को 155 मिमी. तोपों से बदलने की तैयारी में भी है।

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