कैसे लड़ी गई 1971 की लड़ाई? जानिये, युद्ध में शामिल कर्नल पुणतांबेकर की जुबानी

भारतीय जवानों के लिए वह युद्ध लड़ना खतरे से खाली नहीं था, लेकिन हमारी देशभक्ति और जुनून ने उस युद्ध को आसान बना दिया था। हमने उस युद्ध में पाकिस्तान को हराकर इतिहास रच दियाः कर्नल पुणतांबेकर

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कर्नल केशव श्रीपति पुणतांबेकर का नाम देश के उन योद्धाओं में शुमार होता है, जिनकी बदौलत भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त देकर एशिया के इतिहास और भूगोल को बदल दिया था। 1971 में पाकिस्तान की हार के साथ ही बांग्लादेश का उदय हुआ और भारत की शक्ति का लोहा पूरी दुनिया मानने लगी।

उस युद्ध में करारी हार मिलने के कारण आज भी पाकिस्तान भारत से आमने-सामने का युद्ध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। लेकिन वह छद्म युद्ध चलाकर भारत को तोड़ने की साजिश रचते रहता है।

इस वर्ष 11 दिसंबर से 16 दिसंबर तक भारत उस जीत को याद करने के लिए स्वर्णिम विजय दिवस मना रहा है। ऐसे समय में 1971 के योद्धाओं को याद कर पूरा देश गौरवान्वित महसूस कर रहा है। हिंदुस्थान पोस्ट ने इस अवसर पर उस युद्ध के एक योद्धा कर्नल केशव पुणतांबेकर से बात की और यह जानने की कोशिश की कि वह युद्ध भारत के लिए कितना मुश्किल था।

आइए जानते हैं, 1971 की जीत की कहानी, कर्नल पुणतांबेकर की जुबानी
भारतीय जवानों के लिए वह युद्ध लड़ना खतरे से खाली नहीं था, लेकिन हमारी देशभक्ति और जुनून ने उस युद्ध को आसान बना दिया था। हमने उस युद्ध में पाकिस्तान को हराकर इतिहास रच दिया। भारत की उस जीत के साथ ही बांग्लादेश का उदय हुआ। बांग्लादेश की स्थापना भारत की जीत और पाकिस्तान की हार की निशानी है।

ऐसे शुरू हुआ युद्ध
दरअस्ल 1971 के सितंबर-अक्टूबर में ही सेना को पता चल गया था कि भारत पाकिस्तान के खिलाफ कोई बड़ा कदम उठाने वाला है। मैं उन दिनों नगालैंड में तैनात था। वहां मैं एक सैनिक स्कूल में इंस्ट्रक्टर के पद पर कार्यरत था। वहां से मुझे मराठा बटालियन में ट्रांसफर कर दिया गया था। मेरी बटालियन को जिम्मापुर पहुंचने का आदेश दिया गया। सभी लोग अपने हथियार और सामान के साथ वहां पहुंचे। वहां से हमें असम के तुरा नामक स्थान पर पहुंचने का आदेश दिया गया। वहां पहुंचने पर पता चला कि हम काफी पहले पहुंच गए हैं। उसके बाद हमारे कमांडर ने तय किया कि पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार कर हमें पाकिस्तान में घुसना है और इसके लिए हमें पाकिस्तानी सेना से लड़ाई भी लड़नी पड़ सकती है। इस हालत में हमें उन्हें मारकर आगे बढ़ना होगा।

युद्ध की घोषणा
इसी दौरान दिसंबर 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान से युद्ध की घोषणा कर दी। उसके बाद हमारी बटालियन ने पाकिस्तान में घुसने की योजना बनाई। हम प्लान के अनुसार चार दिसंबर को पैदल ही पूर्वी पाकिस्तान में घुस गए। इसका कारण यह था कि हम जिस रास्ते से सीमा पार कर पाकिस्तान में पहुंचे थे, उस रास्ते पर वाहन नहीं चल सकता था। हम सभी हथियारों के साथ ही अपने सामान के साथ पाकिस्तान में घुसे थे।

पैदल ही आगे बढ़ना था
एक पलटन में 16 ऑफिसर, 30 जूनियर ऑफिसर और 900 जवान होते हैं। हमने बिना किसी बड़ी कार्रवाई और नुकसान के बख्शीपुर पर कब्जा कर लिया। वहां से आगे जाने के लिए भी हमारे पास कोई गाड़ी नहीं थी। हमें अभी लंबी लड़ाई लड़नी थी। उसके लिए हमने खुद को तैयार कर रखा था। आगे जाने के लिए भी कोई सुविधा नहीं थी, हमें पैदल ही आगे बढ़ना था। हम करीब 60 किलोमीटर पैदल चलकर जमालपुर पहुंचे।

 रुकावटों को पार करते हुए आगे बढ़े
इस बीच हमें छोटी-छोटी रुकावटें आईं,  हम उन्हें निपटाते हुए आगे बढ़ते रहे। लेकिन जमालपुर में बड़ी रुकवाट आई। वहां वे पूरा मोर्च संभाले बैठे थे। उन्होंने युद्ध की पूरी तैयारी कर रखी थी। वे वहां बंकर में पूरी तरह सुरक्षित थे। हमारे ब्रिगेडियर ने वहां तीन पलटन को पहुंचने के लिए अलग-अलग रास्ते बताए थे। हम वहां सबसे पहले पहुंच गए थे। बाकी दो पलटन का कोई पता नहीं था।

मेरी बात मान गए ब्रिगेडियर
जब हमारी फौज में आदेश दिया जाता है तो पूछा जाता है कि किसी को कोई शंका तो नहीं है। हमारे ब्रिगेडियर ने भी पूछा तो मैंने कहा कि तीन में से एक पलटन ही अभी तक पहुंची है। हमारे लिए हमला करना नुकसान का सौदा हो सकता है। वे हमें आराम से खत्म कर सकते हैं। अनिश्चितता बरकरार है। मेरी इस बात पर तत्कालीन ब्रिगेडियर हरदेव सिंह केर ने कहा कि मराठा लोग डरते हैं क्या.. उनकी इस बात पर मैंने कहा कि हम डरते नहीं हैं, लेकिन लड़ने के लिए जिंदा रहना जरुरी है। अच्छा होगा कि अन्य पलटन को भी आने दिया जाए।

पाकिस्तानी सेना को यह आदेश पड़ा भारी
ब्रिगेडियर साहब ने मेरी बातों पर गौर किया और कहा कि ठीक है, फिलहाल हम रुक जाते हैं। इसी बीच पाकिस्तानी सैनिकों को रात 11 बजे आदेश आ गया कि उन्हें ढाका पहुंचना है। इस आदेश के मिलने के बाद वे बंकर से बाहर निकले। अब वे ओपन मे थे। हमने अवसर का लाभ उठाया और उनपर फायरिंग शुरू कर दी। यह 9-10 दिसंबर की रात की बात है। लड़ाई तो 3- 4 दिसंबर को ही शुरू हो गई थी, लेकिन अब युद्ध काफी तेज हो गया था। इस लड़ाई में हमने ने पाकिस्तान के 15 ऑफिसर और 326 जवानों को मार गिराया। अचानक उन्हें ढाका भेजने का सेना का आदेश उन पर भारी पड़ गया था। हमारे लिए यह एक अवसर बन गया था।

 हमने पाक सेना के 200 जवानों को मार गिराया
इसके बाद हम उनकी ही गाड़ियों से आगे के लिए रवाना हुए। यहां से हम तंडेल पहुंचे। वहां पैराशूट बटालियन को ड्रॉप किया गया। अब हमारी स्थिति काफी मजबूत थी। यहां हमें एक बार फिर लड़ाई लड़नी पड़ी लेकिन हमें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। इस लड़ाई में 200 पाकिस्तानी जवान मारे गए।

युद्ध समाप्ति की घोषणा
यहां से हम 14-15 दिसंबर की रात ढाका पहुंचे। वहां पाकिस्तान के जनरल आमिर अब्दूल खान नियाजी ने भातीय  जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने सरेंडर कर दिया था। 16 दिसंबर को लड़ाई खत्म होने की घोषणा कर दी गई । पाकिस्तान सेना के 93 हजार जवानों ने भारत के सामने सरेंडर कर दिया था। हम जीत गए थे।

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