अफगानिस्तान में काम आई देवी शक्ति!

भारत सरकार ने अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी से पहले ही वहां फंसे हिंदुओं और सिखों के साथ ही कुछ अफगानियों तथा नेपालियों को भी सुरक्षित लाने में सफलता हासिल कर ली थी।

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अफगानिस्तान में फिलहाल तालिबान का कब्जा है और सरकार बनाने की कोशिश जारी है। फिलहाल भारत वेट एंड वॉच की पॉलिसी पर अमल करते हुए वहां की गतिविधियों पर पैनी नजर बनाए हुए है।

भारत सरकार ने अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी से पहले ही वहां फंसे हिंदुओं और सिखों के साथ ही कुछ अफगानियों तथा नेपालियों को भी सुरक्षित लाने में सफलता हासिल कर ली थी। अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात के मद्देनजर भारत ने 16 अगस्त से ही यह ऑपरेशन शुरू कर दिया था। बाद मे इस ऑपरेशन का नाम देवी शक्ति दिया गया था।

जोखिमभरा था यह ऑपरेशन
कहने और सुनने में यह ऑपरेशन जितना आसान लगता है, वास्तव में यह उतना आसान था नहीं। यह ऑपरेशन कई लोगों ने अपनी जान हथेली पर लेकर पूरा किया। इसे सफल बनाने में देश की इंटेलीजेंस एजेंसियों के साथ ही कई विभागों का महत्वपूर्ण रोल रहा।

थीं कई चुनौतियां
दरअस्ल इस ऑपरेशन को सफल बनाने में एक नहीं, अनेक चुनौतियां थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में जिस तरह इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया, वह ऐतिहासिक है। ऑपरेशन देवी शक्ति की चुनौतियों की शुरुआत यहीं से हो जाती थी  कि भारत से अफगानिस्तान जाने का रास्ता पाकिस्तान होकर जाता है। लेकिन पाकिस्तान हमें इसकी इजाजत देने को तैयार नहीं था और उसके आसमान से होकर अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट पर जाना सुरक्षित भी नहीं था। इसलिए भारत ने दूसरा रास्ता चुना। दूसरा रास्ता भी कोई आसान नहीं था। लेकिन पीएम मोदी के मार्गदर्शन में इस नामुमकिन को मुमकिन बनाया गया। ईरान पर कूटनीतिक दबाव बनाकर उसे अपने आसमान से भारत की वायु सेना के विमान को उड़ान भरने की अनुमति ली गई ।

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यूरोपियन देशों की ली गई मदद
इसके बाद भी चुनौतियां खत्म नहीं हो गईं। भारतीय वायु सेना के विमान को सीधे काबुल में नहीं उतारा जा सकता था, क्योंकि वहां तालिबान का कब्जा था। इसलिए भारत ने कजाकिस्तान का एयर पोर्ट चुना, लेकिन फिर इसके लिए कजाकिस्तान को मनाना भी आसान नहीं था। इसके लिए भारत ने कतर और अन्य यूरोपियन देशों की मदद ली।

एयरपोर्ट पर लोगो को सुरक्षित पहुंचाना बड़ी चुनौती
इसके बाद भी चुनौतियां बनी हुई थीं। अपने लोगों को काबुल एयरपोर्ट पर सुरक्षित कैसे पहुंचाया जाए। क्योंकि रास्ते में तालिबानी लड़ाके तैनात थे। वे मुश्किलें खड़ी कर सकते थे। उनके पास खतरनाक हथियार थे, जिसका वे इस्तेमल कर सकते थे। इसके बावजूद जान हथेली पर लेकर भारतीय अधिकारी उन्हें एयरपोर्ट पहुंचा रहे थे। यहां यह भी बड़ी चुनौती थी कि एयरपोर्ट पर मची अफरातफरी के कारण वहां भीड़ इकट्ठा करना सुरक्षित नहीं था। इसलिए एयरपोर्ट के पास एक बड़े गैराज को चुना गया। उस गैराज में अपने लोगों को पहले इकट्ठा किया जाता था। इसके लिए भारतीय दूतावास, इंटेलिजेंस और एयरफोर्स के बीच में गजब का तालमेल स्थापित था। इनके तालमेल से लोगों को गैराज में सुरक्षित पहुंचाया जा रहा था।

काबुल एयरपोर्ट पर भी थी ऐसी चुनौती
इसके बाद काबुल एयरपोर्ट पर उन दिनों अमेरिकी सेना तैनात थी। एयर पोर्ट का पूरा कंट्रोल उनके हाथ में था। उससे मंजूरी मिलने के तुरंत बाद कजाकिस्तान में खड़ा भारतीय विमान हरकत में आ जाता था। जैसे ही वह विमान काबुल एयरपोर्ट पर लैंड करने वाला होता था, लोगों को बुलेट प्रूफ जैकेट पहनाकर गैराज से एयरपोर्ट लाया जाता था। इसमें ज्यादा समय लगाना जोखिमभरा हो सकता था, इसलिए हमारे स्पेशल फोर्स के अधिकारी पॉजिशन लेते थे और जितना जल्दी हो सके, उन्हें विमान में चढ़ाते थे। उसके बाद अधिकारी दूसरे राउंड के लिए रवाना हो जाते थे और अनुमति मिलते ही विमान वहां से उड़ान भर देता था।

भारत में पहुंचने पर भी थी चुनौती
भारत में गाजियाबाद के पास स्थित हिंडन एयरबेस पर यात्रियों को उतारने के बाद कोरोना नियमों का पालन, क्वारंटाइन, मेडिकल चेकअप, खाना-पीना और उन्हें घर तक पहुंचाना भी आसान नहीं था। इसके साथ ही अगर कोई यात्री ज्यादा घबराया और डरा हुआ होता, तो उसकी काउंसलिंग भी की जाती थी। इस पूरे ऑपरेशन के हीरो भारत सरकार,हमारी स्पेशल फोर्स, हमारा विदेश मंत्रालय, इंटेलिजेंस और अफगानिस्तान में डटे अधिकारी-कर्मचारी थे।

प्रशंसा जरुरी है
इतनी चुनौतियों को पार करके मोदी सरकार ने अफगनिस्तान में फंसे अपने लोगों के साथ ही कई अफगानी और नेपाली नागरिकों को भी वहां से सुरक्षित निकालने में सफलता हासिल की। इसके लिए भारत सरकार और इस ऑपरेशन से जुड़े विभागों तथा अधिकारियों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।

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