पाकिस्तान के मोर्चे से हटाकर चीन की सीमा पर क्यों भेजे गए 1 लाख 8 हजार सैनिक? जानने के लिए पढ़ें ये खबर

सेना की नई रणनीति के तहत देश की सीमाओं पर खतरे के अनुपात को देखते हुए सैनिकों की तैनाती में बदलाव किया जा रहा है।

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चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय सेना ने अपनी अतिरिक्त छह डिवीजन तैनात की हैं। एक डिवीजन में लगभग 18 हजार जवान होते हैं, यानी एक लाख 8 हजार सैनिक चीन सीमा पर भेजे गए हैं। इनमें कई डिवीजन को अन्य अहम मोर्चों से बुलाया गया है, क्योंकि इन सैनिकों को पहाड़ी क्षेत्रों में दुश्मन के मंसूबों को नाकाम करने में महारत हासिल है। चीन सीमा पर भेजे गए सैनिकों में पाकिस्तान के मोर्चे पर तैनात जवानों से लेकर पूर्वोत्तर के आतंकवाद रोधी अभियानों में शामिल सैनिक भी शामिल हैं।

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भारतीय सेना ने पूरी तरह तैयार
चीन की तरफ से किसी भी तरह के दुस्साहस का दोगुनी मजबूती के साथ जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने पूरा बंदोबस्त किया है। इसीलिए पाकिस्तान की सीमा लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर तैनात भारतीय जवानों को हटाकर देश की उत्तरी सीमा पर भेजा जा रहा है। सेना ने चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपनी अतिरिक्त छह डिवीजन तैनात की हैं। एक डिवीजन में लगभग 18 हजार जवान होते हैं यानी एक लाख 8 हजार सैनिक चीन सीमा पर भेजे गए हैं। चीन सीमा पर तैनाती के लिए उन सैनिकों को कुछ दूसरे अहम मोर्चों से बुलाया गया है, जिन्हें पहाड़ी क्षेत्रों में दुश्मन के मंसूबों को नाकाम करने में महारत हासिल है।

लद्दाख की स्थिति के बारे में दी जानकारी 
दरअसल, नए सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने भारतीय सेना की बागडोर संभालने के बाद 12 मई को पहला लद्दाख दौरा किया। यात्रा के पहले दिन उन्होंने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत की सैन्य तैयारियों की व्यापक समीक्षा की। जनरल मनोज पांडे ने उत्तरी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी और फायर एंड फ्यूरी कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल ए सेनगुप्ता से मुलाकात की। वरिष्ठ कमांडरों ने लेह में जनरल पांडे को पूर्वी लद्दाख की सुरक्षा स्थिति के बारे में जानकारी दी। फायर एंड फ्यूरी कोर लद्दाख क्षेत्र में चीन सीमा एलएसी की रखवाली करती है।

एलएसी पर तैनात सैनिकों से की बातचीत
इस तीन दिवसीय दौरे के अंतिम दिन 14 मई को जनरल पांडे ने सबसे कठिन और दुर्गम इलाके में एलएसी पर तैनात सैनिकों के साथ बातचीत भी की। ऑपरेशनल तैयारियों की समीक्षा के लिए लद्दाख के अग्रिम क्षेत्रों का दौरा करते समय उन्होंने सैनिकों के साथ बातचीत में उनकी दृढ़ता और उच्च मनोबल के लिए सराहना की। जनरल पांडे की लद्दाख यात्रा उनके इस बयान के कुछ दिनों बाद हुई जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन का इरादा भारत के साथ सीमा विवाद जिंदा रखना है। उनकी तीन दिवसीय यात्रा ख़त्म होने के बाद सैनिकों की तैनाती में किये जा रहे बदलाव सेना प्रमुख की नई रणनीति का हिस्सा माने जा रहे हैं।

एलएसी पर तैनात किया गया
सेना की नई रणनीति के तहत देश की सीमाओं पर खतरे के अनुपात को देखते हुए सैनिकों की तैनाती में बदलाव किया जा रहा है। चीन की तरफ से बढ़े खतरे को देखते हुए उत्तरी सीमा पर ज्यादा सैनिक तैनात किए जा रहे हैं। इसी तरह पाकिस्तान की सीमा के साथ ही पूर्वोत्तर में आतंकरोधी अभियान में तैनाती में भी बदलाव किया जा रहा है। उत्तरी सीमा पर तैनात की गई छह डिवीजन में से तीन पाकिस्तान की सीमा पर तैनात थीं। चीन के साथ पिछले दो साल से जारी तनाव को देखते हुए सेना की दो डिवीजन को (36 हजार जवान)आतंक रोधी अभियान से हटाकर एलएसी पर तैनात किया गया है।

जम्मू-कश्मीर में आतंकरोधी अभियान
इसी तरह राष्ट्रीय राइफल्स की एक डिवीजन को जम्मू-कश्मीर में आतंकरोधी अभियान से हटाकर पूर्वी लद्दाख सेक्टर में तैनात किया गया है। इस सेक्टर में राष्ट्रीय राइफल्स की पहले से ही तीन डिवीजन तैनात हैं। इसी तरह असम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड से भी सेना की डिवीजनों को हटाकर उत्तरी कमान में तैनात किया गया है। इनमें 17 माउंटेन स्ट्राइक कोर, स्ट्राइक कोर जैसी डिवीजन शामिल हैं। असम में आतंकी रोधी अभियान में अब सेना की कोई डिवीजन नहीं है। चीन की सीमा पर सामान्य तैनाती के अलावा 50 हजार से ज्यादा अतिरिक्त जवान तैनात किए गए हैं।

बुनियादी ढांचे का निर्माण
भारतीय सेना के पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलिता ने स्वीकार किया है कि चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ दोनों देशों की अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास बड़ी मात्रा में बुनियादी ढांचे का निर्माण कार्य कर रही है। सशस्त्र बलों सहित हमारी सभी एजेंसियां लगातार इस स्थिति की निगरानी कर रही हैं। बुनियादी ढांचे और परिचालन क्षमताओं के मामले में हम अपनी क्षमताओं को भी उन्नत कर रहे हैं। प्रौद्योगिकी के तेजी से विकास के साथ युद्ध की प्रकृति बदल रही है, इसलिए प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल रखने के लिए हमें अपनी खुद की कार्यप्रणाली और विभिन्न चुनौतियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया विकसित करने की भी आवश्यकता है।

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