ऐसा है भारत द्वारा स्वनिर्मित एलसीए तेजस

रक्षा क्षेत्र में भारी भरकम खर्च करनेवाला भारत विश्व का पांचवा देश है। परंतु, पिछले कुछ वर्षों में मेड इन इंडिया और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देते हुए निजी क्षेत्र की कंपनियों को रक्षा क्षेत्र में निर्माण की अनुमति दी गई है।

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भारत सरकार के उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने तेजस का निर्माण किया है। यह हवाई युद्ध और आक्रामक रूप से हवाई सहायता मिशन में काम आने वाला विमान है। यह एकल इंजन और बहु-भूमिका वाला ऐसा फुर्तीला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान है, जो हवाई क्षेत्र में उच्च-खतरे वाली स्थितियों में संचालन करने में सक्षम है। टोही अभियान को अंजाम देने तथा पोत रोधी विशिष्टताएं इसकी द्वितीयक गतिविधियां हैं। भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल तेजस फाइटर जेट को पूरी दुनिया की प्रशंसा मिल रही है।

मानकों पर खरा है तेजस
एचएएल का यह अत्याधुनिक हल्का लड़ाकू विमान पहले ही सारे परीक्षण बड़ी कुशलता से पास कर चुका है और अमेरिका जैसे विकसित देश ने भी तेजस को अपने सेगमेंट में दुनिया के बेहतरीन फाइटर जेट्स में से एक माना है। तेजस की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि पूर्णतया देश में ही विकसित करने के बाद इसकी ढेरों परीक्षण उड़ान होने के बावजूद अब तक एकबार भी कोई उड़ान विफल नहीं रही और न ही किसी तरह का कोई हादसा हुआ। यही कारण है कि कई देशों का भरोसा भारत की ब्रह्मोस मिसाइलों के साथ-साथ तेजस जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों पर भी बढ़ा है।

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आत्मनिर्भर भारत का लाभ रक्षा क्षेत्र को
भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रक्षा बजट वाला देश है और अभी तक भले ही अपनी ज्यादातर रक्षा सामग्री का विदेशों से आयात करता रहा है लेकिन बीते कुछ वर्षों से भारत रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इसके साथ ही रक्षा सामग्री के आयातक से निर्यातक बनने की राह पर भी अग्रसर है। रक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2025 तक रक्षा निर्माण में 25 अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 1.75 लाख करोड़ रुपये) के कारोबार का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें 5 अरब डॉलर (35 हजार करोड़ रुपये) के सैन्य हार्डवेयर का निर्यात लक्ष्य भी शामिल है।

तेजस की विशेषताएं
अगर तेजस की विशेषताओं की बात करें तो यह एचएएल द्वारा भारत में ही विकसित किया गया हल्का और मल्टीरोल फाइटर जेट है, जिसे वायुसेना के साथ नौसेना की जरूरतें पूरी करने के हिसाब से तैयार किया जा रहा है। तेजस संस्कृत भाषा का नाम है, जिसका अर्थ है ‘अत्यधिक ताकतवर ऊर्जा।’ ‘तेजस’ का यह अधिकारिक नाम 4 मई 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रखा गया था। मिग-21 लड़ाकू विमानों की पुरानी होती तकनीक को देखते हुए मिग विमानों का उपयुक्त विकल्प तलाशने और घरेलू विमानन क्षमताओं की उन्नति के उद्देश्य से देश में 1981 में लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट कार्यक्रम शुरू किया गया था। उसी के बाद 1983 में तेजस विमानों की परियोजना की नींव रखी गई थी।

तेजस का जो सैंपल तैयार किया गया, उसने अपनी पहली उड़ान जनवरी 2001 में भरी थी लेकिन सारी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद यह हल्का लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन में 2016 में ही शामिल किया जा सका। 2015 में तेजस को वायुसेना में शामिल करने की घोषणा हुई थी, जिसके बाद जुलाई 2016 में वायुसेना को दो तेजस सौंप दिए गए थे। वायुसेना को करीब दो सौ तेजस विमानों की जरूरत है। पिछले वर्षों में वायुसेना एचएएल को 40 तेजस विमानों की खरीद का ऑर्डर दे चुकी है, जिनमें से आधे से ज्यादा वायुसेना को मिल चुके हैं और गत वर्ष 83 तेजस विमानों का नया सौदा भी किया गया था। ये सभी तेजस फाइटर जेट वायुसेना के बेड़े में शामिल होने के बाद वायुसेना की जरूरतें पूरा करने में काफी मदद मिलेगी।

भारतीय वायुसेना में महत्वपूर्ण भूमिका
वायुसेना में अभी तेजस की कुल दो स्क्वाड्रन हैं और 83 तेजस मिलने के बाद इनकी संख्या 6 हो जाएगी, जिनकी तैनाती अनिवार्य रूप से फ्रंटलाइन पर होगी। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह कह चुके हैं कि एलसीए-तेजस आने वाले वर्षों में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू बेड़े की रीढ़ बनने जा रहा है।

तेजस में कई ऐसी नई प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है, जिनमें से कई का भारत में इससे पहले कभी प्रयास भी नहीं किया गया। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक तेजस लड़ाकू विमान चीन-पाकिस्तान के संयुक्त उद्यम में बने लड़ाकू विमान जेएफ-17 से हाईटेक और बेहतर है और यह किसी भी हथियार की बराबरी करने में सक्षम है। गुणवत्ता, क्षमता और सूक्ष्मता में तेजस के सामने जेएफ-17 कहीं नहीं टिक सकता। तेजस आतंकी ठिकानों पर बालाकोट स्ट्राइक से भी ज्यादा ताकत से हमला करने में सक्षम है। एक तेजस मार्क 1ए लड़ाकू विमान की कीमत करीब 550 करोड़ रुपये है, जो एचएएल द्वारा ही निर्मित सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान से करीब 120 करोड़ रुपये ज्यादा है।

रक्षा विशेषज्ञों की राय
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि तेजस मार्क 1ए लड़ाकू विमान इसी श्रेणी के दूसरे हल्के लड़ाकू विमानों से महंगा इसलिए है क्योंकि इसे बहुत सारी नई तकनीक के उपकरणों से लैस किया गया है। इसमें इसराइल में विकसित रडार के अलावा स्वदेश में विकसित रडार भी हैं। इसके अलावा इसमें अमेरिका की जीई कम्पनी द्वारा निर्मित एफ-404 टर्बो फैन इंजन लगा है। यह बहुआयामी लड़ाकू विमान है, जो मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी बेहतर नतीजे देने में सक्षम है।

विश्व का सबसे हल्का लड़ाकू विमान
करीब 6560 किग्रा वजनी तेजस दुनिया में सबसे हल्का फाइटर जेट है, जो 15 किलोमीटर ऊंचाई तक उड़ सकने में सक्षम एक सुपरसोनिक फाइटर जेट है, जिसके निचले हिस्से में एक साथ नौ प्रकार के हथियार लोड और फायर किए जा सकते हैं। यदि इसे सभी प्रकार के हथियारों से लैस कर दिया जाए, तब इसका कुल वजन 13500 किग्रा होगा। लंबी दूरी की मार करने वाली मिसाइलों से लैस तेजस अपने लक्ष्य को लॉक कर उस पर निशाना दागने की विलक्षण क्षमता रखता है। यह कम ऊंचाई पर उड़ कर नजदीक से भी दुश्मन पर सटीक निशाना साध सकता है। यह दूर से ही दुश्मन के विमानों पर निशाना साध सकता है और दुश्मन के रडार को भी चकमा देने की क्षमता रखता है।

‘क्रिटिकल ऑपरेशन क्षमता’ के लिए ‘एक्टिव इलैक्ट्रॉनिकली स्कैंड रडार’ जैसी नवीनतम तकनीक से लैस तेजस में बियांड विजुअल रेंज (बीवीआर) मिसाइल, इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर सुइट तथा एयर टू एयर रिफ्यूलिंग की व्यवस्था भी की गई है। इस फाइटर जेट में लगा वार्निंग सिस्टम दुश्मन की मिसाइलों और एयरक्राफ्ट का पता लगा सकता है।

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