रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने माना है कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा( एलएसी) पर जारी गतिरोध दूर करने के लिए चीन के साथ कुटनीतिक और सैन्य स्तर की वार्ता में अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है। सिंह ने कहा कि एलएसी पर हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। इस हालत में सैनिक तैनाती में कोई कमी नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि सैन्य स्तर की वार्ता कभी भी हो सकती है। हालांकि पहले की तरह ही 2020 में भी दोनोंं देशों के बीच हुई बातचीत में भारत का स्टैंड जहां स्पष्ट रहा , वहीं चीन का रवैया समझ से परे रहा है। बातचीत में सहमति बनने के बावजूद चीन ने उन मुद्दों पर अमल नहीं किया। इस वजह से चीन पर से भारत का भरोसा टूट गया।
‘जो हमें छेड़ेगा, उसे हम नहीं छोड़ेंगे’
रक्षा मंत्री ने कहा कि दोनों देशों क बीच सैन्य और राजनयिक स्तपर पर कई बार वार्ता हुई है। लेकिन उसका कोई समाधान नहीं निकला है हालांकि इस बारे में दोनों देशों के बीच संदेशों का आदान-प्रदान हो रहा है। लेकिन अभी तक इसके लिए समय तय नहीं किया जा सका है। रक्षा मंत्री ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर कोई देश विस्तारवादी है और हमारी जमीन पर कब्जा करने का प्रयास करता है तो हम उसे इस तरह के प्रयास में कभी भी सफल नहीं होने देंगे। भारत एक शांतिपूर्ण देश है लेकिन जो हमें छेड़ेंगा उसे हम छोड़ेंगे नहीं। उन्होंने कहा कि मैं पिछली सरकारों पर सवाल उठाना नहीं चाहता, लेकिन मैं कह सकता हूं कि जब से नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है, तब से राष्ट्रीय सुरक्षा पहले नंबर की प्राथिकता रही है और हम सुरक्षा बलों को अधिकतम सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं।
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ड्रैगन पर भरोसा करना डेंजरस
चीन अब तक भारत को कई बार धोखा दे चुका है और उसपर बिलकुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता। इस बारे में विशेषज्ञों की भी यही राय है कि चीन की बातों पर भरोसा करना भारत के लिए बेहद खतरनाक होगा। इसलिए हमें ड्रैगन से हमेशा सावधान रहना चाहिए। ऐसा नहीं है कि भारत उसकी चाल से अनभिज्ञ है। पाकिस्तान और चीन, भारत के दो ऐसे पड़ोसी देश हैं, जिनकी कथनी और करनी में कभी तालमेल नहीं बैठता। ये बात भारत ही नहीं, दुनिया के हर देश को पता है।
सियासत और सेना में तालमेल नहीं
15-16 जून की रात को गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद पैदा हुई स्थिति के बाद से ही बैठकों का दौर जारी है। झड़प के बाद से जहां कई बार दोनों देशों के बीच कमांडर लेवल की बैठकें हो चुकी हैं, वहीं दोनों देशों के समकक्ष मंत्रियों के बीच भी कई बैठकें हो चुकी हैं। विवाद बढ़ने के बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री तथा स्टेट काउंसलर वांग यी के बीच भी जुलाई में सीमा पर तनाव कम करने को लेकर बातचीत हुई थी। दोनों देश गलवान घाटी जैसी घटनाएं भविष्य में न घटे इस बात पर सहमत हुए थे। इसके आलावा विवादित क्षेत्रों से सेनाएं हटाने और शांति बहाली की दिशा में पहल करने को लेकर भी सहमति बनी थी। लेकिन इस बातचीत के बाद 29-30 अगस्त की रात चीनी सेना ने एलएसी पर चाल चलकर फिर विश्वासघात कर दिया।
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दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच भी हुई थी बैठक
मॉस्को में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई करीब ढाई घंटे की बैठक से पहले 5 सितंबर 2020 को भी भारत के रक्षा मंत्री राजनथ सिंह और चीन के समकक्ष वेई फेंगे के साथ मॉस्को में भी दो घंटे 20 मिनट लंबी बैठक हुई थी। इस बैठक में भी दोनों देशों के बीच तनाव कम करने को लेकर बनी सहमति के बावजूद नतीजा वही निकला था, ढाक के तीन पात। चीन अब तक अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा है। वो लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर तनाव बढ़ाने में लगा हुआ है।
पहले भी हुए हैं कई समझौते
1993 में एलएसी पर शांति और स्थिरता कामय रखने के लिए समझौता हुआ था। 1993 के समझौते में साफ कहा गया है कि यदि दोनों पक्षों के सैनिक एलएसी को पार करते हैं तो दूसरी ओर से आगाह किए जाने के बाद वह तुरंत अपने क्षेत्र में चले जाएंगे। इसके बाद फिर 1996 में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे सीमा पर सैन्य क्षेत्र में आत्मविश्वास-निर्माण के उपायों को लेकर समझौता हुआ। फिर 2013 में भी दोनों देशों के बीच समझौते हुए। ये सभी समझौते दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाने और तनाव कम करने को लेकर ही हुए। इसके अलावा, साल 2005, 2012 में चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर बातचीत बढ़ाने और विश्वास निर्माण के उपायों को लेकर समझौते हुए। भारत का मानना है कि गलवान घाटी में ड्रैगन की कार्रवाई तीन प्रमुख द्विपक्षीय समझौतों-1993, 1996 और 2013- का उल्लंघन है, जिसने विवादित सीमा को ज्यादातर शांत रखा है।
चीन की चिंता
वर्ष 2020 में जिस तरह से भारत ने इस्टर्न लद्दाख में तैयारी की है, उससे चीन घबरा गया है। उसे समझ में आ गया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लद्द्ख क्षेत्र में अगर उसने किसी तरह की सैनिक कार्रवाई की तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। वैसे भी चीनी सैनिकों को लद्दाख में पड़नेवाली कड़ाके की ठंढ जैसे इलाके में काम करने का अनुभव नहीं है, जबकि भारतयी सेना के जवान सियाचिन सीमा पर भी माइनस 40 से 70 डिग्री तापमान में भी अपना कर्तव्य निभाने का अच्छा-खासा अनुभव रखते हैं। इसलिए चीन ठंडी के मौसम तक विवादित क्षेत्रों मे किसी भी तरह का विवाद भारत से नहीं पैदा करना चाहता।
भारत की स्थिति मजबूत
29-30 अगस्त 2020 को भारतीय सेना के एक्शन के बाद चीन सहम गया है। अगस्त में भारतीय सेना के सूरमाओं ने चीनी सेना को खदेड़ दिया था और दक्षिणी पैंगोंग शो झील की ऊंच्ची चोटियों पर कब्जा कर लिया था। साथ ही अभी तक फिंगर 4 और 8 पर भी भारत का कब्जा है। इसके साथ ही भारतीय वायुसेना के बेड़े में पांच राफेल के शामिल होने से भी 2020 में भारतीय सेना की ताकत पहले से कई गुनी बढ़ गई है।