पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ 20 माह से चल रहे गतिरोध के बीच चीन ने एक बार फिर भारत के खिलाफ भड़काऊ हरकत की है। भारत के पूर्वोत्तर राज्य पर अपने दावे को पुष्ट करने के लिए अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों का नाम बदल दिया है। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने एक आदेश में 1 जनवरी, 2022 से चीनी मानचित्रों पर इन बदले गए नामों का इस्तेमाल करने के लिए कहा है।
भारत हमेशा चीन के दावे को खारिज करके अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग कहता रहा है। चीन के ताजा कदम पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया में कहा है कि नाम बदलने से तथ्य नहीं बदलते। बीजिंग भारत के अरुणाचल प्रदेश में 90 हजार वर्ग किमी. के क्षेत्र पर दावा करके इसे जंगनान या दक्षिण तिब्बत कहता है।
इन स्थानों के बदले नाम
चीनी सरकार ने जिन 15 स्थानों के नाम बदले हैं, उनमें आठ आवासीय स्थान, चार पहाड़, दो नदियां और अरुणाचल प्रदेश में एक पहाड़ी दर्रा शामिल हैं। चीन ने 15 स्थानों के नाम चीनी भाषा में रखकर इन स्थानों को भारतीय क्षेत्र के रूप में मान्यता देने से इनकार किया है। चीनी सरकार के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने घोषणा की है कि उसने मंदारिन चीनी अक्षरों के साथ-साथ तिब्बती और रोमन वर्णमाला में जंगनान या जिजांग (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र) के दक्षिणी भाग में 15 स्थानों के नाम ”मानकीकृत” किए हैं। चीन के मुख्य प्रशासनिक प्राधिकरण स्टेट काउंसिल द्वारा जारी भौगोलिक नामों को नियमों के अनुसार मानकीकृत बताया गया है।
पहले भी करता रहा है ऐसी कोशिश
इससे पहले भी चीन ने अप्रैल, 2017 में भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश के 6 स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की थी लेकिन तब भी भारत ने चीन के इस कदम को खारिज कर दिया था। अब फिर अपने क्षेत्रीय दावे पर जोर देने के लिए चीन ने लगभग साढ़े चार साल बाद 15 स्थानों के नाम बदलने का नया प्रयास किया है।
अरुणाचल प्रदेश को नहीं मानता है भारत का अंग
चीन ने अपने प्रवक्ता के हवाले से फरवरी, 2020 में कहा था कि चीन ने कभी भी अरुणाचल प्रदेश को भारतीय क्षेत्र के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं दी थी। बीजिंग में चाइना तिब्बतोलॉजी रिसर्च सेंटर के विशेषज्ञ लियान जियांगमिन के हवाले से कहा गया है कि चीन ने अपने संप्रभु अधिकारों का प्रयोग करके दक्षिण तिब्बत में 15 स्थानों के नामों को मानकीकृत करने के लिए एक ”वैध कदम” उठाया है।
पूर्वी लद्दाख में 20 महीने से तनाव
भारतीय सेना और चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिक करीब 20 माह से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर आमने-सामने हैं। यह गतिरोध अप्रैल-मई 2020 में शुरू हुआ जब चीन ने एकतरफा रूप से सीमा की यथास्थिति बदलने के प्रयास किये। इसके बाद एलएसी के पास बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों को इकट्ठा करने के जवाब में भारतीय सेना को अतिरिक्त सैनिकों को तैनात करना पड़ा। 15 जून, 2020 को यह गतिरोध तब और बढ़ गया जब पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में एक हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए।
13 दौर की सैन्य वार्ताएं संपन्न
भारत और चीन के बीच 13 दौर की सैन्य वार्ता और 28 कूटनीतिक वार्ताएं हो चुकी हैं लेकिन दोनों पक्ष एलएसी के साथ अन्य शेष आमने-सामने के बिंदुओं में विघटन पर सहमत नहीं हो सके हैं। भारत और चीन के राजनयिकों और वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के बीच लंबी बातचीत के परिणामस्वरूप इसी साल की शुरुआत फरवरी में पैन्गोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारे से चीनी पीएलए और भारतीय सेना के फ्रंटलाइन सैनिकों की पारस्परिक वापसी हुई। इसी तरह अगस्त में गोगरा पोस्ट से दोनों सेनाएं पीछे हटी हैं। चीनी सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख के अलावा उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में भी हाल ही में घुसपैठ के प्रयास किये हैं। इस बीच चीन ने 23 अक्टूबर, 2021 को एक नया भूमि सीमा कानून पेश किया, जो 1 जनवरी, 2022 से लागू होगा।
अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग
भारत के अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा फिर से जताने के चीन के ताजा कदम पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि अरुणाचल भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। कोई भी नाम दे देने से ये तथ्य नहीं बदलेगा।