Veer Savarkar: स्वातंत्र्यवीर सावरकर के विचारों की जीत, पहली कक्षा से सैन्य शिक्षा शामिल करने की पहल

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Veer Savarkar:  महाराष्ट्र सरकार ने पहली कक्षा से स्कूली शिक्षा में सैन्य शिक्षा को शामिल करने का फैसला किया है। महाराष्ट्र के स्कूली शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने इसकी घोषणा की है। दादा भुसे नासिक में आयोजित ग्रीष्मकालीन युवा सम्मेलन 2025 के समापन समारोह में बोल रहे थे। आज केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा राष्ट्रहित में लिए गए निर्णयों से ऐसा लगता है कि सरकार बिना उनका नाम लिए स्वातंत्र्यवीर सावरकर की विचारधारा का अनुसरण कर रही है।

नागरिक सैन्यीकरण के पक्ष में थे वीर सावरकर
सावरकर का मानना ​​था कि मजबूत भारत के निर्माण के लिए छात्र की उम्र से ही सैन्य प्रशिक्षण को शामिल किया जाना चाहिए। सावरकर ने हमेशा सैन्यीकरण की वकालत की थी। वीर सावरकर ने नेशनल मेडिकल कॉलेज के छात्रों के समक्ष बोलते हुए ये विचार रखे थे।

सावरकर का राष्ट्रीय चिकित्सा महाविद्यालय के विद्यार्थियों के समक्ष भाषण
सावरकर ने चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों के समक्ष अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था, “आज आपकी उम्र साहसिक कार्यों की उम्र है। इस उम्र में आपको कुछ विशेष करने का निश्चय कर लेना चाहिए। दुनिया की प्रगति असाधारण बुद्धि वाले पुरुषों द्वारा ही नई खोज करके और महान कार्य करके प्राप्त की गई है। जब तक ऐसे महान पुरुष पैदा नहीं होंगे, तब तक देश आज की दुर्दशा से बाहर नहीं निकल पाएगा। इसके लिए हमें काम करना चाहिए। इसके लिए हमें अपने शरीर को मजबूत बनाना चाहिए। इस संबंध में मैं महाविद्यालय के निदेशकों को सलाह देता हूं कि वे कम से कम छात्रों को लाठी चलाना सिखाना शुरू करें।” सावरकर ने उस दिन ये विचार व्यक्त किए थे। उस समय के समाचार पत्रों में उनका यह भाषण बहुत लोकप्रिय हुआ था।

सावरकर का साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में भाषण
1938 में मुंबई में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन आयोजित किया गया था। स्वातंत्र्यवीर सावरकर इस बैठक के अध्यक्ष थे। इस भाषण में उन्होंने कलम तोड़ने और बंदूक उठाने का संदेश दिया था। उनके शब्दों ने उस समय काफी हलचल मचाई थी। उस समय सावरकर ने अपने भाषण में कहा था कि “हमारा विशाल भारतीय राष्ट्र आज साहित्य के अभाव के कारण नहीं, अपितु शस्त्रों के अभाव के कारण संसार में कलंकित है। यह बात आप साहित्यकारों को सबसे पहले समझनी चाहिए। इसलिए सबसे पहले आपको यह गर्जना करनी चाहिए कि आज की स्थिति में हमारा राष्ट्रीय साहित्य शस्त्र नहीं है, साहित्यिक चर्चा नहीं है। 40 से ऊपर की आयु वाले भी अपनी आवश्यकतानुसार थोड़ा-बहुत साहित्य दें, लेकिन युवा पुरुषों और महिलाओं को, मजबूत रीढ़ वाली पीढ़ी को मेरा आदेश है कि आज राष्ट्र को लेखकों की नहीं, सैनिकों की आवश्यकता है! राष्ट्र की रक्षा के लिए पहले राइफल क्लब में जाएं। बाद में यदि आपको दुख भरे गीतों और दुख भरी कहानियों की साहित्यिक सभा में समय मिले, तो साहित्य के लिए हमें भी अपनी साहित्य की पुस्तकें समेटकर सेना शिविर का रुख करना चाहिए। क्योंकि जो राष्ट्र दुर्बल और कमजोर है, उसका साहित्य भी दुर्बल और कमजोर होगा।”

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देर से ही सही, सरकार स्वीकार कर रही है आज सावरकर के विचारः रणजीत सावरकर
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पोते रणजीत सावरकर ने महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है, “सरकार देर से ही सही, स्वातंत्र्यवीर सावरकर के विचारों को स्वीकार कर रही है। आज सरकार द्वारा किए जा रहे कार्य, सरकार के लक्ष्य और नीतियां सभी सावरकर के विचारों पर आधारित हैं, यह सावरकर के विचारों की जीत है। पिछली सरकार द्वारा ठीक विपरीत विचारों को अपनाने के कारण भारत की आर्थिक, सामाजिक और सैन्य प्रगति बाधित हुई थी। लेकिन सावरकर के विचारों को अपनाने के कारण ही सरकार ने आज इतनी प्रगति की है। वर्तमान सरकार द्वारा लागू किया गया ऑपरेशन सिंदूर इसका सबसे बड़ा प्रदर्शन है। इसलिए, हालांकि इसका सीधे तौर पर नाम नहीं लिया गया है, लेकिन रणजीत सावरकर ने यह राय व्यक्त की है कि वर्तमान सरकार सावरकर की नीतियों को अपना रही है।”

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