उत्तर प्रदेश में 2022 में फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसे लेकर सभी पार्टियां रणनीति बनाने में जुटी हैं। इस चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी का मनोबल बढ़ा हुआ है। इसका कारण यह है कि हाल ही में हुए पंचायत के बाद ब्लॉक अध्यक्ष के चुनाव में भी पार्टी ने बंपर जीत दर्ज की है। इसके बावजूद यह मानकर चलना कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की धमाकेदार जीत सुनिश्चित है, आत्मघाती कदम हो सकता है। भाजपा भी इस बात को अच्छी तरह समझती है।
स्थानीय निकाय और अन्य तरह के चुनावों में मिली जीत भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है लेकिन पार्टी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की असली परीक्षा तो विधानसभा और उसके बाद 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव में ही होगी। भाजपा इस बात को अच्छी तरह समझती है। इसलिए वह जमीनी स्तर पर अपनी पार्टी को मजबूती प्रदान करने में जुटी हुई है।
भाजपा है भारी
प्रदेश में पार्टियों की वर्तमान स्थिति देखें तो यह कहना मुश्किल नहीं है, कि चुनाव को लेकर भाजपा की तैयारी और रणनीति दूसरी पार्टियों की अपेक्षा बेहतर है। इसके साथ ही वह पार्टी को हर स्तर पर मजबूत करने की दिशा में बेहद सक्रिय है। इसी कड़ी में हाल ही में पार्टी ने काग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री जितिन प्रसाद को पार्टी में लाने के साथ ही पूर्व नौकरशाह अरविंद कुमार शर्मा को भी प्रदेश उपाध्यक्ष बनाकर अलग-अलग समाज के मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश की है। लोगों की शिकायत थी कि योगी के कार्यकाल में ब्राह्मण समाज की उपेक्षा की गई है। इस शिकायत को योगी सरकार ने जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल कर दूर करने की कोशिश की है।
समाज में संतुलन साधने का प्रयास
इसके साथ ही अब योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार की तैयारी भी चल रही है। बताया जा रहा है कि मंत्रिमंडल में कम से कम 8 अलग-अलग समाज के जनप्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। ओबीसी समाज से संजय निषाद और ब्राह्मण समाज से जितिन प्रसाद के साथ ही एक महिला चेहरे को भी को मंत्री बनाए जाने की चर्चा है। मिली जानकारी के अनुसार मंत्रियों के नाम पर पार्टी हाईकमान की मुहर लग गई और और सिर्फ आधिकारिक रुप से घोषणा करना बाकी है।
पीएम मोदी की रणनीति
पीएम मोदी 30 जुलाई को 9 मेडिकल कॉलेज का लोकार्पण करनेवाले हैं। इससे पहले 15 जुलाई को उन्होंने वाराणसी में 1,500 करोड़ की परियोजनाओं का उपहार दिया है। चुनाव से पहले पीएम की इस तरह की घोषणाओं से प्रदेश के मतदाताओं को आकर्षित करने में आसानी होगी।
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योगी पर दांव
15 जुलाई को अपने संबोधन में पीएम ने सीएम योगी की तारीफ करते हुए कहा था, ‘यूपी में कानून का राज है, सीएम इसके लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।’ अब यह भी तय हो गया है कि यह विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। इसके संकेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी पहले ही दे चुके हैं। इस स्थिति में प्रदेश में हर तरफ योगी आदित्यनाथ की जय-जय हो रही है।
आज यूपी में कानून का राज है।
माफियाराज और आतंकवाद, जो कभी बेकाबू हो रहे थे, उन पर अब कानून का शिकंजा है।
बहनों-बेटियों की सुरक्षा को लेकर माँ-बाप हमेशा जिस तरह डर और आशंकाओं में जीते थे, वो स्थिति भी बदली है: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) July 15, 2021
सबसे बड़े लड़ैया
फिलहाल चुनाव प्रचार के दौरान योगी सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए पार्टी ने दो गाने भी लॉन्च किए हैं। एक गाने में बताया जा रहा है कि जब से योगी आदित्यनाथ सीएम बने हैं, तब से यूपी सभी मामले में नंबर वन है। जबकि दूसरे गाने में योगी आदित्यनाथ को सबसे बड़े लड़ैया के रुप में प्रस्तुत किया गया है। इस गाने में बताया गया है कि योगी के सीएम बनने के बाद प्रदेश में माफियाओं और बाहुबलियों का जीना दूभर हो गया है।
समाजवादी पार्टी की नीति
भाजपा के बाद उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है। इसने 2017 के चुनाव में 47 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अखिलेश यादव ने भी 2022 की चुनावी तैयारी का आगाज कर दिया है। वे यादव मतदाताओं के साथ ही मुस्लिम मतदाताओं को फिर से अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनके लिए इस बार बडी समस्या यह है कि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतरने के मूड में हैं।
ओवैसी कर सकते हैं सपा की ऐसी तैसी
बिहार में 5 सीटों पर मिली जीत से ओवैसी का मनोबल बढ़ा हुआ है और वे यूपी में भी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में पार्टी उम्मीदवार उतारने की तैयारी में जुटे हुए हैं। इस स्थिति में सपा के मुस्लिम वोट बैंक पर सेंध लगना तय है। लेकिन सपा के पारंपरिक मुस्लिम मतादातओं के वोट उसे मिल सकते हैं। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी की नजर ओबीसी मतदाताओं को भी लगी हुई है।
अखिलेश यादव ने किया चुनाव अभियान का आगाज
फिलहाल अखिलेश यादव ने 21 जुलाई को मिशन उत्तर प्रदेश के लिए अपने अभियान का आगाज कर दिया है। इसके लिए उन्होंने रथयात्रा निकालकर अपने समर्थकों में जोश भरने क कोशिश की। वे रथयात्रा करते हुए लखनऊ से उन्नाव पहुंचे। इस दौरान उन्होंने भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भाजपा ने झूठ बोलकर जनता को गुमराह किया। मायावती के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वे बसपा के बारे में कुछ नहीं कहेंगे। इसके साथ ही पिछले चुनाव में भतीजे से अलग होकर चुनाव मैदान में उतरने वाले अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव के भी उनके साथ आने की बातें कही जा रही हैं।
बसपा का ब्राह्मण कार्ड
यूपी की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी मायावती की बहुजन समाज पार्टी है। बसपा को 2017 के चुनाव में 19 सीटें मिली थीं।कभी दलितों की पार्टी कही जाने वाली बसपा कुछ वर्षों से ब्राह्मणों और ठाकुरों का स्वागत गर्मजोशी से कर रही हैं। इस बार भी मिशन 2022 के मद्देनजर बसपा ने राज्य में ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन किया है। इसकी शुरुआत राम नगरी अयोध्या से की गई है।
सतीश चंद्र मिश्रा को जिम्मेदारी
सपा सुप्रीमो मायावती ने अपने सबसे खास और ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्रा को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है। हालांकि इस बार सम्मेलन का नाम बदलकर प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी कर दिया गया है। इससे पहले ब्राह्मण कार्ड खेलकर 2007 में मुख्यमंत्री की गद्दी हासिल कर चुकी मायावती का यह दांव इस बार कितना प्रभावी रहेगा, इसका पता 2022 में ही चल पाएगा।
कमजोर हो रही है बसपा
2007 में बसपा को 206 सीटों पर जीत मिली थी और मायावती ने पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई थी। लेकिन उसके बाद बसपा की राजनैतिक हैसियत कम होती जा रही है। 2012 में जहां विधानसभा तुनाव में वह मात्र 80 सीटें जीत पाईं, वहीं 2017 में 19 सीटों से संतोष करना पड़ा।
कांग्रेस का क्या होगा?
2017 के विधानसभा चुनाव में 110 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 7 सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस ने एक बार फिर गठबंधन की राह पर चलने के संकेत दिए हैं। हर चुनाव के बाद कमजोर हो रही कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा है कि यूपी में परिस्थिति के अनुसार गठबंधन को लेकर निर्णय लिया जाएगा। अभी इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। इसके साथ ही उन्होंने समाजवादी पार्टी और कुछ छोटे दलों से गठबंधन के संकेत दिए हैं। लेकिन पिछले चुनाव में साथ लड़कर भी मात्र 47 सीटों पर जीत हासिल करने वाली सपा क्या इस बार कांग्रेस से हाथ मिलाएगी। यह सबसे बडा सवाल है। वैसे, जमीनी स्थिति की बात करें, तो कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में दमदार नेताओं का अभाव है और इस चुनाव में भी कोई करिश्मा की उम्मीद नहीं की जा सकती।