Trump vs Zelensky: क्या पश्चिमी खेमे में मतभेद से पुतिन को यूक्रेन युद्ध में होगा फायदा? यहां जानें

हाल ही में, जब डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयान दिए, तो यह पश्चिमी खेमे में एक नए प्रकार के विभाजन का संकेत था।

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  • अंकित तिवारी

Trump vs Zelensky: यूक्रेन युद्ध में रूस की स्थिति, जिसमें व्लादिमीर पुतिन लगातार पश्चिमी देशों से टकरा रहे हैं, ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। पिछले कुछ वर्षों से पश्चिमी देशों का समर्थन यूक्रेन को मिल रहा है, लेकिन हाल के घटनाक्रम, जैसे कि डोनाल्ड ट्रंप और वोलोडिमीर ज़ेलेन्स्की के बीच विवाद, पश्चिमी खेमे में कुछ घातक मतभेदों को उजागर कर रहे हैं।

इन मतभेदों का संभावित प्रभाव पुतिन की रणनीति और युद्ध में रूस की सफलता पर क्या हो सकता है? क्या पश्चिमी देशों के भीतर बढ़ती दरारें रूस के लिए युद्ध जीतने का रास्ता खोल सकती हैं?

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ट्रंप और ज़ेलेन्स्की
हाल ही में, जब डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयान दिए, तो यह पश्चिमी खेमे में एक नए प्रकार के विभाजन का संकेत था। ट्रंप, जो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति हैं, ने यूक्रेन को मदद देने के प्रति अपनी आलोचनात्मक टिप्पणियाँ कीं और कहा कि यूक्रेन को इतनी बड़ी सहायता नहीं मिलनी चाहिए। उनका यह भी मानना था कि यूक्रेन की स्थिति को लेकर अमेरिका का ध्यान बंटाना अमेरिका की आंतरिक समस्याओं से ध्यान हटा सकता है। उनके इन बयानों ने यूक्रेन की मदद करने वाले पश्चिमी देशों के अन्य नेताओं को घेर लिया, जिनमें यूरोपीय यूनियन के सदस्य भी शामिल हैं।

वहीं, ज़ेलेन्स्की की प्रतिक्रिया ने पश्चिमी देशों के भीतर इस मतभेद को और गहरा किया। ज़ेलेन्स्की ने ट्रंप की टिप्पणी को खारिज करते हुए कहा कि उनके देश को युद्ध जीतने के लिए समर्थन की जरूरत है, और यूक्रेन के लोगों के संघर्ष को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस तकरार से पश्चिमी खेमे में तनाव और असहमति को उजागर किया है। अमेरिका में ट्रंप जैसे नेता, जो रूस के प्रति अधिक नरम रुख अपनाते हैं, और यूरोप में ज़ेलेन्स्की की नीतियों के समर्थक, जो यूक्रेन की संप्रभुता और पश्चिमी सहयोग पर जोर देते हैं, दोनों के बीच एक स्पष्ट विभाजन नजर आता है।

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रूस को कैसे मदद मिल सकती है?
पश्चिमी खेमे में इन बढ़ते मतभेदों के कारण पुतिन को यूक्रेन युद्ध में लाभ मिल सकता है। पहला, यदि ट्रंप जैसे नेता सत्ता में वापस आते हैं, तो यूक्रेन को मिलने वाली सहायता में कमी आ सकती है। यह रूस को समय और संसाधनों का लाभ प्रदान कर सकता है, जिससे वह अपने सैन्य अभियानों को और मजबूती से जारी रख सके।

दूसरा, यूरोप और अमेरिका के बीच बढ़ती असहमति से पुतिन को एक कूटनीतिक फायदा हो सकता है। यदि पश्चिमी देशों के नेता यूक्रेन के समर्थन पर एकमत नहीं होते, तो यह यूक्रेन को कमजोर कर सकता है और रूस के लिए एक रणनीतिक लाभ प्रदान कर सकता है। विशेष रूप से, यूरोपीय देशों के लिए रूस के साथ ऊर्जा आपूर्ति और आर्थिक रिश्तों का दबाव एक बड़ी चुनौती बन सकता है, जिससे वे अपनी नीतियों में नरमी ला सकते हैं।

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पश्चिमी खेमे में विभाजन: वैश्विक परिप्रेक्ष्य
पश्चिमी देशों के बीच मतभेद न केवल यूक्रेन की मदद को प्रभावित कर सकते हैं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा और राजनीति पर भी गहरा असर डाल सकते हैं। यदि ट्रंप जैसे नेताओं के प्रभाव से यूरोपीय देशों को अपने समर्थन में बदलाव आता है, तो यह रूस के लिए एक बड़ा कूटनीतिक अवसर होगा।

इसके अलावा, पश्चिमी देशों का ध्यान खींचने वाली आंतरिक समस्याएँ, जैसे कि आर्थिक संकट, महामारी के बाद की रिकवरी और राजनीतिक अस्थिरता, रूस को अवसर प्रदान कर सकती हैं। पुतिन के लिए यह एक मौका हो सकता है कि वह यूरोप और अमेरिका के बीच बढ़ती असहमति का फायदा उठाकर यूक्रेन के खिलाफ अपनी सैन्य कार्यवाहियों को तेज कर सके।

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भविष्य में क्या हो सकता है?
पश्चिमी देशों में आंतरिक असहमति और राजनीतिक उथल-पुथल को देखते हुए, रूस का यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में लाभ उठाना एक वास्तविक संभावना है। हालांकि, यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि यूक्रेन के लोग और उनके नेता अभी भी संघर्ष के प्रति दृढ़ हैं। उन्हें पश्चिमी समर्थन मिल सकता है, लेकिन यदि पश्चिमी खेमे में यह दरार और गहरी होती है, तो पुतिन की स्थिति मजबूत हो सकती है।

कुल मिलाकर, पश्चिमी खेमे में इन मतभेदों के कारण पुतिन को युद्ध में लाभ मिल सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से युद्ध के परिणाम को निर्धारित नहीं करेगा। पश्चिमी देशों की एकजुटता और निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई भी असहमति, रूस के लिए एक दीर्घकालिक सफलता की संभावना बना सकती है। वर्तमान में, यह कहना मुश्किल है कि युद्ध किस दिशा में जाएगा, लेकिन एक बात निश्चित है कि पश्चिमी खेमे में गहरे मतभेद, पुतिन के युद्ध के आक्रमण को और तीव्र बना सकते हैं, जिससे यूक्रेन की स्थिति और भी कठिन हो सकती है।

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भारत पर असर
पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते मतभेद, जैसे कि डोनाल्ड ट्रंप और वोलोडिमीर जेलेन्स्की के बीच विवाद, पुतिन को यूक्रेन युद्ध में लाभ पहुंचा सकते हैं। यदि ट्रंप जैसे नेता यूक्रेन को मिलने वाली सहायता में कमी करते हैं, तो रूस को समय और संसाधन मिल सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, पुतिन को रणनीतिक लाभ हो सकता है। भारत के लिए यह स्थिति जटिल हो सकती है, क्योंकि पश्चिमी देशों के बीच असहमति से भारत को कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने में चुनौती हो सकती है, विशेष रूप से यूक्रेन संकट और रूस के साथ इसके रिश्तों को लेकर। इसका दूसरा पक्ष यह है कि अगर जल्द ही युद्ध का कोई निर्णायक परिणाम निकलता है तो सोवियत समय के दोस्त रूस और अमेरिका तथा पश्चिम समर्थित यूक्रेन के बीच किसी एक को चुनने की दुविधा खत्म हो जाएगी। तब भारत बिना नैतिक और युद्धक दबाव के सपने विदेश निति को संतुलित कर सकेगा।

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