THE WEEK पत्रिका हुई शरणागत! अब लिखा ‘वीर सावरकर के प्रति उच्च सम्मान’

वीर सावरकर का उल्लेख करके देश में साजिशन गलत बयानबाजी की जाती है। ऐसे ही एक प्रस्तुतिकरण में मराठी समाचार माध्यम एबीपी माझा ने माफी मांगी थी, अब मलयाली मनोरमा कं.लि की द वीक मैगजीन उसी मुहाने पर पहुंच गई है।

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इतिहास संशोधन के नाम पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर अवमानना वाला लेख लिखने के प्रकरण में अंग्रेजी पत्रिका समूह क्षमा याचना में उतर आई है। न्यायालय में चल रहे प्रकरण में ‘द वीक’ पत्रिका समूह ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक से उस लेख को छापने के लिए क्षमा मांगते हुए शरणागति स्वीकार कर ली है।

अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोग क्रांतिवीरों पर भी गलत बयानबाजी और लेख लिखने से पीछे नहीं हटते। इसका संज्ञान लेते हुए स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक ने कड़ी कार्रवाई शुरू की है। जिसके कारण न्यायालय और जनता के दरबार में ऐसी शक्तियों को शरणागति स्वीकार करने के अलावा कोई राह नहीं बची। वीर सावरकर के जीवन को लेकर एक आपत्तिजनक लेख अंग्रेजी पत्रिका ‘द वीक’ ने प्रकाशित किया था। जिसके बाद तत्काल स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक ने इसका संज्ञान लिया। इतिहास के गलत प्रस्तुतिकरण के विरुद्ध साक्ष्यों के साथ स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक ने न्यायालय में याचिका दायर की। परिणाम अब सामने है एक और समाचार समूह को अपने झूठ और अवनमान जनक लेख के लिए शरणागति स्वीकार करनी पड़ी। इसके पहले एबीपी माझा ने लिखित माफी मांगी थी।

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ये है ‘द वीक’ का माफीनामा
24 जनवरी, 2016 को विनायक दामोदर सावरकर पर एक लेख ‘द वीक’ में प्रकाशित किया गया था। इसका शीर्षक था लैंब लायोनाइज्ड, इसमें अंदर की कड़ियों में ‘हीरो टू जीरो’ लिखा गया था, यह गलती से वीर सावरकर के महान व्यक्तिमत्व का विशुद्ध अर्थ था। वीर सावरकर के प्रति हमारे मन में उच्च सम्मान है। इस लेख से यदि किसी की भावना को ठेस पहुंचती हो तो हम प्रबंधन के रूप में इसके लिए क्षमा याचना करते हैं।

ये है प्रकरण
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन पर एक लेख 24 जनवरी, 2016 के द वीक पत्रिका के साप्ताहिक अंक में प्रकाशित किया गया था। इस लेख में निरंजन टकले नामक एक लेखक ने इतिहास के नाम पर स्वातंत्र्यवीर के विरुद्ध अवमानजनक उल्लेख किये थे। द वीक पत्रिका ने इस लेख में इतिहास के प्रस्तुतिकरण में गलत बयानबाजी को आधार बनाया था। इसमें Lamb Lionised शीर्षक से विनायक दामोदर सावरकर पर लेख प्रकाशित किया गया था। लेख के अंदर की कड़ियों में वीर सावरकर का उल्लेख Hero to Zero के रूप में किया गया था। जिस पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष और वीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर, कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे, कार्यवाह राजेंद्र वराडकर ने संज्ञान लिया।

23 अप्रैल 2016 को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में इसकी लिखित शिकायत की गई। इस समय तक देश-विदेश से वीर सावरकर के प्रति ऐसे अतथ्यात्मक लेख से लोगों की प्रतिक्रियाएं उमड़नी शुरू हो गई थी। प्रेस काउंसिल से इस पर कोई प्रतिसाद नहीं मिला।

न्यायालय की शरण में पहुंचे
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर इस गलत लेख पर संबंधित लोगों को मुंहतोड़ उत्तर देना चाहते थे। इसलिए अधिवक्ता शरद मोकाशी के माध्यम से 3 मई, 2016 को विशेष मुख्य महानगर दंडाधिकारी के न्यायालय में आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया गया।

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इस मुकदमें लेखक निरंजन टकले, मलयालम मनोरमा कं.लि के फिलिप मैथ्यू (प्रबंध संपादक), जेकब मैथ्यू ( मुद्रक व प्रकाशक), टीआर गोपालकृष्णन (प्रभारी संपादक) को आरोपी बनाया गया था। पांच वर्ष से यह प्रकरण चल रहा है। इस मध्य 21 सुनवाइयां हुईं, 10 दिसंबर, 2019 को आरोपियों को 15 हजार रुपए के निजी मुचलके पर जमानत मिली। अब तक लेखक की कारगुजारियां संपादकीय समूह और मुद्रक, प्रकाशक को पता चल गई थीं। उन्होंने आगे आनेवाले बुरे दिनों को भांप लिया है शायद… प्रकरण अब भी न्यायालय में प्रलंबित है, लेकिन उसके पहले ही प्रबंधन ने शरणागति स्वीकार कर ली है।

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