प्रधानमंत्री पद को लेकर फिर बिखरा विपक्ष! जानिये, किस पार्टी का क्या है राजनैतिक स्वार्थ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने किसको प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया जाए, इस पर विपक्षी दलों में एकता नहीं बन पा रही है।

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोकसभा का चुनाव फूलपुर सीट से लड़ेंगे। नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी को मजबूती मिल सके, इसलिए समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मिलकर एक नया गठजोड़ बनाया है।

नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बनारस से चुनाव लड़ने के फार्मूले को आजमाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने प्रयागराज लोकसभा सीट के नजदीक फूलपुर सीट को अपना रणक्षेत्र बनाने का फैसला किया है । फूलपुर लोकसभा सीट पर पटेल और कुर्मी जाति का वोट अधिक है। लेकिन नीतीश कुमार का यह फार्मूला अभी सिरे भी नहीं चढ़ा था कि कांग्रेस ने इसमें टांग अड़ा दी है। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने कहा है कि बिना कांग्रेस के विपक्षी एकता संभव नहीं है।

अपनी डफली, अपना राग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने किसको प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया जाए, इस पर विपक्षी दलों में एकता नहीं बन पा रही है। इस पर सभी विपक्षी नेताओं ने अपने-अपने ढंग से पत्ते फेंकना शुरू कर दिया है। आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल अपनी अलग राह पर चल रहे हैं। क्योंकि उनको लग रहा है कि जिस तरह से देश में कांग्रेस का प्रभुत्व घटता जा रहा है, उससे उनके लिए संभावनाएं अधिक हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव भी अपनी अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं लेकिन उनको समर्थक नहीं मिल रहा है। कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के तहत अपने कैडर में जान फूंकने में लगी है। कांग्रेस में पार्टी छोड़ने की भगदड़ मची है, उससे पार्टी को बचाना एक बड़ी चुनौती बन गई है।

मजबूत स्थिति में भाजपा
भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और पूर्वांचल के प्रभावशाली ब्राह्मण परिवार करवरिया का फूलपुर सीट पर दबदबा है । बसपा के टिकट पर कपिल मुनि करवरिया फूलपुर सीट से वर्ष 2009 में सांसद बन चुके हैं । पूर्वांचल की राजनीति में करवरिया परिवार के बारे में कहा जाता है कि ये परिवार चुनाव पूरी मैनेजमेंट से लड़ता है । ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य और करवरिया परिवार इस सीट पर नीतीश कुमार की राह को मुश्किल कर देंगे। भाजपा नेता और पूर्व एमएलए नीलम करवरिया कहती हैं कि भाजपा ब्राह्मण की राजनीति नहीं करती बल्कि वह सभी जातियों को साथ लेकर चल रही है।

कैसा है फूलपुर संसदीय सीट का इतिहास?
फूलपुर लोकसभा सीट भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के संसदीय क्षेत्र के के रूप में जाना जाता है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार फूलपुर संसदीय सीट से जीत दर्ज की थी । इसके बाद 1962 के चुनाव में फूलपुर से डॉ राम मनोहर लोहिया भी चुनाव मैदान में उतरे लेकिन पंडित नेहरू ने उन्हें भी चुनाव में हरा दिया था । पंडित नेहरू के 1964 में निधन के बाद कांग्रेस ने उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित को चुनाव मैदान में उतारा और चुनाव जीतीं, फिर 1967 के आम चुनाव में बहन विजयलक्ष्मी पंडित दोबारा चुनाव जीतीं हालांकि इस चुनाव के 2 साल बाद 1969 में संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था।

फूलपुर की जनता ने 1969 में हुए उपचुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार ने यह सीट जीती और पहली बार इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व टूट गया। 1971 में लोकसभा के चुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस की टिकट पर यह सीट जीती, 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की लहर के बीच यह सीट राष्ट्रीय लोकदल के खाते में गई ।
वर्ष 1980 में देश में इंदिरा गांधी ने जोरदार वापसी की लेकिन फूलपुर सीट पर कांग्रेस का जलवा नहीं चल सका लेकिन 1984 में यह सीट कांग्रेस के पास आ गई। कांग्रेस प्रत्याशी राम पूजन पटेल ने यह सीट जीती। इसके बाद राम पूजन पटेल 1989 और 1991 के चुनाव में कांग्रेस छोड़कर जनता दल में शामिल हुए और फूलपुर लोकसभा सीट से लड़े तथा जीते भी। इसके बाद यह सीट समाजवादी पार्टी के पास चली गई।

1996 और 2000 तक समाजवादी पार्टी ने सीट जीती। वर्ष 2000 चुनाव में फूलपुर से अतीक अहमद सांसद बने, लेकिन 2009 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के कपिल मुनि करवरिया ने इस सीट पर समाजवादी पार्टी के वर्चस्व को तोड़ दिया।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां से केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव मैदान में उतारा और वह जीते। केशव मौर्य को डिप्टी सीएम बनाया गया। और उपचुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा तथा समाजवादी पार्टी के नागेंद्र प्रताप सिंह फिर चुनाव जीते। 2019 में बीजेपी की केसरी देवी पटेल फूलपुर सीट से चुनाव जीतीं।

जातीय समीकरण
इस सीट पर सबसे बड़ी आबादी दलितों की है। दलित करीब 18.5 प्रतिशत हैं । इसके बाद पटेल और कुर्मी वोटर हैं। इनकी आबादी 13 . 36 प्रतिशत है। मुस्लिम वोटर भी यहां 12 प्रतिशत है। इसके अलावा 11.61 प्रतिशत ब्राह्मण भी प्रयागराज की इस दूसरी लोकसभा सीट में रहते हैं । राजपूत 5 प्रतिशत हैं।

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