2022 के वो पांच ताकतवर नेता, जिनकी जोरों पर है चर्चा!

वर्ष 2022 मे वैसे तो देश के कई नेता चर्चा में बने हुए हैं लेकिन हम यहां उन पांच नेताओं के बारे में जानेंगे, जिनका लोहा आज देश में माना जा रहा है।

91

अभी वर्ष 2022 का पांचवां महीना ही चल रहा है और लगभग सात महीने वर्ष पूरा होने में बाकी हैं। लेकिन इन चार महीनों में देश में काफी कुछ ऐसा हुआ है, जिनके आधार पर देश के ताकतवर नेताओं का आकलन किया जा सकता है। आइए, हम जानते हैं 2022 के उन राजनैतिक ओपनर्स को, जिनकी ताकत और सूझबूझ की इन दिनों चर्चा है।

नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी पिछले एक साल से भी अधिक समय से देश ही नहीं, दुनिया के नंबर एक नेता बने हुए हैं। तमाम आलोचनाओं के बावजूद उनकी लोकप्रियता से कोई इनकार नहीं कर सकता। उनका लोहा आज दुनिया मानती है। कोरोना संकट, अफगानिस्तान सत्ता परिवर्तन से लेकर वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर मोदी सरकार ने जिस तरह की नीति अपनाई है, उससे उसकी दूरदर्शिता और ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। मोदी के कार्यकाल में उनकी पार्टी भाजपा के साथ ही देश की शक्ति भी बढ़ी है। आज भारत किसी भी देश, संघ और अन्य संगठन के दबाव आए बिना अपने हित में निर्णय लेने में सक्षम है। यह इसलिए है क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है।

अमित शाह
मोदी सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक कद्दावर नेता हैं। उन्हें भारतीय जनता पार्टी का रणनीतिकार माना जाता है। यही कारण है कि उन्हें पार्टी का चाणक्य कहा जाता है। पर्दे के पीछे रहकर भी पार्टी के लिए हर बड़े निर्णय के पीछे उनका हाथ रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद नेता माने जाने वाले शाह सरकार में भी दूसरे नंबर पर गृह मंत्री हैं। सीएए से लेकर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के पीछे शाह की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने विरोधियों के तमाम आलोचनाओं के बावजूद जहां जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 एक झटके में हटा दिया, वहीं उसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर तथा लद्दाख को उससे अलग कर अपनी दूरदर्शिता और दृढ़ता का परिचय दिया। शाह को मोदी के बाद देश के प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जाता है।

योगी आदित्यनाथ
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देश के उन मुख्यमंत्रियों में गिने जाते हैं, जो अपने कठोर निर्णय और उस पर पूरी दक्षता से लागू करने में विश्वास रखते हैं। बुलडोजर बाबा के नाम से मशहूर योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले के कार्यकाल में जिस तरह की छवि बनाई है, उससे उनकी पहचान एक प्रखर हिंदुत्वादी और महत्वाकांक्षी शासक तथा नेता के रूप मे बन गई है। राम मंदिर के निर्माण से लेकर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण करने, लवजिहाद पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानून बनाने और दंगाइयों पर शिकंजा कसने के लिए उनके द्वारा पहुंचाए गए नुकसान को उनकी संपत्ति बेचकर वसूल करने जैसे नीति बनाने की हिम्मत बहुत ही कम मुख्यमंत्रियों में है। उत्तर प्रदेश में फिल्मिसिटी बनाने और एयरपोर्ट की जाल बिछाने के साथ ही रोजगार के कई स्रोत तैयार करने के कारण मुख्यमंत्री योगी की पहचान एक सुलझे हुए नेता के रूप में बन गई है। उन्हें भाजपा में तीसरे नंबर का नेता माना जाता है। भाजपा में मोदी और शाह के बाद योगी आदित्यनाथ का नाम लिया जाता है। इसके साथ ही उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाता है।

अरविंद केजरीवाल
चौथे नंबर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नाम आता है। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होते हुए भी दिल्ली में सत्ता जमाये रखकर उन्होंने अपनी गहरी राजनीति सूझबूझ का परिचय दिया है। उनकी आम आदमी पार्टी ने दिल्लीवालों को मुफ्त पानी और बिजली देकर दूसरे राज्यों के लिए मिसाल पेश की है। दूसरे राज्यों की सरकारों के सामने इस तरह का लाभ लोगों को पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही उनकी पार्टी अब दिल्ली से निकलकर पंजाब में पहुंच ही नहीं गई है, बल्कि कब्जा भी जमा लिया है। उनकी पार्टी ने जिस तरह की जीत हाल ही में यहां हुए विधानसभा चुनाव में दर्ज की है, वह इस बात का संकेत है कि केजरीवाल की महत्वकांक्षा केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं है। उनकी आम आदमी पार्टी अब हिमाचल प्रदेश और गुजरात में इसी वर्ष यानी 2022 में होने वाले चुनाव को लेकर तैयारी कर चुकी है। केजरीवाल को राजनीति में लंबी रेस का घोड़ा माना जाता है और भविष्य में भाजपा के लिए वे बड़ी चुनौती बन सकते हैं।

राज ठाकरे
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे इन दिनों राजनीति के सबसे चर्चित चेहरों में शामिल हैं। लंबे समय से शांत बैठे मनसे प्रमुख राज ठाकरे अब काफी सक्रिय हो गए हैं। भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से वे महाराष्ट्र की राजनीति में महाविकास आघाड़ी सरकार के साथ ही शिवसेना के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं। मस्जिदों पर लाउडस्पीकर हटाने से लेकर हनुमान चालीसा पाठ करने तक की उनकी राजनीति काफी हद तक सफल रही है। इसके साथ ही औरंगाबाद में जिस तरह की सभा को उन्होंने संबोधित किया, वह शिवसेना के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। हिंदुत्व के मुद्दे को छोड़ चुकी शिवसेना को इसका खमियाजा मुबंई महानगरपालिका के चुनाव के साथ ही अनय निकाय चुनावों में भी भुगतना पड़ सकता है। इसके साथ उन्होंने पांच जून को अयोध्या में जाने की घोषणा कर अपनी उत्तरभारतीय विरोधी छवि को सुधारने की कोशिश की है। उनकी इस घोषणा के बाद शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे को भी अयोध्या जाने की घोषणा करनी पड़ी है।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.