चिरायु पंडित
Surgical Strike: विभाजन का इतिहास हमें पढ़ाया नहीं गया, शायद इसलिए इतिहास बार-बार दोहराया जा रहा है। राजाजी योजना, भूलाभाई-लियाकत अली समझौता, जिन्ना से वार्ता—इन सभी घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि गांधीजी ने मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया था। यहां तक कि उन्होंने विभाजन के विरोध में उपवास करने से भी इंकार कर दिया था।
चला था भयंकर रक्तपात का दौर
विभाजन के कुछ ही सप्ताहों में पूरा देश विभीषिका के भयानक दृश्य देख रहा था। प्राणघातक शस्त्रों से लैस, क्रूर, धर्मांध, और संगठित शत्रु द्वारा चलाए गए भयंकर रक्तपात, लूटपाट, बलपूर्वक धर्मांतरण, जीवित जलाना और सामूहिक संहार के कारण हजारों हिंदुओं पर जाति-नाश का भयावह संकट आ पड़ा था। इस भयानक आक्रमण का प्रतिकार करने हेतु न तो कोई पुलिस नज़र आती थी और न ही कोई सैनिक। ऐसी स्थिति में हिंदू क्या करते?
पाकिस्तानी प्रशासन ने बांटे थे हथियार
पाकिस्तानी प्रशासन ने पश्चिम पंजाब के मुसलमानों को खुलेआम हथियार बांटे थे, और मुस्लिम लीग के नेताओं ने जनता को भड़काया था कि पाकिस्तान की चढ़ाई का क्षेत्र हिंदुस्थान पर आक्रमण के लिए ही इस्तेमाल होना चाहिए। उसी के अनुरूप, हजारों मुसलमान हथियारों से लैस होकर ‘हंस के लिया पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्थान’ जैसे नारों के साथ जुलूस निकाल रहे थे। पूर्व पंजाब पर आक्रमण करके सीधे दिल्ली तक पहुंचकर वहीं पाकिस्तान की स्थापना करने की योजना पाकिस्तानी सत्ता के मन में स्पष्ट रूप से चल रही थी।
गांधीवादी सरकार मना रही थी उत्सव
इधर भारत में गांधीवादी सरकार “भाईचारे और बिना खून बहाए मिली आज़ादी” का उत्सव मना रही थी। नेहरू ने दिल्ली में उन 50 हज़ार खाकसारों को, जो गुप्त रूप से हथियार और विस्फोटक इकट्ठा कर रहे थे, संगठित रूप से मोर्चा निकालने की अनुमति दी थी। उस समय दिल्ली की पुलिस में 50 प्रतिशत मुसलमान थे और उनका प्रमुख आयुक्त भी मुसलमान ही था। इनका उद्देश्य था, दिल्ली पर नियंत्रण स्थापित करना। साथ ही, कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद जैसे ज्वलंत प्रश्न भी सामने खड़े थे।
वीर सावरकर ने दी थी चेतावनी
इधर वीर सावरकर जैसे हिंदू संगठनकर्ता देश भर में चेतावनी दे रहे थे:”देखो, आप लोग भयंकर ज्वालामुखी पर बैठे हैं, आनंदोत्सव में मग्न न रहें!” परंतु इन संगठनों को ‘देशद्रोही’ और ‘जातिवादी’ कहकर धिक्कारा गया और देशभर में उन्हें जेलों में ठूंस दिया गया।
गांधीजी करने लगे थे सर्जिकल स्ट्राइक’ पर विचार
स्थिति इतनी भयावह हो गई थी कि आमजन भी प्रतिकार के लिए उठ खड़े हुए। अंततः नेहरू को कहना पड़ा कि आक्रमणों का प्रतिकार करना और दंड देना केवल सरकार का अधिकार है, इसलिए जनता कानून अपने हाथ में न लें। गांधीजी भी इस भयावह परिस्थिति से अत्यंत विचलित थे। यहां तक कि वे अपनी ही विचारधारा के विरुद्ध जाकर पाकिस्तान पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसे कदम पर विचार करने लगे थे। यह उल्लेख प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. रिज़वान क़ादरी ने मनुबेन गांधी की डायरी की 26 सितंबर 1947 की प्रविष्टि के आधार पर किया है।
जिन्ना की सोच
उस दिन गांधीजी के कुछ अतिथि उनसे मिलने आए थे। बातों-बातों में युद्ध का विषय छिड़ गया। गांधीजी ने कहा,”जिन्ना यह सोच रहा है कि जूनागढ़ पर अधिकार कर वह काठियावाड़ को जीत लेगा और फिर हैदराबाद तक पहुंच जाएगा। दूसरी ओर वहां से लाहौर के रास्ते दिल्ली पर अधिकार करेगा।” गांधीजी ने एक कुशल रणनीतिकार की भांति चौंकाने वाला विचार प्रकट किया,”मैं जिन्ना की सोच समझता हूं। अगर मैं युद्ध करूं, तो मेरा उद्देश्य कराची पर विजय प्राप्त करना होगा। कराची हिंदुओं द्वारा बसाया गया है। हमारे पास जलमार्ग हैं, हमारे पास स्टीमर हैं — उनके माध्यम से हम कराची पर, और अमृतसर के रास्ते लाहौर पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।” हालांकि अंत में गांधीजी ने अपने स्वभाविक असहाय भाव से कहा,”पर मेरी कहां चलती है?”
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कांग्रेस कर रही है पाक के पापों का समर्थन
एक क्षण के लिए ही सही, गांधीजी ने भी परिस्थिति की गंभीरता को समझकर अपने सिद्धांतों के विपरीत एक निर्णायक कदम उठाने की बात की थी। दुर्भाग्यवश, आज की गंभीर स्थिति में भी गांधी जी की कांग्रेस के ही कुछ नेता पाकिस्तान के पापों के समर्थन में दिखाई देते हैं।
(सन्दर्भ: इंडियन एक्सप्रेस 29 सितंबर 2019, ऐतिहासिक निवेदन: वीर सावरकर )