ओली जी अब कारण बताओ?

कोर्ट ने दोनों पक्षों से यह स्पष्टीकरण भी मांगा है कि अदालत संसद भंग करनेवावाले निर्णय को रद्द करने की मांग करनेवाली याचिकाओं के पक्ष में आदेश क्यों नहीं जारी कर सकती। कोर्ट ने कहा है कि अगर इसका कोई कानूनी आधार नहीं है तो कोर्ट याचिकाकर्ताओ द्वारा की गई मांग के अनुसार निर्णय दे सकता है।

97

नेपाल की संसद को समय से पहले भंग करने के मामले में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। 25 दिसंबर को देश के सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग करने के खिलाफ दायर 13 याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राष्ट्रपति कार्यालय और सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। कोर्ट ने 27 दिसंबर तक दोनों पक्षों को इस नोटिस का जवाब देने को कहा।

कोर्ट ने स्पष्टीकरण देने को कहा
कोर्ट ने दोनों पक्षों से यह स्पष्टीकरण भी मांगा है कि अदालत संसद भंग करनेवावाले निर्णय को रद्द करने की मांग करनेवाली याचिकाओं के पक्ष में आदेश क्यों नहीं जारी कर सकती। कोर्ट ने कहा है कि अगर इसका कोई कानूनी आधार नहीं है तो कोर्ट याचिकाकर्ताओ द्वारा की गई मांग के अनुसार निर्णय दे सकता है। कोर्ट ने उन्हें अटर्नी जनरल के कार्यालय के माध्यम से 3 जनवरी तक अपना पक्ष रखने को कहा है। इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई नेपाल के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने की।

राजनैतिक घटनाक्रम की सर्वत्र चर्चा
नेपाल में अचानक घटे राजनैतिक घटनाक्रम की सर्वत्र चर्चा है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर  राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने अविलंब अमल करते हुए 20 दिसंबर को संसद भंग कर दिया। अब नेपाल में दो चरणों में 30 अप्रैल और 10 मई को मध्यावधि चुनाव कराए जाने की घोषणा की गई है। राष्ट्रपति के अनुसार उन्होंने नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76, खंड एक तथा सात सहित अनुच्छेद 85 के अनुसार संसद भंग किया गया है। चर्चा है कि पार्टी में बढ़ती गुटबाजी के कारण ओली को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी है।

जानकारों ने किया था इशारा
दरअस्ल नेपाल की राजनीति के जानकारों ने पहले ही इस तरह का इशारा किया था। राजनैतिक विश्लेषकों ने कहा था कि नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी में पूर्व पीएम पुष्पकमल दहल प्रचंड और माधव नेपाल की ओली से ज्यादा अच्छी पकड़ है। इस हालत में ओली संसद भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं।

ये भी पढ़ेंः ऐसे छल रहे हैं साइबर क्रिमिनल्स!

पार्टी में गुटबाजी चरम पर
वर्ष 2017 में निर्वाचित नेपाल की प्रतिनिधि सभा या संसद के निचले सदन में 275 सदस्य हैं। ऊपरी सदन नेशनल असेंबली है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब सत्तारुढ़ दल नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी में अंतर्कलह चरम पर है।
पार्टी के दो धड़ों के बीच महीनों से टकराव जारी है। एक धड़े का नेतृत्व 68 वर्षीय ओली कर रहे हैं,जबकि दूसरे की अगुआई पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष तथा पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड कर रहे हैं।

ओली पर होगी कार्रवाई?
संसद भंग करने को लेकर ओली पर पार्टी द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की बात कही जा रही है। सत्तारुढ़ नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थायी समिति ने बैठक में ओली के इस कदम को असंवैधानिक,अलोकतांत्रिक और व्यक्तिगत सनक पर आधारित बाताया है। समिति ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की सिफारिश की है।

पार्टी प्रवक्ता ने की निंदा
पार्टी के प्रवक्ता बिस्वा प्रकाश शर्मा द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के बीच पार्टी के भीतर संघर्ष के कारण देश को अस्थिरता की ओर धकेलना निंदनीय है। उन्होंने इस फैसले को असंवैधानिक बताया और राष्ट्रपति भंडारी से संविधान के संरक्षक के रुप में अपनी भूमिका का निर्वहन करने की अपील की है।

ये भी पढ़ेंः जानें कैसा है नया कोरोना?

ओली का आरोप
ओली ने इसे खारिज करते हुए कहा है कि उनके खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा था, इसलिए वे संसद भंग करने को बाध्य हुए। ओली ने आगे कहा कि पार्टी के दूसरे अध्यक्ष द्वारा लिया गया यह निर्णय पार्टी के संविधान के विरुद्ध है। मैं पार्टी का प्रथम अध्यक्ष हूं। उन्होंने कहा कि हमें बिद्यादेवी भंडारी पर महाभियोग चलाने और संसद में उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की साजिश का पता चला था, इसलिए मैंने संसद भंग करने का निर्णय लिया।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.