सर्वोच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण पर अपना निर्णय सुना दिया है। न्यायालय ने राज्य सरकार के मराठा आरक्षण कानून को रद्द कर दिया है। मराठा आरक्षण की वैधता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी, जिसके निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति अशोक भूषण, नागेश्वर राव, एस अब्दुल नजीर, हेमंत गुप्ता और रविंद्र भट की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाया है।
इस प्रकरण में अपने निर्णय के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि महाराष्ट्र मेंं कोई आपात स्थिति नहीं थी कि मराठा आरक्षण आवश्यक था। अब तक मराठा आरक्षण की सहायता से मिले प्रवेश और नौकरियां बचे रहेंगी। आगे कोई आरक्षण नहीं मिलेगा।
आरक्षण सीमा की पृष्ठभूमि
- वर्ष 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार वे बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में ‘द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ का गठन किया था।
- इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सामाजिक एवं शैक्षणिक आधार पर 3,743 पिछड़ी जातियों की पहचान की, जिनकी जनसंख्या कुल जनसंख्या की लगभग 52% थी (अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अलावा)।
- इसके लगभग दस वर्ष बाद 1990 में वी. पी. सिंह की सरकार ने सरकारी सेवाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये 27% आरक्षण की घोषणा कर दी।
- वर्ष 1991 में पी. वी. नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने 27% आरक्षण के अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये 10% आरक्षण की व्यवस्था की।
- इन प्रावधानों को प्रसिद्ध ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले’ (वर्ष 1992) में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जहां अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण व्यवस्था को बनाए रखा गया परंतु आर्थिक आधार पर दिये गए 10% आरक्षण के प्रावधान को निरस्त कर दिया गया।
क्या था इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के मामले में निर्णय
- विशेष परिस्थितियों को छोड़कर कुल आरक्षित सीटों का कोटा 50% की सीमा से अधिक नहीं होना चाहिये।
- बैकलॉग के पदों को भरने में भी 50% कोटे की सीमा का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिये।
- इस प्रावधान को 81 वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से निरस्त कर दिया गया।
- अन्य पिछड़ा वर्ग सूची में किसी जाति को जोड़ने तथा हटाने के परीक्षण के लिये एक स्थाई गैर-विधायी इकाई होनी चाहिये।
आरक्षण सीमा पर पुनर्विचार की आवश्यकता क्यों
- सर्वोच्च न्यायालय में दायर कई याचिकाओं में यह तर्क दिया गया था कि मराठा आरक्षण कानून वर्ष 1992 में ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के मामले’ में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशोंवाली पीठ द्वारा निर्धारित आरक्षण की 50% सीमा का उल्लंघन करता है।
- इंदिरा साहनी मामले में दिया गया निर्णय लगभग 30 वर्ष पहले किया गया था, अत: इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
पिछड़े वर्गों की जनसंख्या अधिक
- ‘द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ के अनुसार, सामाजिक एवं शैक्षणिक आधार पर लगभग 52% आबादी पिछड़ी थी (अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अलावा)।
- महाराष्ट्र में 85% प्रतिशत लोग पिछड़े वर्गों से संबंधित हैं। इसी प्रकार अन्य राज्यों में भी पिछड़े लोगों का प्रतिशत 50% की सीमा से अधिक है।
- 28 राज्यों द्वारा अपने यहां संबंधित पिछड़े वर्गों को आरक्षण प्रदान करने के लिये 50% की कोटा सीमा का उल्लंघन किया गया है।
क्या है 103वां संविधान संशोधन
इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये 10% कोटा प्रदान किया गया है। न्यायालय को इस 10% कोटे को समाहित करते हुए कोटे पर 50% की सीमा पर फिर से विचार करना चाहिये।