इसलिए शिवसेना को आई मराठियों की याद!

परप्रांतीयों को करीब लाते समय शिवसेना ने मराठी समाज को उपेक्षित कर दिया। उसके बाद मराठी मानुस महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की ओर आकर्षित हो गए।

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मुंबई महानगरपालिका- 2022 चुनाव के नजदीक आते ही शिवसेना को एक बार फिर मराठी मानुस की याद आने लगी है। उसे पता है कि बिना मराठी मानुस के समर्थन के बीएमसी मुख्यालय पर भगवा फहराना असंभव है। लेकिन इस चुनाव में परप्रांतीय मतों का भी उतना ही महत्व है। इसलिए अब उसके सामने परप्रांतीयों के साथ ही मराठियों को साधने की भी बड़ी चुनौती है।

स्थापना दिवस पर मराठी आलाप
राज्य के मुख्यमंत्री और पार्टी के कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने 19 जून को पार्टी के 55वें स्थापना दिवस पर शिवसैनिकों का पार्टी प्रमुख के रूप में मार्गदर्शन किया। इस अवसर पर उन्होंने काफी दिनों बाद एक बार फिर मराठी मानुस का राग आलापा। ठाकरे ने अपने भाषण में कहा कि जब शिवसेना बनी थी, तब मराठी लोग उपेक्षित थे।

अपने ही घर थे उपेक्षित
अपने ही घर में मराठी अपमान सह रहे थे। उन्होंने मराठी मानुस को याद दिलाया कि अगर शिवसेना नहीं होती तो मराठियों का अस्तित्व खतरे में था। उस समय शिवसेना प्रमुख ने मराठी मानुस को यह एहसास कराया कि उनकी हाथ में तलवार चलाने की ताकत है,उन्होंने यह भी याद दिलाया कि मराठी मानुस आग लगा सकता है। हिंदुत्व राष्ट्रवाद है! इस तरह उद्धव ठाकरे ने सबसे पहले देशभक्ति और स्थानीय पहचान के बारे में बात करते हुए देश में हिंदुत्व और राज्य में मराठी अस्मिता को महत्वपू्र्ण बताया। बता दें कि दो दिन पहले शिवसेना सांसद संजय राउत ने स्पष्ट किया था कि शिवसेना की भूमिका देश में हिंदुत्व और राज्य में मराठी अस्मिता की है।

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परप्रांतीयों को आकर्षित करने की कोशिश
उल्लेखनीय है कि शिवसेना की स्थापना मराठी मानुस को न्याय और अधिकार दिलाने के लिए की गई थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में शिवसेना ने मराठी मुद्दे को दरकिनार कर राष्ट्रीय पार्टी के रुप में हिंदुत्ववादी सोच का लबादा ओढ़ रखा है।  शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने परप्रांतीयों को लुभाने के लिए जो मुंबई में रहता है वो मुंबईकर..अभियान की शुरुआत की थी।

शिवसेना भवन में लाई चना समारोह
उसके बाद ठाकरे ने शिवसेना भवन में लाई चना कार्यक्रम का आयोजन किया और परप्रांतीयों को करीब लाने की कोशिश की। उसके बाद मिच्छामी दुक्कड़म का आयोजन कर जैन व मारवाड़ी समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की। कुछ दिन पहले शिवसेना ने जलेबी फाफड़ा, उद्धव ठाकरे आपडा जैसे कार्यक्रम आयोजित कर भाजपा समर्थक गुजरातियों को साथ लाने की कोशिश की।

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मनसे की ओर आकर्षित हो गए मराठी
परप्रांतीयों को करीब लाते समय शिवसेना ने मराठी समाज को उपेक्षित कर दिया। उसके बाद मराठी मानुस महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की ओर आकर्षित हो गए। चूंकि मनसे सत्ता में नहीं है और पार्टी की नीति भी स्पष्ट नहीं है, इसलिए शिवसेना मराठी मानुस को फिर से आकर्षित करने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही उसकी नजर परप्रांतीयों पर भी है।

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