विभाजन दोहराना नहीं हैं तो जाति रहित हिंदू संगठन आवश्यक – रणजीत सावरकर

स्वातंत्र्यवीर सावरकर हिंदुत्व को लेकर स्पष्ट थे, इसके विरोध में उन्होंने रत्नागिरी में सात वर्ष काय किया।

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देश में जाति निर्मूलन अब एकमात्र मार्ग है। यदि 1947 के विभाजन को 2027 में दोहराना नहीं है तो जाति रहित हिंदू संगठन आवश्यक है। यह विचार स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर ने बड़ी ही प्रखरता से आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत ‘डिसमेन्टलिंग कास्टिज्म : लेसन्स फ्रॉम सावरकर्स एसेन्सशियल्स ऑफ हिंदुत्व’ के अंतर्गत आयोजित संगोष्ठी में रखे।

रणजीत सावरकर कहते हैं हिस्ट्री रिपीट्स, उनके तर्क इसी के अनुरूप थे। बंगाली ब्राम्हण मछली का सेवन करते हैं, जबकि शाक्त और वैष्णव पंथ के ब्राम्हण जातिभेद करते हैं। देश में हर जाति की जनसंख्या 2 से 3 प्रतिशत से अधिक नहीं है। इसलिए सामाजिक अस्तित्व के समक्ष जातिभेद का संकट है। हिंदू ही हिंदुओं को क्षति पहुंचा रहे हैं। जिसका निर्मूलन आवश्यक है।

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सात बेड़ियों को तोड़कर हिंदू को सबल किया
रणजीत सावरकर कहते हैं कि, अस्पृश्यता मानवता पर कलंक है। वीर सावरकर इसे पूर्ण रूप से मान्य करते थे। उन्होंने इसके मूल का पता लगाया, उसका संशोधन किया और तब उन्हें पता चला कि अस्पृश्यता का मूल जातिवाद में है। उन्होंने इसके समूल को नष्ट करने का निश्चय किया और उसके अनुसार स्पर्श बंदी की बेड़ी को तोड़ने का कार्य किया। वीर सावरकर ने हिंदू धर्म के अंतर्गत मानी जानेवाली सात बेड़ियों को तोड़ा।

हिंदुओं का एकत्रीकरण आवश्यक
रणजीत सावरकर आगे कहते हैं कि, हिंदुओं का जो विभाजन हुआ है, उसको संगठित करना आवश्यक है। देश को जातिवाद से होनेवाले नुकसान को देखकर ही वीर सावरकर ने रत्नागिरी की स्थानबद्धता काल में इसके विरुद्ध कार्य शुरू किया और वहां हिंदुत्व नामक पुस्तक की रचना की। उनके कार्यों के कारण ही रत्नागिरी के होटलों में अस्पृश्यों को प्रवेश दिया गया, जबकि उसी समय मुंबई में अस्पृश्यों के साथ अलग व्यवहार किया जाता था।

जातिवाद पर वीर सावरकर का अध्ययन
जातिवाद पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अध्ययन किया था, जिसमें 4000 से अधिक जातियों के अस्तित्व में होने की बात सामने आई। यह पूरा समाज विघटित हो गया था। मानवता पर कलंक मानी जानेवाली अस्पृश्यता का मुद्दा, समाज के समक्ष कुप्रथा, ब्राम्हणों में भेद, व्यावसाय में भेद, पंथ निर्माण में भेद पूरे समाज के लिए घातक था।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के अध्यक्ष रणजीत सावरकर का यह उद्बोधन रत्नागिरी में दो दिवसीय संगोष्ठी में था। जिसका उद्घाटन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के हाथों संपन्न हुआ। इसमें प्रमुख अतिथि थे प्रोफेसर अशोक मोडक और प्रोफेसर रजनीश शुक्ला। मुख्य वक्ता थे उदय माहूरकर और रणजीत सावरकर। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर कुमार रत्नम ने की जो सचिव हैं आईसीएचआर के।

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