गांधी के पौत्र ने जवाहरलाल नेहरू पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने गांधी की हत्या में कपूर कमीशन की रिपोर्ट, 148 साक्ष्यों की गवाही को झुठलाते हुए सीधे-सीधे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर बड़ा आरोप लगा दिया है। इस पर वीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर ने प्रश्न किया है कि तुषार गांधी और कांग्रेस बताए कि गांधी की हत्या में नेहरू का क्या हित था।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयान के बाद उठी चर्चा के दौर में एक नया विवाद तुषार गांधी ने जोड़ दिया है। उन्होंने गांधी की हत्या की जांच के संदर्भ में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाया है कि, उसकी जांच में उन्होंने ढिलाई बरती। उन्होंने कहा कि नेहरू को डर था कि इससे देश में हिंदू समाज कांग्रेस के विरोध में हो जाता। तुषार गांधी के इस आरोप के बाद वीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर ने कपूर कमीशन की रिपोर्ट को प्रस्तुत किया है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि, गांधी की हत्या की जांच में 148 गवाहों के साक्ष्य लिये गए थे, और इसके बाद ही इस प्रकरण में वीर सावरकर को सम्मानजनक रूप से मुक्त किया गया था।
हिंदुस्तान के विभाजन की माउंटबैटन योजना को नेहरू ने, बगैर कॉंग्रेस से पूछे, २४घंटे में स्वीकृत किया! कैसे? लॉर्ड और लेडी माउंटबैटन उन्हें अकेले लेकर शिमला गए और एक ही रात में जवाहर ने भारत का विभाजन स्वीकृत किया। अब उस रात पर भी एक व्हिडिओ कॉंग्रेस जारी करे! pic.twitter.com/IDdF05udih
— Ranjit Savarkar (@RanjitSavarkar) September 14, 2021
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जलियावाला के शहीदों को गांधी ने कहा था अपशब्द
माफीनामे की बात होती है तो सच्चाई को तोड़ मरोड़कर पेश करने की घटनाओं पर भी वीर सावरकर के पौत्र ने खुली चुनौती तुषार गांधी को दी है। उन्होंने कहा है कि, तुषार गांधी साक्ष्य लेकर आएं और वीर सावरकर के पत्रों, प्रमाणों को लेकर वे स्वयं बैठेंगे। रणजीत सावरकर ने कहा है कि, जलियावाला बाग के शहीदों को गांधी ने अपशब्द कहे थे। इसके लिए गांधी सेवाग्राम द्वारा पब्लिश ‘कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी’ का उद्धरण भी उन्होंने प्रस्तुत किया।
गांधी की बात मानने में गांधी के वंशजों को क्या दिक्कत?
गांधी ने वीर सावरकर के भाई नारायण सावरकर को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने सलाह दी थी कि, वीर सावरकर अंग्रेजों को पत्र लिखें। इसके बाद गांधी ने दो लेख भी वीर सावरकर पर लिखे, जिसमें वीर सावरकर को उन्होंने सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त बताया। लेकिन इसके बाद भी गांधी के वंशज और कांग्रेस के लोग उस पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। इससे उपजी परिस्थिति को देखते हुए रणजीत सावरकर ने पूछा है कि गांधी की बात मानने में उनके वंशजों और कांग्रेस को क्या दिक्कत है?
वो पत्र एमनेस्टी के अंतर्गत… छूटे क्रांतिकारी
रणजीत सावरकर ने कहा है कि गांधी द्वारा नारायण सावरकर को दी गई सलाह के बहुत पहले से ही वीर सावरकर ने अंग्रेजों को पत्र लिखना शुरू किया था। जिसका परिणाम था कि अंदमान की कालापानी की सजा यातना से पश्चिम बंगाल समेत देश के कई क्षेत्रों के क्रांतिकारियों को मुक्ति मिली थी। लेकिन, वीर सावरकर और उनके बंधु बाबाराव सावरकर को 1921 में ही अंग्रेजों ने मुक्त किया। इसके बाद भी वीर सावरकर और उनके बंधु की कारागृह यातना समाप्त नहीं हुई। नारायण सावरकर को साबरमती कारागृह में रखा गया, जबकि वीर सावरकर को पुणे के यरवडा जेल में कालापानी से भी कठिन यातनादायी रूप में बंदी बनाकर रखा गया। इसके बाद वीर सावरकर को रत्नागिरी में स्थानबद्ध रखा गया।