अब तो महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की नेता भी नहीं सुनते?

महामारी काल में काम धंधा पूरी तरह से प्रभावित है। महाराष्ट्र में प्रतिबंध 15 जून तक बढ़ा दिया गया है।

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महाराष्ट्र में महामारी कानून लागू है, लेकिन नेताओं को भीड़भाड़ की खुली छूट मिली हुई है। पुणें में भारतीय जनता पार्टी के विधायक झूमकर नाचे तो कांग्रेस ने राज्यभर में मोदी सरकार की सातवीं वर्षगांठ में जमकर प्रदर्शन किया। इन सबके बाद मुख्यमंत्री भी सायंकाल में जनता से संवाद करने आए, लोगों को घर में रहने की सलाह दी, पर नेताओं पर चुप्पी साधे रहे।

राज्य में नेता पूरी मस्ती में हैं। सामान्य जनता का विवाह कार्यक्रम हो या अंतिम क्रिया सबके सब बीस अतिथियों में ही निपटाना अनिवार्य है, लेकिन नेतागिरी फुल फॉर्म में है। कहीं नेता बेटी के विवाह में खुलकर नाच रहे हैं तो कहीं राजनीति चमकाने के लिए प्रदर्शन किये जा रहे हैं। इन सब पर वह प्रशासन चुप है जो पेट पालनेवाले को घर बैठने के लिए कहता है।

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भाजपा विधायक का ताता थैय्या
न मास्क, न महामारी का डर और न ही कानून की चिंता… हल्दी में लिपटे नाच रहे थे भोसरी के विधायक महेश लांडगे। इन्हें विधायक बनाकर जनता ने विधान सभा भेजा है, लेकिन ये उन कानूनों से ऊपर हैं जिसका सामना इनको वोट देनेवाली जनता कर रही है। पुणे का पूरा क्षेत्र कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित जिले में रहा है। जिसके कारण यहां महामारी कानून कड़ाई से लागू किया गया है। लेकिन विधायक जी तो नेता हैं उनके आगे प्रशासन भी चुपचाप रखवाली करता खड़ा रहता है जबकि कानून तो नेताजी को विधायक बनानेवाली जनता पर लागू होता है।

कांग्रेस का भी कम नहीं दम
30 मई को केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की दूसरी वर्षगांठ थी। इस अवसर पर कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार की नाकामियों को दर्शाते हुए प्रदर्शन किया। राज्य में महाविकास आघाड़ी की सरकार है जिसमें कांग्रेस भी घटक दल है। इस बीच कोरोना संसर्ग से जूझ रहे राज्य में कड़े प्रतंबिध लागू हैं। लेकिन कांग्रेस ने फिर भी प्रदर्शन किया। प्रशासन से सवाल है कि प्रदर्शन स्थल तक कैसे लोगों का जमावड़ा पहुंचा, इसकी सुध उस पुलिस ने क्यों नहीं ली जो सर्वसामान्य जनता के घर से निकलने पर पूछताछ करती है।

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नेतागिरी पर मुख्यमंत्री जी भी चुप
राज्य में नेतागिरी पर मुख्यमंत्री भी चुप हैं। 30 मई, रविवार की रात उन्होंने जन संवाद में स्पष्ट किया कि राज्य में कोरोना की स्थिति शहर में भले ही कुछ नियंत्रित हो रही हो, लेकिन गांवों में इसका संसर्ग बढ़ रहा है। इसको लेकर राज्य में निर्बंध (लॉकडाउन) नहीं लगाया है लेकिन कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं। शब्दों के इस जाल से आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसकी दाल-रोटी बुरी तरह प्रभावित है, वो कैसे सुचारु रूप से चले इसकी चिंता में है, जिसके लिए प्रतिबंध की संजीवनी मुख्यमंत्री जी बांट गए। लेकिन उन नेताओं पर वे चुप हैं जो महामारी एक्ट लागू होने के बावजूद कार्यक्रम पर कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। अर्थात राज्य में रोटी बंद है पर राजनीति नहीं…

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