मनपा चुनाव तैयारी, राजनीतिक दलों को नहीं है कोरोना का डर

मुंबई महानगर पाल्कि की गणना एशिया की सबसे बड़ी मनपा में होती है। देश में इसका बजट कई राज्यों से अधिक होता है। इसे देखते हुए यहा पर सत्ता स्थापन करनेवाला दल एक राज्य की ही सत्ता चला रहा है, इससे कम अपने आपको नहीं आंकता।

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कोरोना संक्रमण से निश्चिंत राजनीतिक दल मुंबई महानगर पालिका चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं। कोई अपने नगरेसवकों के आंकड़े दोगुना करने के चक्कर में है तो कोई अपनी पुरानी शक्ति को बचाने के लिए तैयारी कर रहा है। इस चक्कर में इन पार्टियों को कोविड 19 संक्रमण की रत्ती भर भी चिंता नहीं है, जब जनता अस्पतालों में कोविड से पीड़ित होकर पड़ी है तब भी इनका झंडा-डंडा आंदोलन में दिखता रहा है।

कांग्रेस की ‘भाई’गिरी
राज्य की सत्ता में सहभागी कांग्रेस सबसे छोटा दल है लेकिन उसकी पलटी अन्य दोनों बड़े दोलों को सत्ता विहीन कर सकती है। इसलिए वह सत्ता से मिल रही संजीवनी को मुंबई मनपा चुनावों में अपनाने की जुगत में जुटी हुई है। लेकिन, एक हाथ में सत्ता और दूसरे हाथ में मुंबई मनपा के विपक्ष की कमान में संतुलन बनाना भारी पड़ रहा है।

भाई जगताप के मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद आंदोलन तेजी से जारी हैं। संजय निरूपम के कार्यकाल के बाद आई सुस्ती को भाई ने दूर करने का प्रयत्न किया है। इसके लिए कोरोना का रोना भी उन्हें प्रभावित नहीं करता है। जनता घरों में प्रतिबंधित है और कांग्रेस नेता सड़कों पर हैं, इस अभियान के अंतर्गत भाई जगताप ने केंद्र सरकार के टीकाकरण अभियान के विरोध में जमकर प्रदर्शन किया था। उधर प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले भी बढ़ चढ़कर आंदोलनों में हिस्सा ले रहे हैं। केंद्र सरकार के सात वर्ष पूरे होने पर तहसीलस्तर पर प्रदर्शन किया गया, इससे बेखबर होकर की कोरोना अभी भी कहर बरपा रहा है।

वैसे भाई जगताप के लिए मनपा की सत्ता पर सीधे हमला करना थोड़ा कठिन है क्योंकि, राज्य सरकार में वे सहभागी हैं परंतु, मुंबई मनपा में वे प्रमुख विपक्षी दल हैं। शिवसेना ने नालासफाई का सर्वेक्षण करके 76 प्रतिशत नाला सफाई होने का दावा किया था, इस पर कांग्रेस चुप्पी साधे बैठी रही। ‘टीके’ पर ‘टिप्पणी’ करनेवाले भाई को भी मुंबई के नाले में दबी गाद नहीं दिख रही है, ऐसे में चुप भी रहूं और जीत भी जाऊं कि कांग्रेस की नीति मुंबई मनपा में कितनी सफल होगी यह विचार का विषय है।

कांग्रेस-राष्ट्रवादी में खींचतान
एक समय कांग्रेस की मुंबई मनपा में तूती बोलती थी। उसके नेता सभागृह में बोले थे तो आवाज दहिसर से लेकर मूलुंड तक पहुंचती थी।

2012 में उसके 52 नगरसेवक थे, 2007 में 71 का संख्याबल था। लेकिन वर्तमान में 29 नगरसेवकों की संख्या के साथ कांग्रेस सीमित हो गई है। मनपा चुनावों में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मध्य गठबंधन रहा है लेकिन यह भी सच है कि दोनों ही दल एक दूसरे को नीचे खीचने की ही राजनीति करते रहे हैं। आगामी मनपा चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस किसके साथ होगी यह पता नहीं है लेकिन कांग्रेस भी अस्पष्ट है कि क्या वो महाविकास आघाड़ी के साथ रहेगी या जाएगी।

शिवसेना के मन में आघाड़ी का महाविकास
पिछले मनपा चुनाव में शिवसेना हारते-हारते जीती है। इस परिस्थिति में उसे महाविकास आघाड़ी एकमात्र सहारा लग रही है। कहते हैं न जब सब दिखे जाते तो मिल बांटकर खाते। परंतु, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अब तक 14 नगरसेवकों के आंकड़े को पार नहीं कर पाई है। वर्तमान में उसका संख्याबल मात्र 8 पर टिका है। उसे इसे डबल डिजिट में ले जाना है। इसके लिए वह शिवसेना के पीछे खड़ी है, शिवसेना नेता भी तिनके को सहारा मानकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। परिस्थिति तो यह है कि एकबारगी शिवसेना नेता अपने पार्टी के कार्यक्रमों में भले ही न जाएं परंतु, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में सौ प्रतिशत उपस्थिति दर्ज रहे हैं।

भाजपा के समक्ष चुनौती
पिछले मनपा चुनावों में भाजपा को मिली सफलता इस बार भी कायम रखना भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे आवश्यक है। सत्ताधारी शिवसेना और भाजपा के बीच मात्र दो नगरसेवकों का अंतर है। इसलिए किसी भी परिस्थिति में नगरसेवकों की संख्या कम न हो इसका बड़ा दबाव भाजपा पर है।

भाजपा के दबाव को राज्य की सत्ता में बैठी शिवसेना के नेतृत्ववाली महाविकास आघाड़ी भी पूरी तरह से समझ रही है। वह भी नेताओं का दलबदल और आरक्षण बदलने की चाल भी आजमा सकती है। शिवसेना सभी परिस्थिति में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को साथ रखकर भाजपा की चुनौती को बढ़ाने का काम कर रही है। 1996 से लगातार शिवसेना का भगवा मनपा पर लहराता रहा है। उसके पहले के चार साल छोड़ दें तो उस काल में भी शिवसेना के हाथ सत्ता थी। पिछले चुनाव परिणाम के बाद देवेंद्र फडणवीस ने राज्य में सत्ता की चाबी को हाथ में देखते हुए शिवसेना को समर्थन दे दिया, भाजपा की यह चूक अब उसे भारी पड़ रही है। सत्ता में बैठी शिवसेना ने अवसर देखकर स्वार्थ साध लिया और भाजपा नगरसेवकों को पश्चाताप की आग में धकेल दिया। विधान सभा चुनाव साथ लड़कर बड़ा पक्ष होने के बावजूद शिवसेना सत्ता में आ गई तो दूसरी ओर भाजपा के समर्थन से मनपा में भगवा कायम रखनेवाली शिवसेना ने अवसर देखकर भाजपा को तिलांजलि दे दी। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब भाजपा को मनपा में नेता विपक्ष का पद भी नहीं मिला।

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