किसान आंदोलन के नेताओं का यह है राजनीतिक एजेंडा!

देश में पिछले डेढ़ साल से कोरोना का संकट है, इसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है, अफगानिस्तान में तख्तापलट होने से भारत ही नहीं, देश-दुनिया की चिंता बढ़ी है। लेकिन इन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

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केंद्र के कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे कुछ किसान संगठन के नेता पिछले करीब 10 महीनों से इसके लिए आंदोलन कर रहे हैं। इस बीच कई प्रदेशों के विधानसभा चुनाव के साथ ही स्थानीय निकाय और ग्राम पंचायत चुनाव भी कराए गए। इन चुनावों के दौरान आंदोलनकारी किसानों के नेताओं ने खुलकर राजनीति की और उन्होंने पहले से तय राजनैतिक एजेंडे पर काम किया। इन्होंने खुलकर मतदाताओं से भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मतदान करने की अपील की और जितना हो सका, भाजपा को राजनैतिक तौर पर नुकसान पहुंचाने के लिए पसीना बहाया। इनके इस प्रयास का देश के दूसरे प्रदेशों में तो कोई असर शायद ही देखने को मिला, लेकिन पंजाब के निकाय चुनावों में भाजपा की करारी हार का श्रेय ये लूटते रहे। वैसे तो ये पश्चिम बंगाल में भी भाजपा को मनचाही सीटें नहीं मिलने और तृणमूल कांग्रेस पार्टी की जीत से काफी खुश दिखे और उसका भी श्रेय लेने का पूरा प्रयास किया, लेकिन सच तो यह है, वहां भाजपा ने 3 से 77 पर पहुंचकर कुछ भी नहीं खोया। राजनीति की समझ रखने वाले लोग जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान इन किसान संगठनों ने ढंग की एक सभा तक नहीं की और परिणाम आने पर ऐसे गदगद हो रहे थे, जैसे टीएमसी की जीत इन्हीं की बदौलत हुई हो।

फिलहाल एक बार फिर ये जाग गए हैं। इसका कारण यह है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ ही पंजाब में भी 2022 में चुनाव होने हैं। इस स्थिति में इनकी सक्रियता देखी जा रही है।

पंजाब में समस्याएं कम नहीं
पंजाब में किसानों की समस्याओं की कमी नहीं है। वहां के किसान कई बार सोशल मीडिया पर अपनी समस्याओं को लेकर सरकार को आईना दिखाते रहते हैं। कभी अपने अनाजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिक्री नहीं होने तो कभी अपने अनाजों को गोदामों में  रखने की जगह नहीं होने या समय पर खरीदी नहीं किए जाने के कारण बारिश में बर्बाद होने जैसी तस्वीरों के साथ ये अपनी समस्याओं को उजागर करते रहे हैं।

नहीं मिलने दिया केंद्र सरकार की योजना का लाभ
इसके साथ ही केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को पंजाब की कांग्रेस सरकार ने लागू नहीं कर इसके लाभ से लाखों किसानों को वंचित रखा। कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब सरकार ने किसानों की सूची केंद्र को देने में काफी समय लगाकर किसानों को काफी आर्थिक नुकसान पहुंचाया लेकिन इन सब मुद्दों पर किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत मौन रहते हैं। बार-बार सवाल पूछने पर भी वे उन्हें टाल देते हैं। वे हर बात में मोदी और यूपी की योगी सरकार के साथ ही उत्तराखंड की भाजपा सरकार को निशाना बनाते हैं। क्या इससे यह पता नहीं चलता कि टिकैत एक राजनैतिक एजेंडे पर काम कर रहे हैं और वे कांग्रेस को लाभ पहुंचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं?

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अन्नदाताओं को बदनाम करने का प्रयास
ये मुठ्ठी भर तथाकथित किसान देश के करोड़ों अन्नदाताओं को बदनाम करने की राजनीति कर रहे हैं और किसान का मुखौटा लगाकर केंद्र सरकार तथा न्यायालय को ज्यादा कड़े फैसले नहीं लेने पर मजबूर कर रहे हैं। पिछले 10 महीनों से ये आंदोलन कर रहे हैं और आगे 2024 तक इसी तरह बड़ी ढिठाई से आंदोलन करने की बात करते हैं। क्या वाकई असली किसानों के पास इतने दिनों तक आंदोलन करने और अपनी आर्थिक स्थिति बेकार करने के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाने के लिए समय है। यह सवाल काफी महत्वपूर्ण है।

स्पष्ट है राजनीतिक एजेंडा
इनके राजनैतिक एजेंडे का सच तो पिछले कुछ दिनों में भी बिलकुल स्पष्ट हो गया है। इन्होंने पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। इन प्रदेशों में इनके महापंचायत लगने शुरू हो गए हैं, जबकि पंजाब में इन्हें किसानों की कोई समस्या नहीं दिख रही। इसका कारण स्पष्ट है, उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। हरियाणा में अभी चुनाव होने में देर है, लेकिन पंजाब में विधानसभा चुनाव कराए जाने हैं। वे पंजाब में तो कुछ नहीं कर रहे हैं, लेकिन हरियाणा में अपनी गतिविधियां बढ़ाकर पंजाब के चुनाव में भाजपा के वोट बैंक को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं।

पब्लिक सब जानती है
देश में पिछले डेढ़ साल से कोरोना का संकट है, इसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है, अफगानिस्तान में तख्तापलट होने से भारत ही नहीं, देश-दुनिया की चिंता बढ़ी है। लेकिन इन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि इन्हें खालिस्तानियों के साथ ही अन्य देशद्रोहियों और राजनैतिक पार्टियों के लिए काम करना है। इन्हें देश में कांग्रेस की सरकार लानी है। लेकिन जनता इतनी बेवकूफ नहीं है। पब्लिक सब जानती है।

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