बालासाहेब के नक्शे कदम पर शरद पवार! जानिये, 1992 में क्या हुआ था

शरद पवार के एनसीपी प्रमुख के पद से इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया है। शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने भी कुछ ऐसी ही घोषणा की थी। उस समय लाखों शिवसैनिक मातोश्री पहुंचे थे। उसके बाद बालासाहेब ने सबकी भावनाओं का सम्मान करते हुए फैसला वापस ले लिया था

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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अध्यक्ष शरद पवार ने 2 मई को अचानक अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। लिहाजा महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आ गया। शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने भी कुछ ऐसी ही घोषणा की थी। उस समय लाखों शिवसैनिक मातोश्री पहुंचे थे। उसके बाद बालासाहेब ने सबकी भावनाओं का सम्मान करते हुए फैसला वापस ले लिया था। अब यही हाल शरद पवार के मामले में होता दिख रहा है।

मुंबई महानगरपालिका में हार के बाद बालासाहेब ने कर दी शिवसेना प्रमुख के पद से इस्तीफे की घोषणा
1978 के मुंबई महानगरपालिका चुनाव में शिवसेना ने पूरी ताकत लगाकर 117 उम्मीदवार मैदान में उतारे। लेकिन इस चुनाव में केवल 21 उम्मीदवार ही चुने जा सके। इस चुनाव में अपनी हार से बालासाहेब बहुत नाराज हुए। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज पार्क में एक बैठक बुलाई और अपने इस्तीफे की घोषणा की। बालासाहेब की अचानक की गई घोषणा ने शिवसैनिकों को हिला कर रख दिया।

मातोश्री के बाहर जमा हो गए शिवसैनिक
बालासाहेब ठाकरे के इस्तीफे के बाद शिवसैनिक मातोश्री के बाहर जमा हो गए। उन्होंने उनके समर्थन में जोरदार नारेबाजी की। अंत में बालासाहेब ने अपना फैसला वापस ले लिया। उसके बाद बालासाहेब को एक बार फिर ऐसी ही दुविधा का सामना करना पड़ा।

लगा था भाई-भतीजावाद का आरोप
बालासाहेब पर खुद भाई-भतीजावाद के आरोप लगे थे। वह समय था 1992। उस समय शिवसैनिक माधव देशपांडे ने बालासाहेब ठाकरे पर परिवारवाद का आरोप लगया। इन आरोपों से शिवसेना प्रमुख खफा हो गए और उन्होंने समाना  में बयान देते हुए कहा कि बालासाहेब ठाकरे ने अपने परिवार सहित शिवसेना छोड़ने की घोषणा कर दी। उसके बाद फिर मातोश्री के बाहर शिवसैनिकों की भीड़ जमा हो गई। शिवसैनिक मूसलाधार बारिश में भी मातोश्री के बाहर जमे रहे। शिवसैनिकों के इस प्रेम को देखकर एक बार फिर बालासाहेब ने अपनी घोषणा वापस ले ली।

बालासाहेब और पवार में थी दोस्ती
शरद पवार और बालासाहेब ठाकरे की दोस्ती को महाराष्ट्र की जनता जानती है। भले ही दोनों नेता अलग-अलग पार्टियों के हों, लेकिन राजनीतिक मामलों की बात आए तो एक-दूसरे की आलोचना करेंगे और अगर दोस्ती की बात होगी तो दोनों साथ में खाएंगे और साथ निभाएंगे। ऐसी थी शरद पवार और बालासाहेब की दोस्ती। इसीलिए पवार कई सभाओं और कार्यक्रमों में कह चुके हैं कि बालासाहेब जैसा कोई दोस्त नहीं है। बालासाहेब की शिवसेना पहले ही टूट चुकी है और अब पिछले कुछ दिनों से पवार की एनसीपी को भी उसी स्थिति में आने की बात कही जा रही है।

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