Seminar and Exhibition: पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद, भारत के विकास का मूल मंत्र! जानिये कैसे

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Seminar and Exhibition: पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद पर अभिभाषणों के 60 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आज से नई दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेशन सेंटर में दो दिवसीय सेमिनार एवं प्रदर्शनी का प्रारम्भ हुआ।

आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने पं दीनदयाल उपाध्याय की प्रतिमा को माल्यार्पण कर श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन एवं पी.पी.आर.सी. द्वारा आयोजित प्रदर्शनी का लोकार्पण किया और तत्पश्चात अभी प्रारंभिक सम्बोधन से सेमीनार चर्चा को प्रारम्भ किया।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी को चरितार्थ करते हुए एक प्रदर्शनी लगाई गई थी, जिसका संयोजन राजीव बब्बर ने किया। पहली बार डिजिटल माध्यम से लगाई गई प्रदर्शनी को आज हजारों लोगों ने आकर देखा। प्रदर्शनी में मुख्य रुप से ग्रामीण उत्थान, भारत की विदेश नीति, दुनिया को भारत का संदेश से लेकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवनी पर लिखी गई किताबों को भी रखा गया है।

कार्यक्रम के दौरान विभिन्न बिंदुओं पर आधारित अलग अलग सत्रों को उज्ज्सवी वक्ताओं ने संबोधित किया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र को डॉ. महेश चंद्र शर्मा और शिव प्रकाश ने, तीसरे सत्र को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने, कार्यक्रम के अगले सत्र को डॉ. एम. एस. चैत्रा और आज के अंतिम सत्र को केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने संबोधित कर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन और उनके उद्देश्य को विस्तृत रूप से सेमीनार के प्रतिभागियों के समक्ष रखा। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने आज के अंतिम सत्र की अध्यक्षता की।

आर.एस.एस. के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने सेमीनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि देश भर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद पर भाषणों के 60 साल पूरे होने पर देश के अलग अलग स्थानों पर आयोजित होने वाले प्रमुख कार्यक्रमों की श्रृंखला में आज हम इस एन.डी.एम.सी. कन्वेंशन सेंटर में उपस्थित हैं।

उन्होनें कहा पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद सिद्धांतों का यह 60वां वर्ष तो है ही साथ ही यह देश की स्वतंत्रता का यह 75वां अमृत काल वर्ष भी है।

अरुण कुमार ने कहा कि जनसंघ एवं भाजपा की अपनी भी एक पृष्ठभूमि है और 21 अक्टूबर को हमारा 75 वर्ष पूर्ण हो जाएगा। हम सभी ने अपने लक्ष्य को जनसंघ के स्थापना के वक्त तय किया जिसके अंतर्गत संगठन बनाना नहीं बल्कि समाज परिवर्तन करना था।

उन्होंने कहा कि देश की स्वधिनता के बाद हमारी सबसे बड़ी चुनौती समाज से चल रहे वैचारिक भ्रम थे। स्वाधिनता का मतलब सिर्फ अंग्रेजो से आजादी और अपने लोगों का राज्य लाना सिर्फ इतना ही नहीं था। राष्ट्र की सुस्पष्ट कल्पना भी धीरे धीरे समाप्त होनी शुरु हो गई थी।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र प्रेम की कमी हो गई और वह राष्ट्र जो 1905 में बंगाल विभाजन को स्वीकार नहीं कर पाया उसने राष्ट्र विभाजन को स्वीकार कर लिया। उस वक्त दो बातें सबके दिमाग में थी क्योंकि पूरे देश में एक वैचारिक मतभेद था – मजदूर क्षेत्र हो, विद्यार्थी क्षेत्र हो या फिर राजनीतिक क्षेत्र हो। किसी को समाज के विकास के लिए सोशलिज्म, कोई कम्युनिज्म में तो कोई वेलफेयर स्टेट का मॉडल में विश्वास रखता है इसलिए उस वक्त दिमाग में आया कि हमारा कोई अपना विचार है क्या? अंग्रेजो के शासन और आक्रमण के बाद आत्मविस्मृति की कमी हो गई थी क्योंकि हम भूल गए कि हम कौन है। हिंदुओं का संगठन संप्रदायिक नहीं है, आखिर एक हिंदू राष्ट्र में यह बात कहां से आ गई। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जब आत्मविस्मृति आती है तो आत्महीनता आती है।

अरूण कुमार ने कहा की पं. दीनदयाल जी ने जब जनसंघ की शुरुवात की तो उस वक्त उनके सामने सवाल था कि हमारा कोई चिंतन है क्या और दूसरा राजनीतिक तंत्र है उसको हमने स्वीकार किया है क्या उससे हम आगे बढ़ेंगे या फिर उसके लिए एक दल की जरूरत है। जब 1952 में हम चुनाव लड़े तो उस वक्त तीन सीटें आई थी और जनसंघ एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर आकर खड़ा हो गया क्योंकि वह एक राष्ट्रीय दल बन गया। संगठन का राष्ट्रीय और समाजव्यापी विस्तार और कार्यकर्ता निर्माण की प्रक्रिया की बढ़ोतरी के साथ एक विचार रखा जिसको एकात्म मानववाद कहते हैं।

अरुण कुमार ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कहा कि हम कोई नया विचार नहीं देंगे और हमारे विचार सिर्फ़ एक अलग भाष्य है जो हमारे देश में परंपरा चलती आई है लेकिन भारतीय चिंतन और विचार था उसकी गहराई को उन्होंने मापा और युग अनुकुल प्रस्तुती की। सब को एक देखना ही हमारे संकल्पों का आधार है। जब किसी भी राष्ट्र का निर्माण होता है तो किसी राजा के तलवार के नोख के ऊपर या किसी के महत्वकांक्षा पर नहीं होता, इसलिए अगर भारत का उत्थान करना है तो भारत का विशिष्ट है धर्म, भारत का अधिष्ठान है धर्म यानी जिसके आधार पर धारना होती है। धीरे-धीरे इस राष्ट्र से जो विचार निकला वह भारत के बाहर भी फैला हमने किसी के ना तो विचार को बदला ना ही हमने किसी के विचार का अनुसरण किया।

आज भी चीन में, वियतनाम में, थाईलैंड में, जापान में भारत जैसे परिवार या गांव आपको मिलेंगे क्योंकि हमने उनके सामने जीवन का वशिष्ठ रखा। अर्थात् भारत के वैशिष्ठ को समझकर ही हम भारत का विकास कर सकते हैं।

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उन्होंने कहा कि भगवान ने हर राष्ट्र को एक अलग उत्तर शीट दी है इसलिए आप किसी को कॉपी करके एग्जाम पास नहीं कर सकते हैं। इसलिए भारत के उत्थान के लिए पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म मानववाद का विचार दिया और यही भारत के विकास का मूलमंत्र है।

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