अफगानिस्तान पर तालिबान राज स्थापित हो गया है। विश्व के सभी देश इस सच्चाई को मान चुके हैं। इसके बाद दुनिया के सभी देश इस मुद्दे पर नीति निर्धारित करने में जुट गए हैं। इस मुद्दे पर मंथन करने वाले कई देश तालिबान की सरकार को मान्यता या समर्थन देने की बात कह चुके हैं। ऐसे देशों में पाकिस्तान, चीन के साथ ही रुस आदि शामिल हैं। अब बताया जा रहा है कि इस रणनीति को लेकर यूरोपीय संघ अगले कुछ दिनों में तालिबान से बात कर सकता है।
कई देश रणनीति बनाने में जुटे
दूसरी ओर अफगानिस्तान के मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और ब्रिटेन की पीएम बोरिस जानसन अगले हफ्ते सात अन्य नेताओं के साथ वर्चुअल बैठक कर सकते हैं। इनके साथ भारत भी इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करने में जुटा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से बात की है। वहीं भारत और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार में भी इस मुद्दे पर बात हुई है।
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यूरोपीय संघ नहीं करेगा समर्थन
इस बीच यूरोपीय संघ ने स्पष्ट कर दिया है कि उसका तालिबान सरकार को मान्यता देने का कोई इरादा नहीं है। उनका तालिबान से बात करने के उद्देश्य केवल अफगानिस्तान में फंसे यूरोपीय नागरिकों और उनके साथ काम करने वाले अफगानियों को वहां से सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करना है। ईयू के विदेश मंत्रियों के साथ हुई एक बैठक के बाद विदेश नीति के प्रमुख जोसेफ बोरेल ने यह जानकारी देते हुए कहा कि वे अफगान अथॉरिटी के संपर्क में हैं। उन्होंने कहा कि यूरोपिय संघ वहां फंसे शरणार्थियों की पूरी मदद करना चाहता है।
इन देशों ने किया समर्थन
चीन और रुस ने तालिबानी नेताओं से बातचीत की है। इनसे पहले पाकिस्तान उनसे बात कर तालिबान राज को अपना समर्थन दे चुका है। पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने अपने बयान में कहा है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर वर्षों पुरानी गुलामी की जंजीरों को तोड़ डाला है। पाकिस्तान के साथ ही चीन और रुस ने भी उसे समर्थन देने की बात कही है। इनके साथ ही कतर भी इस बार तालिबान सरकार को अपना समर्थन दे सकता है। बता दें कि पहली बार इस आतंकी संगठन ने कतर में अपना राजनीतिक कार्यालय खोला था।