दिल्ली डायलॉगः भारत की बड़ी जीत,पाक और चीन चित! जानें, कैसे?

दिल्ली डायलॉग में अफगानिस्तान के 8 पड़ोसी देशों का शामिल होना यह साबति करता है कि वे वहां तालिबान सरकार के आने के बाद अपनी सुरक्षा, कट्टरता और मादक पदार्थों की तस्करी को लेकर चिंतित हैं।

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भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता में हुए क्षेत्रीय सुरक्षा डायलॉग के बाद पाकिस्तान और चीन अलग-थलग पड़ गए हैं। आतंकवाद, कट्टरता और सीमा सुरक्षा को लेकर उनकी चाल पूरे विश्व के सामने बेनकाब हो गई है। क्षेत्रीय सुरक्षा डायलॉग में नौ में से सात पड़ोसी देशों का शामिल होना भारत की बड़ी जीत है। भारत ने अपने कथनी और करनी से यह साबित कर दिया है कि अफगानिस्तान के प्रति उसका दृष्टिकोण लोकतांत्रिक देशों के अनुकूल है। चीन और पाकिस्तान के इस बैठक में शामिल नहीं होने से उनका असली चेहरा पूरी दुनिया के सामने उजागर हो गया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली में आयोजित क्षेत्रीय सुरक्षा डायलॉग में पाकिस्तान का शामिल न होना तालिबान सरकार के उसके रिश्तों को पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया है। यह साबित करता है कि आतंकवाद के प्रति उसका रवैया बदला नहीं है।

चीन-पाक की खुली पोल
पहले से ही एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में शामिल किए जाने से पूरी दुनिया में पाकिस्तान की छवि आतंकवाद समर्थित देश के रुप में बनी हुई है। इसके साथ ही चीन अपने मतलब के लिए पाकिस्तान की तरह अफगानिस्तान को भी इस्तेमाल करना चाहता है। इसलिए वह अफगानिस्तान में किसी और देश की दखल नहीं चाहता है। भारत अफगानिस्तान को लेकर अपने पहले के स्टैंड पर कायम है और वह जल्दबाजी में कोई भी कदम नहीं उठाना चाहता। वह अफगानिस्तान को लेकर अपनी ऐसी कूटनीति तय करना चाहता है, जो सर्वमान्य हो।

इन बातों को लेकर चिंता
दिल्ली डायलॉग में अफगानिस्तान के 8 पड़ोसी देशों का शामिल होना यह साबति करता है कि वे वहां तालिबान सरकार के आने के बाद अपनी सुरक्षा, कट्टरता और मादक पदार्थों की तस्करी को लेकर चिंतित हैं। इसके साथ ही उसे आतंकवाद का केंद्र बनने को लेकर भी इनमें चिंता है। यही कारण है कि इस बैठक में रुस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्केमेनिस्तान सहज भाव से शामिल हुए। इन देशों ने भारत से कट्टरता रोकने में मदद का अनुरोध भी किया। भारत और इन सभी देशों की चिंता एक समान है।

रुस अन्य पड़ोसी देशों की तरह चिंतित
तालिबान सरकार बनने के बाद ऐसा लग रहा था कि रूस अपनी नीति में बदलाव कर वह चीन और पाकिस्तान की तरह उसका समर्थन कर सकता है। लेकिन वक्त के साथ यह स्पष्ट होता चला गया कि रूस तालिबान सरकार के आने से अन्य पड़ोसी देशों की तरह ही अपनी सुरक्षा और कट्टरता बढ़ने को लेकर चिंतित है। इसके साथ ही वह अपने देश में आतंकवाद बढ़ने को लेकर भी भारत तथा अन्य पड़ोसी देशों की तरह चिंतित है। इसलिए वह भारत और अन्य देशों के साथ मिलकर अपने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है।

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पीएम ने की थी बात
बता दें कि इस बात को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच टेलीफोन पर भी बातचीत हुई थी। रुस की चिंता इस बात से भी समझी जा सकती है कि उसके सुरक्षा सचिव की कुछ हफ्तों में यह दूसरी भारत यात्रा है। उन्होंने यह भी कहा है कि आठों देश को अफगानिस्तान को लेकर एक संयुक्त बयान जारी कर पाकिस्तान और चीन को कड़ा संदेश देना चाहिए।

इन मुद्दों पर बनी सहमति
फिलहाल दिल्ली डायलॉग में जिन बातो पर सहमति बनी है, उनमें अफगानिस्तान में बाहरी देशों का हस्तक्षेप बंद होने, उसे आतंकवाद का केंद्र न बनने देने, तालिबान सरकार को मान्यता देने से पहले उसकी कार्य प्रणाली को परखने और अफगानिस्तान को मानवीय मदद उपलब्ध कराने जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हैं।

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