Pahalgam Terror Attack: पहलगाम आतंकी हमले पर RSS प्रमुख का बड़ा बयान, “यह लड़ाई ‘धर्म’ और ‘अधर्म’…”

मुंबई में एक कार्यक्रम में बोलते हुए भागवत ने हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद यह टिप्पणी की, जिसमें 26 निर्दोष लोग मारे गए थे।

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Pahalgam Terror Attack: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने 24 अप्रैल (गुरुवार) को कहा कि मौजूदा लड़ाई सिर्फ संप्रदायों और धर्मों के बीच संघर्ष नहीं बल्कि धर्म और अधर्म के बीच है। पहलगाम आतंकी हमले (Pahalgam terror attack) के बाद मुंबई (Mumbai) में एक कार्यक्रम में बोलते हुए भागवत ने यह टिप्पणी की। उन्होंने यह भी कहा कि जो कट्टरपंथी हिंदू धर्म पूछकर लोगों की हत्या करते हैं, वे ऐसा कभी नहीं करेंगे।

अपने संबोधन में आरएसएस प्रमुख ने कहा, “अभी जो लड़ाई चल रही है, वह संप्रदायों और धर्मों के बीच नहीं है। इसका आधार संप्रदाय और धर्म है, बल्कि यह लड़ाई ‘धर्म’ और ‘अधर्म’ के बीच है। हमारे सैनिकों या हमारे लोगों ने कभी किसी को उसका धर्म पूछकर नहीं मारा। जो कट्टरपंथी हिंदू धर्म पूछकर लोगों की हत्या करते हैं, वे ऐसा कभी नहीं करेंगे। इसलिए देश मजबूत होना चाहिए।”

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राक्षसों का नाश
उन्होंने आगे कहा, “सब लोग दुखी हैं, हमारे दिलों में गुस्सा है, जैसा कि होना चाहिए, क्योंकि राक्षसों का नाश करने के लिए अपार शक्ति की आवश्यकता होती है। लेकिन कुछ लोग यह समझने को तैयार नहीं हैं, और उनमें अब किसी भी तरह का बदलाव नहीं हो सकता। रावण भगवान शिव का भक्त था, वेदों का ज्ञाता था, एक अच्छा इंसान बनने के लिए जो कुछ भी चाहिए वह सब उसके पास था, लेकिन उसने जो मन और बुद्धि अपना ली थी, वह बदलने को तैयार नहीं थी। रावण तब तक नहीं बदल सकता था जब तक वह मरकर पुनर्जन्म न ले ले। इसीलिए राम ने रावण को बदलने के लिए उसका वध किया।”

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रावण का वध…
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि बुरे लोगों का सफाया करने की जरूरत है, जैसे भगवान राम ने रावण का वध किया था। भागवत ने कहा, “हम ऐसे लोग हैं जो हर किसी में अच्छाई देखते हैं और सबको स्वीकार करते हैं। हमारे देश के पास सेना है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब हमें लगा कि हमें इसकी जरूरत नहीं है। हम यह सोचकर लापरवाह हो गए कि युद्ध नहीं होगा और 1962 में प्रकृति ने हमें सबक सिखाया। तब से हम अपनी रक्षा को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। बुराई को खत्म करना होगा। गुस्सा है और उम्मीद भी है। मुझे विश्वास है कि उम्मीद पूरी होगी। लेकिन ऐसा बदलाव सिर्फ हथियारों या गुस्से से नहीं आता। इसके पीछे असली ताकत निकटता है। यह आत्मीयता ही है जो समाज को एकजुट रखती है। कलियुग में एकजुट रहना ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।”

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बुराई को खत्म किया जाना चाहिए…
संघ प्रमुख ने समाज में एकता और निकटता के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि बुराई को खत्म किया जाना चाहिए, लेकिन असली ताकत एकजुटता में ही निहित है। भागवत ने आगे कहा, “हाल की घटना के बाद पूरे देश में जो आक्रोश की लहर फैली, उसमें जाति, धर्म, पंथ, संप्रदाय, क्षेत्र या पार्टी का भेद नहीं था। हम देश की गरिमा के लिए एक साथ खड़े थे और यह हमारा स्वभाव बन जाना चाहिए। जब ​​हम इस तरह एकजुट होंगे, तो कोई भी हमारी तरफ तिरछी नजर से देखने की हिम्मत नहीं करेगा। और अगर वे ऐसा करेंगे, तो उनकी आंखें बंद कर दी जाएंगी। लेकिन उस बिंदु तक पहुंचने के लिए हमें आपस में गहरा प्रेम और निकटता विकसित करनी होगी। ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और हम उनका कड़ा जवाब देते हैं- इस बार भी हम यही उम्मीद करते हैं। लेकिन ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए समाज को एकजुट होना चाहिए। संविधान हमसे इसी भावना की अपेक्षा करता है- भावनात्मक एकीकरण, निकटता की भावना।”

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75 साल बाद भी वह उम्मीद अधूरी…
संघ प्रमुख ने कहा कि हाल की घटना के बाद देशभर में जो आक्रोश दिखा, उससे विभिन्न समूहों में एकता दिखी और यह एकता देश की गरिमा के लिए जरूरी है। उन्होंने आगे कहा, “एक बार कहा गया था कि हमारे धर्म अलग-अलग हैं, हम साथ नहीं रह सकते। और देश बंट गया। हमने इसे स्वीकार कर लिया, शायद इस उम्मीद के साथ कि चीजें सुधर जाएंगी। लेकिन 75 साल बाद भी वह उम्मीद अधूरी है। अभी हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने अपने भाषण में दो राष्ट्र सिद्धांत को दोहराया। हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए। पूरा विश्व एक परिवार है। कोई भी धर्म या संप्रदाय हो, अंततः सभी एक ही सत्य की ओर बढ़ते हैं। घृणा हमारा स्वभाव नहीं है। दुश्मनी हमारा स्वभाव नहीं है। लेकिन लाचारी भी हमारा स्वभाव नहीं होनी चाहिए। शक्तिशाली व्यक्ति को अहिंसा का विकल्प चुनना चाहिए। कमजोर के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। हमारी ताकत दिखनी चाहिए, तभी दुनिया समझेगी कि ये लोग ताकतवर हैं और इन्हें भड़काया नहीं जाना चाहिए। तभी दुनिया की बुरी ताकतें समझ में आने लगेंगी।”

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