दीदी की जीत से क्यों उत्साहित हैं देश के विपक्षी दलों के नेता? जानने के लिए पढ़ें ये खबर

बंगाल में दीदी की जीत ने देश की राजनीति में एक अलग तरह का उत्साह पैदा कर दिया है। भाजपा और एनडीए की समर्थक चंद पार्टियों को छोड़ दें तो देश की तमाम पार्टियां ममता की जीत से उत्साहित हैं। सच तो यह है कि दीदी की जीत और भाजपा की हार में वे अपना राजनैतिक हित तलाशने लगे हैं।

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पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी को बड़ी जीत हासिल हुई है। उनकी पार्टी को कुल 213 सीटों पर जीत प्राप्त हुई है, जबकि भारतीय जनता पार्टी मात्र 77 सीटों पर सिमटकर रह गई है। इस बीच उन्हें 3 मई को विधायक दल का नेता चुन लिया गया है और वे 5 मई को तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगी।

बंगाल में दीदी की जीत ने देश की राजनीति में एक अलग तरह का उत्साह पैदा कर दिया है। भाजपा और एनडीए की समर्थक चंद पार्टियों को छोड़ दें तो देश की तमाम पार्टियां ममता की जीत से उत्साहित हैं। सच तो यह है कि दीदी की जीत और भाजपा की हार में वे अपना राजनैतिक हित तलाशने लगे हैं। कई पार्टियों ने तो इसे लेकर अपनी खुशी खुलकर प्रदर्शित की है। उनमें शिवसेना सबसे आगे है।

शिवसेना ने खुलकर जताई खुशी
ममता बनर्जी की जीत से देश भर की राजनैतिक पार्टियों में सबसे ज्यादा उत्साहित शिवसेना ही दिख रही है। जैसे ही उनकी पार्टी की जीतने की खबर आई, शिवसेना के कार्याध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उन्हे बधाई देने में जरा भी देर नहीं की। उन्होंने दीदी को शेरनी की संज्ञा देते हुए उनकी प्रशंसा के पुल बांधते हुए कहा कि अकेले ही चुनाव में पार्टी को धमाकेदार जीत दिलाने के लिए ममता बनर्जी को बधाई। ठाकरे ने ट्वीट करते हुए कहा कि ममता ने अकेले ही बंगाल में आत्मसम्मान की इस लड़ाई का नेतृत्व किया। इस जीत का श्रेय बंगाल की शेरनी को जाता है। उनके साथ ही पार्टी के सांसद संजय राऊत भी काफी उत्साहित दिखे और उन्होंने कहा कि दीदी बंगाल की बाघिन हैं।

केजरीवाल भी नहीं रहे पीछे
केजरीवाल ने ममता बनर्जी को बधाई देते हुए कहा कि ये जमीन हिला देनेवाली जीत है। इसके लिए बधाई, क्या मुकाबला किया! पश्चिम बंगाल के लोगों को बधाई!

इन पार्टियों ने भी दी बधाई
इनके साथ ही अन्य कई पार्टियों में भी उनकी जीत को लेकर काफी उत्साह देखा गया। उनमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी तथा आरजेडी आदि पार्टियां शामिल हैं।

लाख टके का सवाल
अब सवाल यह उठता है कि क्या ममता बनर्जी केंद्र मे एनडीए के खिलाफ बबनेवाले किसी गठबंधन का चेहरा बन सकती हैं? दरअस्ल ममता बनर्जी की इस जीत के बाद ऐसा लगने लगा है कि राष्ट्रीय स्तर पर अन्य दल के नेता उन्हें अपने नेता के रुप में स्वीकार कर सकते हैं। उनमें उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल, महबूबा मुफ्ती, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव जैसे नेता शामिल हैं।

दीदी का बढ़ा कद
हालांकि ये सभी अपने-अपने सूबे के क्षत्रप हैं, लेकिन निश्चित रुप से इस जीत ने ममता बनर्जी को इनसे बड़े क्षत्रप के रुप में स्थापित कर दिया है और उनका कद काफी बढ़ गया है। भाजपा द्वारा इतने धुआंधार चुनाव प्रचार करने के बावजूद ममता की इतनी बड़ी जीत को विपक्षी दलों के नेता दीदी का करिश्मा मान रहे हैं।

ममता है तो ये मुमकिन है
इस वजह से दूसरे क्षत्रपों के लिए ममता बनर्जी को नेता मानना संभव हो सकता है। इसका एक कारण यह भी है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को मात देने वाली कोई दूसरी पार्टी वर्तमान में नहीं दिख रही है। वैसे भी, देश में भाजपा के बाद कांग्रेस ही राष्ट्रीय स्तर की एक पार्टी दिख रही थी, लेकिन फिलहाल उसकी हालत पस्त है। आपसी गुटबाजी और दूरदर्शी तथा दमदार नेता के अभाव में कांग्रेस दम तोड़ती दिख रही है। ऐसे में देश की सभी विपक्षी पार्टियां ममता बनर्जी जैसे जुझारु और दमखम वाले नेता की तलाश कर रही थीं और उनकी इस जीत के बाद ऐसा लगता है कि उनकी तलाश पूरी हो गई है।

नीतीश नहीं रहे विश्वसनीय नेता
कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी राष्ट्रीय स्तर के नेता माने जाते थे, लेकिन अब वे भाजपा के साथ सरकार चला रहे हैं। इस स्थिति में विपक्ष के लिए उनकी विश्वसनीयता खत्म हो गई है।

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पावर कम पवार
वैसे देखा जाए तो विपक्ष में एक और मजबूत चेहरा नजर आता है, वह है राकांपा प्रमुख शरद पवार का चेहरा, लेकिन बढ़ती उम्र और बिगड़ता स्वास्थ्य उनके आड़े आ रहा है। बाकी अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव या दक्षिण के एमके स्टालिन जैसे नेता अपने क्षेत्र तक ही सीमित हैं।

दमखम के साथ अनुभव भी
ममता बनर्जी दो बार केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं और एक सांसद के तौर पर काम करने का उनके पास अच्छा अनुभव है। इसके साथ ही दक्षिण के नेताओं की अपेक्षा उनकी हिंदी का बेहतर होना भी उनके लिए प्लस पॉइंट है।

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अभी दिल्ली दूर
वैसे तो ममता बनर्जी के लिए अभी दिल्ली दूर है। लेकिन अगला आम चुनाव आने में अभी समय है। अगला आम चुनाव 2024 में होना है और तब तक राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का ध्रुवीकरण संभव है। वैसे भी ममता बनर्जी अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को पश्चिम बंगाल की कमान सौंपना चाहती हैं। इस हालत मे वे केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो सकती हैं।

कांंग्रेस में दम नहीं, लेकिन अहम वही
वैसे देखा जाए तो विपक्ष की एकजुटता में सबसे बड़ी अड़चन कांग्रेस ही है। कांग्रेस का अस्तित्व अभी भी पूरे देश में है और वह आज भी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है। इसलिए वह ममता बनर्जी को आसानी से नेता मानने को तैयार नहीं होगी। इस हालत में दीदी को विपक्ष की सर्वमान्य नेता बनने में अड़चन आ सकती है। लेकिन अभी काफी वक्त है और इतने समय में राजनैतिक परिस्थियों में बदलाव संभव है।

ममता ने 2024 के चुनाव के लिए कही ये बात
ममता ने 3 मई को अपनी आगे की राजनीति की ओर इशारा भी कर दिया है। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी भूमिका के बारे में कहा कि मैं सड़क पर लड़ाई लड़ने वाली योद्धा हूं। मैं लोगो का हौसला बुलंद कर सकती हूं ताकि हम भाजपा के खिलाफ मजबूती से लड़ें। अगर हम सामूहिक फैसला करें तो 2024 की लड़ाई हम मिलकर लड़ सकते हैं।

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