बिहार राज्य ने हाल ही में जाति आधारित जनगणना शुरू की है। इसी तर्ज पर राकांपा नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल ने महाराष्ट्र में भी अन्य पिछड़ा वर्ग की अलग से जनगणना कराने की मांग की है। इस संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक पत्र लिखा है।
बिहार की तर्ज पर हो जाति आधारित जनगणना
राष्ट्रवादी पार्टी के नेता छगन भुजबल ने अपने पत्र में कहा है कि बिहार में हाल ही में अलग से जाति आधारित जनगणना शुरू की गई है। तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और कई अन्य राज्यों ने भी ओबीसी जनगणना की है और इसका उपयोग राज्य के विकास के लिए किया है। जाति आधारित जनगणना की हमारी मांग पिछले कई वर्षों से महाराष्ट्र में भी लंबित है। जनगणना का मामला केंद्र सरकार से संबंधित है। हालांकि, केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग की अलग से जनगणना कराने में असमर्थता जताई है। इसलिए राज्य सरकार को बिहार सरकार की तरह ओबीसी की अलग से जनगणना करानी चाहिए।
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ओबीसी की बाधाओं को जानना जरूरी
राकांपा नेता छगन भुजबल के अनुसार देश में अनुसूचित जाति और जनजाति की जाति आधारित जनगणना पिछले डेढ़ सौ साल से चल रही है। उस सूचना के आधार पर इस वर्ग के लिए विकास योजनाएं, कल्याणकारी कार्यक्रम तथा वित्तीय प्रावधान किए जाते हैं। देश में 1980 में मंडल आयोग अन्य पिछड़ा वर्ग, मुक्त जाति, घुमंतू जनजाति और बीमापरा के लिए की गई सिफारिशों के अनुसार अस्तित्व में आया। हर बार जनगणना नहीं होती। वर्ष 1946 में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की पुस्तक ‘हू वास शूद्र बिफोर?’ ओबीसी पर आधारित इस किताब में ओबीसी जनगणना की मांग की गई है। उन्होंने लिखा कि ओबीसी की बाधाओं को जानना जरूरी है। 1955 में प्रथम राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (कालेलकर आयोग) ने एक अलग ओबीसी जनगणना की मांग की। 1980 में, दूसरे राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल आयोग) ने फिर से एक अलग ओबीसी जनगणना की सिफारिश की थी।