किसान आंदोलन : अगली बैठक में क्या बदलेगी संक्रांति?

किसानों की समस्याओं का निराकरण करने और आंदोलन को खत्म करने के लिए लगातार प्रयत्न हो रहे हैं। लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई है। सरकार संशोधित कृषि कानून में सभी बदलाव करने को तैयार है। इस बीच किसान अपने पक्ष को लेकर अड़े हुए हैं।

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किसान आंदोलन का 44वां दिन चल रहा है। इस बीच केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच आठवें दौर की बातचीत हुई जिसमें सरकार ने कानून रद्द करने से स्पष्ट रूप से इन्कार कर दिया तो वहीं किसान संगठन इससे कम पर मानने को तैयार नहीं थे। इसका परिणाम ये रहा कि बैठक बेनतीजा रही। अब अगली बैठक 15 जनवरी को होगी। मकर संक्रांति के बाद क्या इस गतिरोध की संक्रांति भी बदलेगी अब इसको लेकर सभी का ध्यान केंद्रित है।

किसान आंदोलन को लेकर देश में एक स्थिति नहीं है। दिल्ली की सीमा पर किसान डंटे हुए हैं। सौर ऊर्जा के पैनल लगाए, महंगे टेंट, चौबीस घंटे चलनेवाले लंगर, मुफ्त इलाज की सुविधा और चारो तरफ मेले जैसा माहौल… अब तो कुछ किसानों ने ईंट गारे से पक्के निर्माण भी जोड़ लिये हैं। ट्रैक्टर रैलियां हो रही हैं। इन किसानों के 40 संगठन केंद्रीय कृषि मंत्री से बातचीत कर रहे हैं।

इसके बाहर एक दूसरा दृश्य भी है। जिसमें कई किसान संगठनों ने सरकार से मिलकर संशोधित कृषि कानूनों का समर्थन किया और देश के कई हिस्सों में सरकार के समर्थन में रैलियां निकाली हैं।

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आठवें दौर में क्या बात हुई?

इस दौर में किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग पर डंटे हुए थे। तो दूसरी ओर सरकार ने इन कानूनों को वापस लेने से मना कर दिया। जिससे किसान संगठन आक्रोषित थे। किसानों ने लंगर और चाय पान भी नहीं किया।

किसानों का तर्क है कि नए कृषि कानून से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली खत्म हो जाएगी। जिससे किसानों का रक्षा कवच छिन जाएगा। लेकिन सरकार इस मुद्दे पर लिखकर देने को तैयार है कि ये खत्म नहीं होगा। सरकार का पक्ष है कि नए कानून से बिचैलियों की भूमिका खत्म होगी और अपनी उपज को किसान देश के किसी भी हिस्से में जाकर बेंच सकेगा।

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अब किसानों की योजना

सरकार से बातचीत बेनतीजा रहने के बाद किसान संगठनों ने तख्तियां प्रदर्शित कीं जिसमें लिखा हुआ था हम मरेंगे या जीतेंगे।
किसान कोर्ट नहीं जाएंगे
गणतंत्र दिवस पर निकालेंगे ट्रैक्टर रैली

सरकार और किसान संगठन दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए हैं। सरकार, किसान संगठनों की आशंकाओं के निराकरण के लिए लिखित उत्तर देने और कानून में प्रावधान करने को तैयार है जबकि संगठन तीन कानून को रद्द करने के फैसले पर कायम है जिसका नतीजा ये है कि आठवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही और किसान-सरकार के बीच गतिरोध का संक्रमण काल बढ़ता जा रहा है।

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