Murshidabad violence: बांग्लादेश से सटे मुर्शिदाबाद और वहां पर बांग्लादेशियों की प्रचुर जनसंख्या के बीच बार-बार हिन्दुओं को निशाना बनाने का पैटर्न ठीक वैसा ही है, जैसा कि बांग्लादेश में गैर मुसलमानों (हिन्दुओं) के साथ किया जाता है। फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट आते ही यह साफ हो गया है कि वक्फ संशोधन अधिनियम की आड़ में मुर्शिदाबाद हिंसा सुनियोजित थी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का प्रशासन हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए जरा भी गंभीर नहीं है। इस टीम ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा और पीड़ितों से बात करने के बाद पिछले सप्ताह उच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जबकि 17 अप्रैल को, उच्च न्यायालय ने मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा से विस्थापित हुए लोगों की पहचान और पुनर्वास के लिए उक्त समिति के गठन का आदेश दिया था।
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सामने आ गई सच्चाई
इस रिपोर्ट ने ममता बनर्जी के उस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुर्शिदाबाद हिंसा के लिए बाहरी तत्व जिम्मेदार हैं। सच्चाई निकलकर सामने आई है कि इस दंगे को हिंदुओं की संख्या में कमी लाने के लिए अंजाम दिया गया था, ताकि बड़ी संख्या में यहां से शेष बचे हिन्दुओं का पलायन हो सके। इसके साथ ही कलकत्ता उच्च न्यायालय की तरफ से गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम जिसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के एक सदस्य और न्यायिक सेवाओं के अधिकारी शामिल रहे, अपनी रिपोर्ट में यह भी बताते हैं कि जब हिंदुओं और उनके घरों को उपद्रवी (इस्लामिक हिंसक) निशाना बना रहे थे, तब ममता बनर्जी की पुलिस मूकदर्शक बनकर यह सब दृश्य देख रही थी। यदि पुलिस ने तत्काल ही सख्त कदम उठाए होते तो मुर्शिदाबाद में जो घटा, वह नहीं हो पाता । हिन्दू समाज को बड़ी संख्या में वहां से पलायन के लिए मजबूर भी नहीं होना पड़ता।
पुलिस की भूमिका पर सवाल
वस्तुत: इस रिपोर्ट में स्थानीय नेताओं और पुलिस की भूमिका पर आज गंभीर सवाल उठाए हैं। कहा गया है कि उपद्रवियों ने अपने चेहरे ढंक कर रखे थे, ताकि कोई उन्हें पहचान नहीं पाए। यहां स्थिति यह रही है कि बेटबोना गांव में उपद्रवियों ने जमकर उत्पात मचाते हुए 113 घरों को आग लगा दी थी, जिसमें उनका सब कुछ जल गया। निकृष्टता की हद यह है कि पानी की आपूर्ति रोक दी गई ताकि वे आग न बुझा सकें। ये हिंसक उपद्रवी यही नहीं रुके, इन्होंने योजना से मंदिरों को भी निशाना बनाया । इसमें बताया गया है कि प्रशासन की तरफ से हिंसाग्रस्त इलाकों में किसी भी व्यक्ति की मदद नहीं की गई और न ही इस हिंसा में संलिप्त आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई। जिस तरह से हिंसा हुई , उससे यह साफ है कि यह सुनियोजित थी और जिसे पूरे व्यवस्थित तरीके से अंजाम दिया गया। यहां जिस पर आरोप लगा है वह नगर पालिका का पूर्व अध्यक्ष, पार्षद मेहबूब आलम है जिसने कि 11 अप्रैल 2025 को धुलियान में हिंसा करवाई। हिंसा में टीएमसी नेता और विधायक का भी नाम आया है।
ममता सरकार की चुप्पी
दूसरी ओर तत्कालीन घटनाक्रम में ममता सरकार की चुप्पी वास्तव में यह बताती है कि उन्हें अपने राज्य के 65 प्रतिशत हिन्दू समाज की कोई चिंता नहीं। वोट बैंक की चिंता सबसे ज्यादा है। यहां 30 प्रतिशत मुसलमान हैं। जो कि आज देश की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्यावाला समाज है। क्योंकि यहां जिस तरह से पिता-पुत्र हरगोबिंदो दास (72) और चंदन दास (40) की हत्या की गई थी, उसके बाद तो किसी भी संवेदनशील सरकार को हरकत में आना चाहिए था, पर पश्चिम बंगाल में जो दिखा, वह एक सरकार की ओर से भयानक चुप्पी थी।
हिंसा की पराकाष्ठा
इस रिपोर्ट में साफ तौर पर बताया गया है कि ‘बदमाशों ने घर के सभी कपड़ों तक को मिट्टी के तेल से जला दिया और घर की महिला के पास तन ढकने के लिए कपड़े तक नहीं छोड़े । रिपोर्ट यह भी बताती है कि जिस पिता-पुत्र की सामूहिक इस्लामिक हिंसक भीड़ हत्या करती है, उससे पहले वह घर का मुख्य दरवाजा तोड़ती है और इन दोनों को बाहर निकालकर इन पर कुल्हाड़ी से वार किए जाते हैं, एक आदमी वहां तब तक डटा रहा, जब तक कि दोनों मर नहीं गए। वास्तव में यह हिंसा की पराकाष्ठा है। यह हिन्दू मॉब लिंचिंग है।
हत्या,हमला और लूटपाट रोज की घटना
ममता अपने शासन को हिंसा के विरोध में सख्त कदम उठाने के स्थान पर उल्टा यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) पर हिंसा की साजिश रचने का आरोप लगाने की हद तक जाती दिखीं। जिससे साफ दिखाई देता है कि राष्ट्रीय एकता के साथ खिलवाड़ जैसे इस सरकार को रोज का काम बन गया है। आप देख सकते हैं संदेशखाली, मेडिकल कॉलेज मामला, बशीरहाट और दर्जनों अन्य हॉट स्पॉट यहां की अराजकता की कहानी कह रहे हैं। मुर्शिदाबाद, मालदा, हुगली और नॉर्थ 24 परगना जैसे जिलों में हिंदू समुदाय के घरों पर हमले, आगजनी, लूटपाट और हत्या की घटनाएं यहां इस दौरान होती हैं। कुल मिलाकर सांप्रदायिकता और तुष्टिकरण की पराकाष्ठा तक आज ममता सरकार पहुंचती हुई इस राज्य में दिखाई दे रही है।
ममता को जम्मू-कश्मीर की चिंता
इस सब के बीच विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने जो कहा, वह सभी के लिए विचारणीय है, वे आज कह रहे हैं कि ममता दीदी की पांच सदस्य टीम बंगाल से जम्मू कश्मीर तो जाएगी लेकिन, मुर्शिदाबाद की याद नहीं आएगी। दीदी को मुर्शिदाबाद छोड़ जम्मू-कश्मीर में तबाह हुए आतंकी ठिकानों की चिंता है!! अच्छा होता इस टीम को आप पहले मुर्शिदाबाद भेजती जहां आपके टीएमसी के नेता के इशारे पर हिंदुओं का नरसंहार और पलायन हुआ । वे ममता पर तंज भी करते हैं कि माननीय उच्च न्यायालय की जांच समिति की वह वीभत्स रिपोर्ट को एक बार पढ़ लेती तो अच्छा होता । जहां जिहादी हिंसा के दौरान आपनी पुलिस निष्क्रिय और अनुपस्थित थी। इस रिपोर्ट में अंधाधुंध आगजनी, लूटपाट, दुकानों और बाजार को नष्ट करने की बात भी उजागर हुई है। माननीय उच्च न्यायालय तो अपना निर्णय देगा ही, कुछ थोड़ी बहुत शर्म बची हो तो अब तो कम से कम इस घटना पर ही सही ममता जी को माफी मांग कर पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाना की दिशा में आगे आ जाना चाहिए।
निशाने पर हिंदू
पश्चिम बंगाल को लेकर वास्तव में आज यह भी प्रश्न उठता है कि चाहे सीएए हो, एनआरसी हो, हनुमान जयन्ती हो, दुर्गापूर्जा हो, रामनवमी हो, या अब वक्फ संशोधन- हर बार एक विशेष समुदाय (मुस्लिम) हिंसक होकर हिन्दुओं को ही टार्गेट क्यों करता है? यह कौन सी जिहादी मासिकता है, जो इस तरह का कृत्य उनसे करवाती है? कहना होगा कि यह सिर्फ राजनीति के लिए नहीं हो रहा, जैसा कि कई मीडिया संस्थानों, तमाम एनजीओ एवं राजनीतिक संगठनों के द्वारा बताए जाने का प्रयास होता है।