महाराष्ट्रः शिवसेना के ‘वे’ इन दिनों क्या कर रहे हैं?

पिछले करीब डेढ़ साल में शिवसेना के ज्यादातर दिग्गज नेता हाशिये पर फेंक दिए गए हैं और उनकी चर्चा तक नहीं होती। उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद वे घोर उपेक्षित हैं।

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महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की सरकार है। तीन पहिया के वाहन की तरह तीन पार्टियों की इस सरकार का भी संतुलन भी बीच-बीच में बिगड़ता रहता है। इसका एक कारण यह भी है कि शिवसेना में इन दिनों दमदार नेता की कमी दिख रही है। पार्टी के ज्यादातर दिग्गज नेता हाशिये पर फेंक दिए गए हैं और उनकी चर्चा तक नहीं होती। उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद वे घोर उपेक्षित हैं और राजनैतिक परिदृश्य से पूरी तरह गायब हैं।

 जानते हैं, शिवसेना के उन कदावर नेताओं के बारे में, जो कभी पार्टी के आधार स्तंभ हुआ करते थे।

दिवाकर रावते
शिवसेना के वरिष्ठ नेता और पूर्व परिवहन मंत्री तथा बालासाहब ठाकरे के करीबी कट्टर शिवसैनिक दिवाकर रावते पार्टी के मुख्यमंत्री बनने के बावजूद कैबिनेट में नहीं हैं। बालासाहब के शिवसैनिकों को उद्धव ठाकरे की कैबिनेट से सीधे बाहर कर दिया गया है। इससे पुराने शिवसैनिक हैरान और नाराज हैं। इसलिए दिवाकर रावते पार्टी में सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में कई शिवसैनिक सोच रहे हैं कि वे वर्तमान में क्या कर रहे हैं? खास बात यह है कि हाल के बजट सत्र में शिवसेना के मुख्यमंत्री होते हुए भी मराठी के लिए कुछ भी नहीं है। रावते ने इसके लिए सरकार और पार्टी से नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि जब मैं मर जाऊंगा और साहब मिलेंगे तथा पूछेंगे कि मैंने मराठी भाषा के लिए क्या किया, तो मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा? ऐसे कट्टर शिवैसनिक और बालासाहब के करीबी नेता के लिए पार्टी में कोई स्थान नहीं है। इसलिए वे राजनीति से दूर निर्वासित जीवन जी रहे हैं।

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रामदास कदम
अगर शिवसैनिकों से पूछा जाए कि शिवसेना के ढान्या वाघ के नाम से मशहूर रामदास भाई इन दिनों क्या कर रहे हैं तो हैरान मत होईए। रामदास भाई फडणवीस सरकार में पर्यावरण मंत्री थे, लेकिन अपनी ही पार्टी के नेता उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्हें मंत्रालय से दूर रखा गया। स्वाभाविक रुप से रामदास कदम पार्टी से नाराज चल रहे हैं। कदम इन दिनों पार्टी के किसी अहम फैसले में हिस्सा लेते नहीं दिख रहे हैं। इतना ही नहीं, चर्चा है कि रामदास भाई, जो सीधे मातोश्री में बालासाहब के पास जाते थे, अब मातोश्री से भी मुंह मोड़ लिया है। बालासाहब द्वारा कट्टर शिवसैनिक कहे जाने वाले कदम ने बजट सत्र में अपनी ही पार्टी के मंत्री पर सीधा निशाना साधा था। रत्नागिरी जिले के खेड़ में कदम ने एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी क्योंकि उसने कोरोना के नियमों का उल्लंघन करते हुए विभिन्न कार्यक्रमों की अनुमति दी थी। लेकिन अपनी मांग पर कार्रवाई नहीं होने पर उन्होंने पार्टी के खिलाफ खुलकर नाराजगी जताई थी। उनका कहना था कि शिवसेना के ही एक मंत्री के संरक्षण के कारण उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई।

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रवींद्र वायकर
रवींद्र वायकर मातोश्री और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सबसे करीबी माने जाते हैं। हालांकि, पूर्व आवास राज्य मंत्री को ठाकरे सरकार में मंत्रालय से दूर रहना पड़ा। बाद में उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री ने रवींद्र वायकर को मुख्यमंत्री कार्यालय का समन्वयक नियुक्त किया। हालांकि विपक्ष की आपत्तियों के कारण नियुक्ति रद्द कर दी गई। इसके बाद उन्होंने वायकर को विधायकों और सांसदों का समन्वयक नियुक्त किया। लेकिन चूंकि इस समय कोई बैठक नहीं हो रही है, वायकर अपने निर्वाचन क्षेत्र में रहना पसंद कर रहे हैं। इतना ही नहीं, वे फिलहाल पार्टी में ज्यादा सक्रिय भी नहीं हैं।

दीपक केसरकर
राणे के कट्टर विरोधी दीपक केसरकर 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना में शामिल हुए थे। उन्होंने सावंतवाड़ी निर्वाचन क्षेत्र से जीत भी हासिल की। बाद में उन्हें भाजपा-शिवसेना सरकार के कैबिनेट में जगह दी गई। गृह राज्य मंत्री रहे दीपक केसरकर को ठाकरे सरकार के सत्ता में आने के बाद मंत्रालय से बाहर कर दिया गया। इसके बाद से दीपक केसरकर नाखुश हैं और फिलहाल पार्टी में ज्यादा सक्रिय नहीं हैं।

तानाजी सावंत
पूर्व मंत्री और शिवसेना नेता तानाजी सावंत मंत्री पद नहीं दिए जाने से खफा हैं। उन्होंने शिवसेना की बैठकों से मुंह मोड़ लिया है। इसके बाद उन्होंने ब्रेक द चेन को लेकर ठाकरे सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि कोरोना पर काबू पाने के लिए कैबिनेट और प्रशासन के बीच तालमेल नहीं है। जो भी प्लानिंग होती है, सिर्फ कागजों पर होती है। मुख्यमंत्री का चेन तोड़ने का सपना मुंबई में बैठकर पूरा नहीं होगा। इसके लिए जमीनी स्तर पर काम करना होगा। 19 महीनों तक सोलापुर की उपेक्षा करने के बाद तानाजी सावंत ने 12 मई को जिले का दौरा किया। उन्होंने जिले में शिवसेना पदाधिकारियों की बैठक की।

प्रताप सरनाईक
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले के बाद, प्रताप सरनाईक ने कंगना रनौत और रिपब्लिक भीरत टीवी चैनल के संपादक अर्नब गोस्वामी द्वारा शिवसेना की आलोचना करने पर उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, लेकिन ईडी के रडार पर आने के बाद लगता है, वो काफी शांत हो गए हैं। हमेशा पार्टी विरोधियों की खुलकर आलोचना करने वाले प्रताप सरनाईक अब चुप हैं, जबकि शिवसेना पर इतने आरोप लगाए जा रहे हैं। इसके साथ लोग यह भी पूछ रहे हैं कि इन दिनों वे क्या कर रहे हैं?

चंद्रकांत खैरे
प्रियंका चतुर्वेदी को शिवसेना द्वारा राज्यसभा सदस्य बना दिया गया। इस बात से शिवसेना के वरिष्ठ नेता चंद्रकांत खैरे नाराज हैं और उन्होंने आदित्य ठाकरे पर हमला बोला है। चंद्रकांत खैरे ने कहा कि आदित्य को औरंगाबाद से शिवसेना सांसद पसंद नहीं था। खैरे बालासाहब ठाकरे की नजर में सच्चे शिवसैनिक थे। लेकिन दलगत राजनीति के कारण वे पार्टी से दूर होते दिख रहे हैं।

संजय राठोड़
पूजा चव्हाण की आत्महत्या के बाद वन मंत्री संजय राठोड़ को इस्तीफा देना पड़ा था। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे संजय राठोड़ के शक्ति प्रदर्शन से भी नाराज थे। पार्टी अब और बदनामी नहीं चाहती थी, इसलिए ठाकरे ने उनसे इस्तीफा ले लिया। उसके बाद से संजय राठोड़ पार्टी में ज्यादा एक्टिव नजर नहीं आ रहे हैं। अब हर कोई ये जानना चाहता है कि वो इन दिनों कर क्या रहे हैं?

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