महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री और प्रदेश के सबसे शक्तिशाली घराने के कुंवर जी अब भूल जाते हैं। अब देखिये न उन्होंने एकदम ताजा-ताजा शुभकामना दी है। जिसमें उन्होंने बड़े ही सम्मानपूर्वक ट्वीट किया है कि, विधान सभा के सभापति श्री रामराजे नाईक निंबालकर जी को जन्मदिन का हार्दिक शुभेच्छा!
आपको लगता होगा कि इसमें भूले क्या है तो? विधान सभा में सभापति नहीं अध्यक्ष होते हैं भाई, जबकि विधान परिषद में सभापति होते हैं। ये हमारी टिप्पणी नहीं हैं बल्कि, अपने नेता का हम कितना अनुसरण करते हैं, ये उसका प्रतीक है। आदित्य ठाकरे जी वैसे बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल से पढ़े हैं और सेंट जेवियर कॉलेज से इतिहास में स्नातक हैं और आगे कानून की पढ़ाई भी की है। तो कोई बात नहीं बड़े-बड़े शहर में छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं।
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याद आया आदित्य सर एक और बात भूल गए… जानते हैं क्या? अरे… वही वरली वाले विधायक जी की। बेचारे ने अपनी सीट युवा नेता और ठाकरे परिवार के लिए छोड़ी थी। आशाएं थी कि ठाकरे परिवार के साथ समर्पण पर कुछ न कुछ मिलेगा आवश्य लेकिन बेचारे नेताजी को न विधायकी मिली न पद और जब दोनों नहीं मिला तो माया का क्या कहें।अब आप सब इशारों-इशारों में समझ जाईये मैं क्यों नाम लूं…
वैसे उल्लेख करता चलूं कि वर्तमान समय बड़े बदलाव वाला है… कोरोना के कारण नहीं… भाई, मैं बात शिवसेना की कर रहा हूं। वहां अब युवा सेना सक्रिय है। उनके आने से अपने कई ऐसे चेहरे जो शिवसेना पक्ष के समारोहों में भगवा लहराते ध्वज के नीचे स्टेज पर धमक के साथ कलाई में भगवा धारण कर विराजमान रहते थे उनका घर पहुंच दर्शन ही संभव होता है अब। नाम मत लिवाइये मुझसे… बेचारे महाराष्ट्र राज्य परिवहन महामंडल का कार्य अच्छा खासा देख रहे थे। शिवशाही दौड़ रही थी लेकिन, ऐसी लंगी लगी कि मंत्रीपद भी गया और विधायकी के भी लाले पड़ गए।
वैसे वर्तमान युवाओं का है। अपने वरली वाले नेता जी को ही देखिये ना, अरे वही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी वाले नेता। बेचारे दही हंडी में हम पत्रकारों का बड़ा ध्यान रखते हैं और उस बीच फोन पर भी तत्काल उत्तर मिल जाता है। कहते हैं कुंवर जी ही लाए थे। शिवसेना में बड़े एक्टिव थे लेकिन उनका भी मंत्रीपद चला गया। हां, लेकिन उन्हें आधा ही भूले थे, तभी तो अब उन्हें भारतीय कामगार सेना की जिम्मेदारी दे दी है और प्रवक्ता भी बना दिया है।
अपने वो ठाणे वाले विधायक जी याद हैं ना, वे तो मंत्रीपद मिलने की आशा में थे। जब सूची बन रही थी तो बहुत सक्रिय थे। देखो ध्यान भी आ गया… वे जैकेट बहुत अच्छी पहनते हैं, एकदम कड़क। हम भी चाहते थे कि उनकी भी मनौती पूरी हो जाए। लेकिन पुण्य प्रताप कहीं कम पड़ गया लगता है।
क्या होता है ना! मुंबई में अपनी सीट बचाकर रखना बहुत कठिन है। बेचारे अपने दिंडोशी से दूसरी बार विधायक हैं। शहर के 74वें विधायक रहे हैं। 1997 से जो मुंबई मनपा के नगरसेवक बने तो 2014 तक लगातार जनसेवा करते रहे। अच्छे वक्ता और लोगों में घुलमिलकर अपना काम करते रहते हैं। पर फिर पद मिला भी तो प्रतोद का। अब क्या करें जब सूची बन रही थो तो उनके हिस्से में वही आया जो पहले दिया गया था।
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हमने तो बस यूं ही कह दिया, भाई भूलचूक लेनीदेनी… मुंबई के हैं तो अपनों को टटोल कर उनका दुख भी जानते हैं और उस दुख को कौन दूर कर सकता है उस तक पहुंचाने का प्रयत्न भी कर सकते हैं। सो आप लोगों के समक्ष अपनी भावना को प्रकट कर दिया।
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