मंदिर पर घंटा नाद यानी दर्द पेट में और प्लास्टर पैर पर! शिवसेना का भाजपा पर हमला

सामना में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पर हमला करते हुए लिखा गया है, "महाराष्ट्र में कुछ छोटे विपक्षी दलों ने नियम तोड़कर दही हांडी मनाने का साहस दिखाया। इन पार्टियों का अस्तित्व नहीं के बराबर है और वे विलुप्त हो चुकी हैं।"

202

शिवसेना के मुखपत्र सामना में भारतीय जनता पार्टी द्वारा मंदिर खोलने को लेकर किए जा रहे आंदोलन को लेकर हमला किया गया है। पत्र में लिखा गया है, “कोरोना की तीसरी लहर पहली, दूसरी से ज्यादा खतरनाक है। केंद्र सरकार ने ठाकरे सरकार को लिखित में दही हांडी और गणेशोत्सव के दौरान सावधान रहने की सूचना दी है। क्या आप दिल्ली के अपने मां-बाप की नहीं सुनेंगे? महाराष्ट्र में क्यों घंटा नाद कर रहे हैं? भीड़, त्योहारों पर प्रतिबंध केंद्र के निर्देश हैं, तो आप दिल्ली जाकर घंटा क्यों नहीं बजाते? आपको महाराष्ट्र से एक प्रतिनिधिमंडल को दिल्ली ले जाना चाहिए और प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री से मिलना चाहिए। उन्हें मंदिर खोलने के लिए मनाना चाहिए, लेकिन आप आंदोलन महाराष्ट्र में कर रहे हैं, उसी प्रकार जैसे ‘पेट में दर्द और पैरों पर प्लास्टर’।”

भाजपा के साथ ही मनसे पर भी हमला
पत्र में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पर हमला करते हुए लिखा गया है, “महाराष्ट्र में कुछ छोटे विपक्षी दलों ने प्रतिबंध हटाकर दही हांडी मनाने का साहस दिखाया। इन पार्टियों का अस्तित्व नहीं के बराबर है और वे विलुप्त हो चुकी हैं। चुनाव में उन्हें बार-बार जनता ने बेदखल किया, लेकिन विपक्ष के विरोध के एकमात्र एजेंडे पर उनके कार्यकर्ता कुछ लोगों को इकट्ठा कर दही हांडी फोड़ने का नाटक कर रहे थे। दूसरी ओर मुख्य विपक्षी दल भाजपा के पास 105 विधायक हैं। उसने मंदिरों को खोलने के लिए घंटा नाद आंदोलन शुरू किया है। सब खुला है, मंदिर क्यों नहीं खुलते? उन्होंने ऐसा सवाल किया है।”

अण्णा हजारे भी निशाने पर
“रालेगन सिद्धि में अण्णा हजारे ने भी भाजपा के साथ सुर मिलाकर मंदिर खोलने के लिए आंदोलन का आह्वान किया है। अण्णा की अनिश्चितकालीन उपवास की चेतावनी ने हमारे देवताओं को भी भ्रमित कर दिया होगा। माहौल ऐसा बनाया गया है कि ठाकरे सरकार हिंदू विरोधी है तथा त्योहारों- समारोहों को लेकर ठाकरे सरकार को कोई रुचि नहीं है। यदि विपक्ष राज्य का शुभचिंतक होता है तो उसे पहले अपने राज्य के लोगों के बारे में सोचना चाहिए। मंदिरों में देवता हैं। मूर्ति की पूजा की जाती है, उसी आस्था से वह देवत्व को प्राप्त होती है। कोरोना ने पूरी दुनिया में एक भयानक स्थिति पैदा कर दी है। इंसान नहीं रेहगा तो मंदिर भी हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे।”

ये भी पढ़ेंः पंजशीर के शेरों के आगे पस्त तालिबानी लड़ाके! 350 ढेर,40 पकड़े गए

अप्रैल 2022 तक रहेगा कोरोना
सामना में लिखा गया है, “मुंबई उच्च न्यायालय ने भी शहर में सार्वजनिक जगहों पर भीड़ को लेकर चिंता जताई है। न्यायालय को आशंका है कि अगर मुंबई में भीड़ को नियंत्रित नहीं किया गया तो शहर में कोरोना की तीसरी लहर में अतीत को दोहराया जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि तीसरी लहर दरवाजे पर खड़ी है। देश अप्रैल 2022 तक कोरोना से मुक्त नहीं होगा। डॉ. राहुल पंडित जैसे विशेषज्ञ कह रहे हैं। ये सब विशेषज्ञ, न्यायालय, केंद्र सरकार सब कह रहे हैं तो भीड़ जमा करना बेवकूफी है या समझदारी? त्योहार मनाए जाने चाहिए, लेकिन नियमों का पालन करते हुए। सरकार कोरोना के खिलाफ है, त्योहार के खिलाफ नहीं। लड़ाई कोरोना के खिलाफ होनी चाहिए, लेकिन उनकी लड़ाई सरकार के खिलाफ है क्योंकि लोगों को बेवकूफ बनाना है। सरकार राज्य के करोड़ों लोगों की जिंदगी को देखते हुए कदम उठाना चाहती है।”

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.